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Sunday 29 April 2012

दहेज मुक्‍त मिथिला दिसि एक डेग



 दिल्‍लीक एकटा प्रतिष्ठित चिकित्‍सा महाविद्यालय सँ एम बी बी एस पास केला क' बाद दिल्‍लीए स्थित एकटा महाविद्यालय मे एम0एस0 करै वला बालकक लेल एकटा सुकन्‍या चाही ।बालकक माता पिता समस्‍तीपुर स्थित अपन गाम मे रहए छथि आ हुनकर एकमात्र शर्त इएह छनि कि कनियां सेहो एम बी बी एस पास होथि वा एम बी बी एस मे पढ़ाई लिखाई करैत होथि वा कोनो मान्‍य संस्‍था सँ चिकित्‍से मे स्‍नातकोत्‍तर मे अध्‍ययनरत ।शांडिल्‍य गोत्री बालकक मूल दिघबै शकरपुर अछि ।गुण ,सौंदर्य आ संस्‍कारक लिस्‍ट हमरा लग मे नइ अछि ,हम त' केवल समदिया छी   ।ओना सर्वांग सुन्‍दरी   आ सर्वगुणक स्‍थान पर एक-दू कमो सही ।सुकन्‍या मेडिकल मे स्‍नातक वा परास्‍नातक करैत होथि तखन rabib2010@gmail.com  पर मेल करू ,या 09208490261 पर फोन करू ।हम बहुत जल्दियाएल नइ छी त' सुस्‍ताएलो नइ छी ।अहांक फोन वा मेलक प्रतीक्षा मे.........

Saturday 28 April 2012

मनिको दाय


अप्‍पन मुंह सँ अप्‍पन बड़ाय
देखियौ देखियौ मनिको दाय
केश कहथि नागिन सन रंग गोलाय
हाय हाय हाय हाय मनिको दाय
सूस्‍ज डरै तेजी सँ पवनो हहाय
बाप रै बाप रै मनिको दाय
हुनकर की बाजब अछि
हुनकर की लिखल अछि
भक्‍क चकित विद्यापति
उगनो लजाय
कत' गेलौं कत' गेलौं मनिको दाय

Sunday 22 April 2012

गजल


अहाँ के देखब कोना आब हम, अछि हमर भाग जडल
अहाँ सॉ भेटव कोना आब हम, अछि हमर भाग घटल

सँगे चलबै जीवन भरि बचन इ, जे अहाँ तोडि देलिएै
समेटब कहू कोना आब हम, स्वप्न हमर भाफ बनल

अहाँ लेल खेल छल किछु दिन के, की कोनो मजबूरी छल
सूनलौं ने किया किछु हमर,  मोने मे हमर बात रहल

बन्द अछि मुट्ठी मे खुसी  हमर, इ केहन भरम मे छलौं
सुखल बालु  जकाँ जे ससरल, खाली हमर हाथ रहल

फटैत छाती ल देखैत रहलौं, घुरि कs  अहाँ तकलौं कहाँ
देह के राखू   कतेक दिन हम, देखू हमर जान चलल

राति जे छत पर छलौं देर तक, कारी असमान तकैत
जेना बादल हम छलौं  ठहरल,  ओ हमर चान चलल

जागल छी बहुत दिन सॉ आब, सुतितौं हम चिर निद्रा मे
निन्द आबै कहाँ कहियो जेना, आँखि मे हमर काँट गडल

गजल- भास्कर झा

बड मनभावन नयनक शोभा, काया श्याम वर्ण उत्किर्ण
सहसमुखी सौन्दर्यक अक्ष छनि, वक्ष समक्ष प्रेम उतीर्ण ।

पैघ केशक कलि फ़ूटित बनिकए खिलि प्रेमक किसलय
नख सिख दहक महक विराजत , हॄदय होयत विदिर्ण ।

मुसिक मुसिक मन उपवन विचरय सुन्दर सब नर- नारी
प्रेमालय केर छात्र गिरि कए भय जायत बहुधा अनुतीर्ण ।

प्रेम पथिक पथ जीवन बिसराए , पटकैत सदिखन माथ
बनि कवि आब सर्वत्र बौराए, दूषित देह लागै जीर्ण शीर्ण ।

-    भास्कर झा 31/01/2012

Saturday 21 April 2012

गजल- भास्कर झा

धक सं लागल चोट, करेजा हमर तोड़ि देलऊं
एहन भेलऊं अहां कठोर कि हमरा छोड़ि देलऊं ।

दिन हो चाहे राइत अहांके हम ईयाद छलहुं
एहन अहांके कि भ गेल कि हमरा छोड़ि देलहुं ।

सदिखन छलहुं हमर पास संग आब छोड़ि देलहुं
हम देखितॆ रहलऊं बाट अहां मुख मोड़ि लेलहुं ।

टूटल हमर पूर्ण विश्वास, दूख संग जोड़ि गेलहुं
हमरा सं कि गलती भेल कि हमरा छोड़ि गेलहुं ।

गजल- भास्कर झा

थाकल, हारल, झमारल जिनगी
बिधनाक चक्र सं फ़ारल जिनगी।

लड़ैत, मरैत, कटि रहल जिनगी
फ़ेकल, फ़ाकल, ससारल जिनगी ।

दुर्जन, सज्जन, निर्जन जिनगी
दुख - हर्खक खखारल जिनगी ।

नीज नेक कर्म सं भरल जिनगी
पर कुचक्र सं अहि मारल जिनगी।

छिड़ियाईत मैथिल- भास्कर झा



विद्वताक भ रहल लड़ाई में
विद्वजन धअ लेने छथि
अपन सुरक्षाक सब कोन
सम्मुख आब स कतरायल
डरक मारि सं घबरायल !

कवित्वक भाव विहीन
लेखनक टूटल तीक्ष्ण धार
महत्वाकांक्षाक परस्पर वैमनस्य
साहित्यक सज्जा पड़ल निष्प्राण !

सांस्कृतिक संध्याक पटाक्षेप
एक दोसर पर मात्र आक्षेप
व्यथित भेल अछि मॉन
करुण भाव सं दग्ध !

महामिथिलाक महाभारत
रमकैत पाण्डव ,कौरव, द्रोण
कॄष्णक शांति केर शीक्षा
भेल अशान्त आ क्लान्त।

मां मैथिलीक आंखि सं
झड़ि झड़ि गिरैत नोर
देखिकय पुत्रक परस्पर विद्रोह
कहिया होयत काल्ररात्रिक भोर !

Friday 20 April 2012

चिंता


आ केशव भाय भरि जिनगी पलाने ब‍नबैत रहि गेला ।ओइ समै आटा पीसबै ले सब बच्‍चा-बूच्‍ची अपन अपन झोरा के माथ पर लादने आध कोस दूर जाइत छलै आ तखन हुनकर र्इ निर्णय भेल जे एकटा आटा चक्‍की बैसेबा क' चाही ,मुदा हुनकर निर्णय आ कार्य क' बीच मे तीन चारि टा चक्‍की गाम मे बैसि गेलै .....फेर उदारीकरणक जमाना आ गामे गामे टेलीफोनक तार सब ससर' लागलै ।आ गामक चारि-पांच हजारक आबादी पर एको टा पी0सी0ओ0 नइ ,जकरा फोन करै के रहै रोसड़ा ,बहेड़ी जाए ,तखन केशव भाए सोचला जे ई कारोबार बेस नफा वला ,आ ओ टेलीफोन आफिसक चक्‍कर काट' लागला ,मुदा जावत हुनका लाइसेंस मिललेन ,ओइ सँ पहिले टून्‍ना आ श्‍यामबाबूक बूथ चल' लागलै ।एक-दू साल त' फेर कुआथे बिता देला केशव भाय आ तखन सोचला कि सोचबा सँ कोन फैदा ,जखन होनहारी अपन हाथ मे नइ ,आ ओइ साल बिकराल बाढि़ एलै ने टेलीफोन रहलै ने पोल आ तखन पी0सी0ओ0 क' कोन बात ......हुनकर अपन भाय जालंधर भागि गेलै ,गाम मे ओ असगरे बचला ।आब मोबाईलक जमाना छलै आ पी0सी0ओ0 वला कठगरा मे श्‍याम बाबू तरकारी बेचैत छलखिन ।केशव भाय एहनो नइ कि श्‍याम बाबूक भाग सँ ईर्ष्‍या करथि ।दुनिये नइ आगू बढ़लै बेटियो ताड़ गाछ सन बरहैत छली आ केशव भाय आब फेर सँ सोचनइ प्रारंभ क' देने छलखिन ।धंधा -पानिक लेल नइ बेटी क लेल ।आ सोचथिन कम चिंता बेशी करथिन .....कोनो नीक घर-वर ,पूबरिया बाधक खेत कें ठीकठाक रेट पर बेचनए ,कोनो दियाद फरीक ल' लए त' सबसँ नीक नहि त'कोनो हितू मितू के बेचल जाए......के हितू मितू अछि हम्‍मर...गीता लागै छइ कत्‍ते सुंदर.....पता नइ केहन वर मिलतै......समै साल खराब चलै छैक ,कोहुना पार लगाबैथ भगवान तावत कोनो ऊंच-नीच नइ करथि भगवती........

Monday 16 April 2012

नियोजित कार्यक्रम

दूनू आदमी रहैत छलियै दिल्लिए मे ।दिल्‍ली एला पर मैथिली मे बतिएनए ,गामघरक चर्चा केनए ,आनो बातचित मे हुनकर सुभाव बड नीक लागै......जइ विभाग मे हम छलियइ ओहिये मे ओहो छलखिन ,दूनू आदमी समान पद पर छलियइ आ विभाग मे एहन जग्‍गह कम छलै जे बेशी मलगर ,प्रतिष्ठित होए ।कखनो कखनो एहनो मौका एलै कि दूनू आदमी एके जग्‍गह लेल प्रतिद्वन्‍द्वी भ' गेलियै.....ऊप्‍परे झापरे दूनू आदूमी संबंध बनेने रहबा लेल प्रयासरत आ भीतरे भीतर चपलूसी ,कनफूसकी चालू रहै ।ओना ओ हमरा सँ बीस साबित भेला कहला कि गाम जा रहल छी कने हमरो काजधाज देखैत रहब आ गाम जेबा सँ पहिले सब सेटिंग क' नेने रहथि ।कहबा लेल कि भाय हम त' गाम मे रहऊं ,हम की कहौं ,हमरा त' किछु बूझल नइ .....आ सही बात त' सबके बूझाए गेलै ।गाम सँ एला त' विद्यापति पदावली कीन के नेने एला , सुआइते ने ...ओ विद्यापति क' गौंआ छलखिन ने ।....धीरे धीरे ओ आर महीन होइत चलि गेलखिन ,हुनकर बुद्धि ,कला-कौशल के सब मानै ।कोनो बड़का नेता आ ऑफिसर सँ भेंट करबा के हो त' प्रतिनिधिमंडल मे हुनका राखल जाइत छलै ,अपन विद्वतापूर्ण भाषण ,भोजनक मेनु ,'बुके' प्रदान करबाक विनम्रतापूर्ण भाव-भंगिमा सबके बूत्‍ता क' बात नइ ......आ भाय अपन व्‍यक्तित्‍वक अंश अंश कें 'यूज' करबाक नियोजित कार्यक्रम बना नेने छथिन......बड़काक नोकरी 2023 ,बड़काक वियाह 2024 ,छोटकाक नोकरी 2027 ,छोटकाक वियाह 2028 ,दिल्‍ली मे फलैट कीननए 2029............

Saturday 14 April 2012

कांटी आ मरिया

कांटी आ मरिया जजिमान आ पुरहितक सम्‍बन्‍ध पता नइ कोदारि आ बेंटक संबंध छैक वा कांटी आ मरिया क’ । बुझाइत तऽ एहिना छइ जे एगो मरिया हेतै त’ दोसर के कांटी बनय्यै पड़तै ।आ एहनो कोनो जोगाड़ नइ बैसै छैक जे कांटियो रहि के मरिया क’ मारि नइ खाए पड़ै । आ मरिया रहि के केओ ऋषि मुनि बनल रहए ,से हमरा जनैत तऽ असंभवे बूझू .....ओना हम पुरहित रहियइ आ हमर भरि दिन जजिमनिके मे बीतए ......वियाहे-श्राद्ध नइ ,मारि-पीट , गारि-उपराग ,टोना-मानी सभक हिस्‍सा ।हअर जोतनइ ,चौकी केनए ,बाउग केनइ ,कमौनी ,पानि देनए ,खाद छिटनइ ,जजात के घोघेनए ,दाना पुष्‍ट भेनए ,कीड़ा लागनइ ,दवाइ के स्‍प्रे ,सूखनए ,काटनए ,दउनी वा झंटेनइ ,कखनो कखनो मशीन सँ दउनी..........अन-पानि सुखेनए आ कोठी अथवा बोरा मे राखनए .......ऐ सब प्रक्रिया मे हमर सक्रिय भागेदारी रहैत छलै आ हम दिने नइ गुनैत रहियइ ,कखनो कखनो सलाहक स्‍वरूप समाजिक आ वैज्ञानिक सेहो भ’ जाइत रहै ।हम कोनो मार्क्‍सवादी बात नइ करैत छी ,ने हम ई मानैत छी जे उत्‍पादन प्रक्रिया मे हमर समान भागेदारी रहै .......ने विश्‍वास क’ स्‍तर पर ने समाजक स्‍तर पर ।
अपन भूमिका के अवमूल्‍यन नइ करितौं ई कहबा मे हमरा कोनो लाज नइ कि मिलै वला प्रतिफल असंतोषजनक ,असमान आ अमानवीय छलै ।कोठी आ खरिहान के भरै मे सांस्‍कृतिक सहयोगी आ मिलै छलै आसेर ,सेर भर अगऊं ।एगो दूगो बाबू सब छलखिन जे साल मे एक –दू बेर पसेरी भरि दाना दैत छलखिन ।आ ई हमर खानदानी कर्त्‍तव्‍य छलै कि जजिमानक समृद्धि क’ प्रति विरक्तिक भाव बनेने रहियइ ।भगवती अन्‍नपूर्णाक पूजा मे कतओ कमी छलै आ अन्‍नपूर्णों खूब तमाशा देखबैत रहथिन ...........

आ जजिमानक पुरूखा सभक बरखी ,छाया ,एकोदिष्‍ट क’ तिथि हमरा मुंहजबानी यादि रहै ......यादि रहै यैह बात नइ ,यादि केनए परमावश्‍यक रहै ,महाकर्त्‍तव्‍य............शायदेसंयोग यदि कहियो बिसरि गेलियइ त’ ओइ दिन जजिमान महासामंत भऽ जाइत छ‍लखिन आ हम महादास......आ मृत्‍युदंड सँ कनिये छोट दंड रहै ई वाक्‍य ‘हमरा अहांक कट्टमकट्टी ।हम आब फलां प‍ंडी जी सँ पूजायब’ ।आ जइ दिन बाबू के ई बात पता लागेन ,हमर देह ,हाथ ,माथ पर हुनकर खड़ाम आ लाठीक चेन्‍ह अहां गिन नइ पेतियइ .........ओना माए गानैत छलखिन आ कखनो बाबू आ कखनो दुनियो के ......कानबो करथिन आ गारियो देथिन.........

एतबे नइ एकादशी ,त्रयोदशी ,चतुर्दशी ,पूर्णिमा अमावस्‍या सब........जेना सूर्य आ चन्‍द्रमा हमरे पूछि के डोलैत छथिन ।आ कोन एकादशी करियौ आ कोन छोडि़यौ ...ईहो बात विधिपूर्वक हेबाक चाही ।आ बात-बात पर महादेव पूजा ।पान सौ आ हजार त’ डेलीए पूजाथिन ,मुदा कहियो कहियो सवा लाख महादेव क’ बात सेहो होए ...आ ओइ दिन त’ एकटा उत्‍सवक वातावरण बनि जाए ,ओइ दिन बाबू महंत जँका करथिन ,किएक त’ हजार दूहजार सभक घर मे बनए आ बाबूए हुनका सभ के दक्षिणा बांटथिन ।आ बाबू ईमानदारी पूर्वक दक्षिणा बांटथिन तें हुनका कहियो पंडितक अकाल नइ पड़लेन ।हरदम टोल-पड़ोसक पंडित सभ आगू-पाछू करैत रहए ।आ ई कोनो महादेव पूजे तक सीमित होए ,एहनो बात नइ रहै ,कहियो श्राद्ध कहियो बरखी कहियो उपनेन-वियाह........एहिना चलैत रहए ।आ बाबू चाहथिन छल तखन सभ दिन पारसे आबैत रहतै छल ,मुदा बाबू पारस लेबाक विरोधी छलखिन ।जत्‍ते ब्राह्मण होए ,ओतबे क’ भाड़ा लियओ ,दुनिया क’ ठीकेदारी नइ......

वैदिक कर्म शुभक हो वा अशुभक ,जजिमान सभ एकटा खास नजरि सँ पुरहित कें देखैत छलखिन ।हुनका लेल आदर्श पुरहित ओ भेल जे मैल चिकाठि पहिरने हो ,चाहे धोती हो वा कुरता एक दरजन ठाम ओइ पर चिप्‍पी हो ।अहांक मोंछ-दारही बरहल हेबाक चाही ,अहां टुटलकी चप्‍पल या बिना चप्‍पले के यात्रा करैत हो ।यदि अहां साफ-सूतरा कपड़ा-लत्‍ता पहिरने छी आ पएर मे जुत्‍तो हो तखन त’ बूझू जे ने केवल अहांक धर्म भ्रष्‍ट अछि बल्कि जजिमनिका मे कनफुसकी क’ केंद्रविंदु सेहो अछि ।सब कहत ‘देखियौ ने कनेक जुत्‍ता देखियौ ,बाप के खड़ाम खटखटबैत जिनगी गुजरि गेलेन आ बेटा ......’ आ फेर तखन बहुत रास खिस्‍सा एहनो जइ मे हुनकर बाप आ बाबा हमरा बाबू आ बाबा के खाली पएर देखि द्रवित भ’ गेलखिन आ प्‍लास्टिक वला जुत्‍ता वा चप्‍पल वा खड़ाम दऽ देने हेथिन ।

आ भाय लोकनि ध्‍यान देबै मैथिली मे एहन कहबी सबसँ बेशी छैक ,जइ मे अहांक तुलनात्‍मक महत्‍ता स्‍पष्‍ट होइत अछि मतलब नीचा दिस ,खराब दिस ,जेना कि ‘बापक नाम लत्‍ती फत्‍ती ,बेटाक नाम कदीमा ‘ ,’खाए लेल खेसारी आ .....पोछै लेल जिलेबी ‘ , ‘पूजी ....नइ चाभी क’ झब्‍बा ‘ , ‘नमहर नाग बैसल छथि आ ढ़ोरहाय मांगै पूजा ‘ आदि आदि ।आ ई सभ कहबी जत्‍ते लौकिक अनुभव सँ भरल होए अहांक अपमानित करबा लेल पर्याप्‍त रहै ।मुदा ई सुनला के बादो कोनो उत्‍तर नइ देबाक रहए ।एगो बात ईहो छलै जे जकरा कर्म करबाक रहै ,ओ चाहे किछो पहिरए ,खाए ,पीबए ,अहांक लेल खास ड्रेसकोड ।मतलब बाप मरै फलनमा के आ केश छिलाबैथ पंडित राम ।
सम्‍मान आ अपमानक एहन दुर्लभ संगति हमरा मूने कोनो सभ्‍यता ,कोनो समाज मे असंभव अछि ।आ मैथिल ब्राह्मणक चरम लक्ष्‍य सभ दिन चूड़े दही रहल ।हरिमोहन बाबूक दार्शनिक अंदाज जत्‍ते ‘खट्टर कका क’ तरंग’ मे चूड़ा दही चीनी मे विस्‍तार लैत अछि ,ओहियो सँ बेशी ।एकटा भोजन ......नइ भोजने मात्र नइ.....अलगे आकर्षण ......अलगे नशा ।एकटा सुस्‍ती ,संतोषक भाव ।त्रिगुण केवल सानै काल तक ,ओकरा बाद विषम भावक सह-अस्तित्‍व ।दांत चूड़ा पर प्रहार करैत आ जीभ आ कंठ दही के ससारैत आ चीनी मुंहक सभ अंग सँ मेलजोल बरहाबैत ।अंत मे विषमता समाप्‍त आ सभ तत्‍व अपन अपन वैशिष्‍ट्य के समाप्‍त करैत .......।आ चूड़ा दही एहन नै बुझियौ जे केवल खाइए वला मे सुस्‍ती बरहाबैत हो ,खुएनहार मे सेहो तेहने आलस्‍य बरहाबैत छैक । चूड़ा दही खुएबा मे अहांक करबा के की अछि ? चुड़ा कुटाएल बोरा मे राखल ,दही पौरल आ चीनी दोकान सँ खरीदल ,तखन त’ मात्र अंचारक सहारे सेहो अहांक ‘ए’ ग्रेड मिलि सकैत छैक .....हम धर्म ,पुण्‍य आ पितरक बात अखन नइ क’ रहल छी ।जे होए चूड़ा दहीक नशा एहन रहै जे इसकुलक समै मे इसकुल कालेजक समै मे कालेज छोड़लियइ ।ने घअर दुआरि ने खेती बाड़ी ।कोन कुटुम कोन कुटमैती ।ने समाजक नौत-निमंत्रण ने पावनि तिहारि ।बस अर्जुन जँका ...संभवत: ओ मांसाहारी रहै तें माछक आंखि मे तीर मारलकए आ हम सर्वाहारी मैथिल ....चूड़ा दही क’ गंध दिस आंखि मूनने बरहैत आ हमर प्रेम चातको सँ बेशी ,हम्‍मर धियान बगुलो सँ बेशी ,हमर क्रोध सिंहो सँ बेशी आ हमर भूख सांपो सँ बेशी आन्‍हर।मुदा रूकू महराज हम किछु बेशीए बाजि गेलौं हमर भूख चाहे जेहन होए दुर्वासा आ भृगुक क्रोध किताबे तक सीमित रहलै ,हम अपन जिनगी मे त’ नइ देखलियै जे केओ जजिमान अहांक उचितो क्रोध कें सकारने हएत ।भृगु अपन क्रोध कें ने छिपेलखिन ने सम्‍हारलखिन आ भगवान विष्‍णु के धएले लाति करेजा पर मारि देलखिन आ भगवानो केहन त’ पूछलखिन ‘हे ब्राह्मण श्रेष्‍ठ चोट त’ नइ लागल ।हम्‍मर करेज त’ पाथरक अछि ,मुदा अहांक पएर त’ कमलोऽ सँ बेशी कोमल ‘ ।ई प्रसंग ब्राह्मणवादक संरक्षणक एकटा नमूना अछि कि कोना वैचारिक स्‍तर पर यथास्थितिवादक समर्थन कएल गेलै । फेर लक्ष्‍मी क’ क्रोध आ पुन: भृगु कें क्रोधित भऽ कें भृगुसंहिता लिखनए आ लक्ष्‍मी के संबोधित ई गर्वोक्ति कि ‘जे ब्राह्मण ई पोथी परहत ,ओकरा लग तों दौड़ल जेबहीं ‘ ।

एकटा बात आर अहां अपन दैनंदिनी के चाहे जेना व्‍यवस्थित राखियौ ,एक चीज लेल हरदम तैयार रहियौ ।अहांक कखनो बुलाहट आबि सकैत अछि .......नइ नइ उपनेन वियाह त’ पहिले सँ निश्चित रहैत अछि ,मुदा सत्‍यनारायण कथा ,महादेव पूजा ,कोनो गुप्‍त उद्देश्‍यक लेल ब्राह्मण भोजन आ एहने सन बहुतो रास प्रसंग ,जइ ठाम अल्‍पसूचना पर अहांक उपस्थिति अनिवार्य आ कखनो कखनो लठैत वला भाषा ‘यादि राखब पंडित जी समै खराब छैक छओ सँ सात नइ हेबाक चाही ‘ ।आ ग्‍यारह टा ब्राह्मणक निमंत्रण छैक त’ ग्‍यारह टा हेबाक चाही ,औ जी साहेब आब गाम मे नइ छइ त’ नइ छइ ,हम कतऽ सँ लाबी ।सब गाम छोडि़ के दिल्‍ली,पंजाब रहै छैक ।बहुतो लोक गामो मे छैक त’ अपन अपन काज धंधा मे व्‍यस्‍त ।ओ चूड़ा दही खेबा लेल तीन घंटा बेरबाद नइ करता ।ओना त’ काज चलिए जाए मुदा कहियो काल एहन स्थिति उत्‍पन्‍न होए कि लागै आइ नऽ छऽ भइए के रहत ।कोनो कोनो जजिमान कें होए कि कम ब्राह्मण हम पारस जमा करबा लेल आनलौं ।कखनो कखनो त’ हद भऽ जाए जजिमान सब नाओ गिनाबऽ लागता ,फलां प‍ंडित त’ गामे मे रहैत छथिन ,आ चिल्‍लांक भतीजा सेहो ............. आ जजिमनिका क’ एकटा खास शिष्‍टाचार रहै ।प्रणाम त’ सब अहींके करैत छलथि ,मुदा अहां आर्शीवाद एकटा विशेष संबोधन के साथ दिअओ ।‘खुश रहियौ हाकिम’ ‘आनंद सँ रहियौ सरकार’ ‘जिमीन्‍दारक जय जय हो ‘ ‘राजा सदैव विजयी रहथि ‘ ।मतलब जजिमानक प्रणाम सूदि समेत लौटाबए क’ व्‍यवस्‍था रहै ।आ कोनो कोनो गुंडा टाईप के पंडित जी ऐ व्‍यवस्‍था के दोसर रूप दऽ दैत रहथिन जेना ओ जजिमान के देखिते चिचियाथिन ‘जय जय बम बम’ , ‘जय हो जय हो ‘ आ पता नइ ऐ मे ककर जय आ ककर बम बम रहै ।मुदा ई व्‍यवस्‍था विभिन्‍न रूपांतरणक साथ आगू चलैत छलै ।आ दूनू तत्‍व यैह चाहथिन जे हम कांटी नइ मरिये रही ,मुदा ई केवल सोचबाक बात नइ रहै ...........


आब कनेक पुरहितक दृष्टिकोण ।तमाम नीचता कें छुपबैत अपन क्षुद्रता कें गौरवान्वित करैत पुरहित चाहैत छलखिन जे संसारक तमाम सिंहासन हुनके लेल रहै ।कखनो सर्दी-बुखार ,कखनो जाड़क मारि आ कखनो अलसियाइत पं‍डी जी बिन नहेने ,तेल चानन लगा झुठौंआ फूसौंआ के कंपकंपाइत रहथिन कि हुनकर ख्‍याति एहन पंडित क’ रूप मे होए जे अपन तपस्‍या सँ हवा-बसात के जीति नेने होए ।आ अपन अल्‍प संस्‍कृत ज्ञान कें कखनो लय ,कखनो रटंतु विद्या सँ सुरक्षित करैत ऐ ठामक सब पंडित ई साबित करैत र‍हथिन जे उदयनाचार्यक सब पोथी हुनका पास ।किछु लोकनि ऐ भ्रम के सेहो पोसैत छलखिन कि संभवत: लोक विश्‍वास केने जा रहल अछि कि वास्‍तव मे उदयनाचार्यक असली वारिस यैह छथि ........
ई पंडित जी छलखिन ,एहन तारनहार जे मंत्रच्‍युत ,विचारविहीन आ तर्कशीलता सँ योजन भरि दूर ।अपन जन्‍मक बल पर ,तीन-पांचक बल पर ,गाल बजेबाक कौशल आ ठोप-ठंकारक बलें ।मंत्र कतबो मूल्‍यवान हो ,दू-चारि टा शब्‍द अपने गीलने ,दू-चारि टा कुल खानदानक नाम पर आ दू-चारिटा संभावित दक्षिणाक विचारमग्‍नता सँ भ्रष्‍ट होइत.......धियान आबिते फेर सँ हाथ-आंखि हिलबैत भगवान के ठकैत आ जजिमान के भरोस दीबैत कि ‘हमरा सन शुद्ध पूजा केओ ने करा सकैत अछि ‘ । मुदा पुरहित आ जजिमान मे एकटा लिखित समझौता रहै ।भोजन कतबो विशिष्‍ट आ वैविध्‍य सँ भरल होए जजिमान कहथिन ‘जे नून चूड़ा छैक ,आबियौ आ ग्रहण करियौ ।‘ आ भोजन कतबो सरल-गेन्‍हायल होय पंडित जी कहथिन ‘ऐ सँ बढि़ के बाते होइत छैक ।‘ मुदा कखनो कखनो विजय बाबू सन मर्दराज सेहो छला जे ऐ लीक के अपन स्‍वभावे तोड़बाक प्रयास करैत छला ।ओ साफ कहथिन’पंडी जी चिंता नइ करियौ ,आराम सँ खाएल जाओ ।पर्याप्‍त दही छैक ,नून चुड़ा वला कोनो बात नइ’ ,तैयो विजय बाबूक ई यथार्थवादी रूख कोनो स्‍थायी प्रवृत्तिक रूप धारण नइ केलकै ।आ ई द्विपक्षीय समझौता संभवत: जजिमानी व्‍यवस्‍थाक सर्वोच्‍च तत्‍व रहै ।
यद्यपि पंडित लोकनि जखन एक-दोसरा सँ बात करथि त’ ओ प्राय: दक्षिणा संबंधी होए ।जजिमानक खिधांश ,जजिमनिकाक भोजनक निंदा ,नून ,मिरचाय तेज हेबाक चरचा ,दूध ,दही कम हेबाक बात हरदम सजनिये ,हरदम घिउड़े ,कखनो के सब दिन राम तोरय..........छि: छि: सोहारी मे घृतक नामोनिशान नइ ,आ खीर मे पानि एकदिस आ दूध एक दिस आ चाउर भोकारि पारि के कानैत ।बेलना टूटबाक बात आ मकई क’ रोटी ब्राह्मण के दैत जजिमान सब ।घोर कलियुग ,एहन एहन जजिमान के कत’ सँ पुण्‍य हेतै ।संकल्‍प आ दक्षिणा मे एकटका दूटका देबा ,कखनो ऊधारिये रहि जेबाक चिंता ।अपन कुटिल पांडित्‍य आ दुनिया दारी सँ लोक कें ठकबा सम्‍बन्‍धी विस्‍तृत विमर्श आ दोसर के फटकारि देबा आ चमत्‍कृत करबाक कतेको कथा ।गलत-सलत मंत्र परहेबाक प्रसंग बत्‍तीसी के खोलि के हँसबा के अवसर दैत आ अपने मूने त्रुटिरहित चलाकी .......
दोसर दिस जजिमानो सब अपन हकिमई ,जमिंदारी आ लंठई क’ चर्चा क’ संग ।विविध प्रसंग जइ मे पुरहितक गलती कें ओ पकडि़ नेने हो ,एहनो प्रकरण जइ मे पुरहित सब कें अपन दानशीलता सँ ओ मोहि नेने होथि ।कखनो कखनो त’ एहन बात कि पहिले त’ बिन जजिमनिका पेट कि पांजरो नइ भरैत रहेन ,मुदा आब कने मजगूत भ’ गेला ।आ ऐ पेट-पांजर क’ चर्चा प्राय: होइत छलै । जजिमान-पुरहितक ई कांटी-मरिया निरंतर ठोकाइत रहला के बादो हमरा ई कहबा मे कोनो हर्ज नइ कि जजिमनका मे कतेको आदमी एहनो छथिन ,जे ऐ जजिमान-पुरहितक संबंध सँ आगू छथिन ,आ ओ हमरा लेल कोनो बाप-पित्‍ती सँ कम नइ ।चाहे जानकी बाबू होथिन वा मकसूदन बाबू ,इंजीनियर साहेबक परिवार हो वा बैद्यनाथपुर मे शशि के आंगन मे ओ वृद्ध मसोमात ।ई सब लोक हमरा लेल हमरा खानदानक लेल पारिजात बनि के रहला आ हमर सब कष्‍ट हिनका लोकनि के छाया मे हेरायत चलि गेल ।नित्‍यप्रति क’ भेंट आ हिनकर सभक दुलार कहियो वास्‍तविकता सँ परिचय नइ होम’ देलक ,नइ त’ पुरहितक जिनगी कोनो माली ,कोनो धानुक ,कोनो धोबी सँ कोन प्रकारे बेशी छैक ।ओहो सब अपन हिस्‍सा लैत छैक आ हमहूं ।यदि फल महत्‍वपूर्ण छैक त’ एना सोचनए बहुत बेजाए त’ नहिये............................... (क्रमश: )
विदेह मे क्रमश: प्रकाशित

सोयरी आ सपना

ओक्‍कर तोहर हम्‍मर सपना नाम:सूर्यकांत उमेर :बयालिस वर्ष रंग:गोर लंबाई:पांच फीट नओ इंच वामा आंखिक ऊपर मे आ दहिना बांहि पर चोटक निशान
समस्‍तीपुर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ,करियन शाखा क’ एकटा खाता नम्‍मर (हम नम्‍मर सार्वजनिक नइ क’ रहल छी)
पहिले पहिल मात्र यैह सूचना फैक्‍स क’ माध्‍यम सँ दिल्‍ली सँ राजीव झा जी भेजला ।राजीव झा दिल्‍ली पुलिस मे उपनिरीक्षक छथिन ,आ हुनका पता छलनि जे सूर्यकांत हमर पिसियौत भाय छथि ...........दिन छलै सोलह अगस्‍त दू हजार दस ।जखन हमरा बूझा गेल जे सूर्यकांते भाय ई डायरी लिखला तखन हम कहलियेन जे ई डायरी भेज दियअ । ई डायरी अजीब तरीका सँ लिखल गेल छैक ।जत्‍ते दिलचस्‍पी अपना प्रति ओतबे समाजक प्रति ।ओना डायरी क’ बहुत रास बात हमरा अनसोहांत लागल .........कखनो कखनो एत्‍ते कि सूर्यकांत अप्‍पन मर्यादा धोए देने हो..........मुदा ऐ विषय मे हम किछु नइ कहब किएक त’ गजेंद्र जी कहला कि डायरी के मूले रूप मे छापल जाय ,तें डायरी क’ कंटेंट पर हमरा किछु नइ कहबा के अछि .......ओहुना मरल आदमी के विषय मे की कहल जाए ?

हमरा तऽ ईहो नइ बूझबा मे आबि रहल अछि कि ऐ डायरी मे किछु साहित्यिक तत्‍व अछि वा नइ ? कखनो डायरी तथ्‍य आ समै कऽ संदर्भ स्‍वीकारैत छैक आ कखनो नइ ,कखनो –कखनो तऽ डायरी अप्‍पन रूप के छोड़ैत संस्‍मरण ,कथा ,कविता दिसि भागऽ चाहैत अछि ।कखनो –कखनो सपना कऽ रूपक मे समाहित हेबऽ लागैत अछि ।डायरी लिखलो छैक मिथिलाक्षर मे आ हमर मिथिलाक्षर रहबो करए कमजोरे ,तें एकटा ईहो मेहनत बढि़ गेल । मुदा गजेंद्र जी कऽ ई कहतब छनि जे एगो –दूगो पृष्‍ठ के नित्‍यप्रति सुलेखित करैत भेजैत रहू ।
डायरी कें प्रस्‍तुत करैत सभ सँ पहिले हम राजीव बाबू कें धन्‍यवाद दैत छिएन जे ओ अप्‍पन व्‍यस्‍त दैनंदिनी कऽ बीच सूर्यकांत कऽ डायरी मे दिलचस्‍पी देखेलैथ आ एहियो सँ आगू बढि़ हेरायल डायरी कें खोजि निकालला । ई डायरी सूर्यकांत भायकऽ मकान मालिक राखि लेलकइ आ कोनो साहित्यिक वस्‍तु बूझि बेचबा के फिराक मे रहए ।ऐ डायरी कऽ तथ्‍य के प्रस्‍तुत करैत हम सूर्यकांत भाय कऽ आत्‍मा सँ क्षमा मांगैत छी ,किएक तऽ डायरी मे कतेको एहन चीज छैक ,जइ सँ विवाद उत्‍पन्‍न्‍ा होयत आ मृतात्‍मा कऽ संबंध मे भ्रांति उत्‍पन्‍न भऽ सकैत छैक । मुदा ऐ धन्‍यवाद आ क्षमाप्रार्थना कऽ प्रासंगिकता तखने ,जखन डायरी मे कोनो सत्‍व हो ।डायरी मे कतहु कतहु शीर्षक छैक आ कतहु नइ ।सबसॅं नमहर शीर्षक छैक ‘ओक्‍कर हम्‍मर तोहर सपना ‘ ।आ डायरी कऽ पहिल पृष्‍ठ पर एकटा छोट शीर्षक रहै ‘सोयरी आ सपना ‘।ऐ खेप मे ‘सोयरी आ सपना’ प्रस्‍तुत अछि ।

सोयरी आ सपना



ई कोनो अद्भुत सपना नह रहै ।सभ लोक अपन अपन बच्‍चा क' लेल एहिना सपना देखै छैक ,आ ई ओकर पहिलो सपना नइ छलै ।पहिलो नइ ,दोसरो नइ ,तेसर ........ ,मुदा आइ सँ तीस-चालीस साल पहिने तीन टा बच्‍चा बहुत सधारण बात छलै ,से दम्‍पति अपन सपना के देखबा ,सपना के अगोरबा ,पोसबा के सब उपक्रम करैत गेल ।सपना मे पानि देनइ ,सपना के हवा लगेनइ ,सपना मे सँ आकुट बाकुट कें साफ केनए ,सपना के चोर-शैतान सँ बचाबैत ,लोक-वेद के कहैत गुणैत ।सपना के हाथ-पैर ,मुंह-कान सब बनलए ।ऐ मे लगभग नओ महीना लागि गेलइ ।आ ई नओ महीना कोना बीतलइ दम्‍पति के पते नइ चललै ।

एक दिन मिथिला क एकटा गाम मे सपना के धरती पर उतारबाक व्‍यवस्‍था प्रारंभ भेल । तीन -चारि टा जनानी ,एकटा चमैन ,आगि-पानि ,तेल-मौध,साबुन-कपड़ा आ गीत-नाद । आ वौआ रे अलगे समै छलै ,ओइ समै मे ,बच्‍चा जनमै काल एकटा खास भूमिका लेल किछु जनाना कें बजाओल जाइत छलै ,ऐ मे सबसँ प्रशिक्षित जनाना ओइ वर्ग सँ होइत छलखिन जे मिथिले नइ समस्‍त भारतवर्षक जाति-विचार मे अछोप मानल जाइत छलै ,मतलब सबसँ महत्‍वपूर्ण काज आ काज केनिहार क दरजा अछोपक ।ई सब बात बाद मे ,पहिले सपना कऽ स्‍पर्श ,गंध सँ मोन के भिजा तऽ लेल जाए । आ सपना कें जमीन पर उतारबा क जिम्‍मेवारी ओइ वर्ग के हाथ मे जेकरा सपना देखबा कऽ मनाही हो । मुदा ‘लैंडिंग ऑफ ड्रीम्‍स’ कऽ मजबूत पायलट सभ अपन-अपन अनुभव कऽ बलें अभियान कें सफल दिशा दैत रंगबिरही बात ,कखनो टोल पड़ोस कखनो धर्म पुराण कखनो शरीर विज्ञान आ यौन विज्ञान सेहो ...... जनी-जातिक मजाक स्‍वप्‍नागमन मे निहित वेदना के कम करैत । आ सपना के छोट छोट हाथ छलै ,छोट छोट पएर ....आंखि कान सब छोट छोट ।आब सपना स्‍वयं अपना लेल सपना देख सकैत छलै ................



मुदा सपना के नून नइ चटाएल गेलै , ई दम्‍पति कनि अलग रहै यैह बात नइ ,बच्‍चा ‘बच्‍चा’ रहै ,बच्‍ची नइ ।आ सपना एखन सीधा-सीधी बाट चलैत रहै ,भूख ,प्‍यास ,गरम-ठंड केवल सपना मे आबै ,आ ईहो कोनो सपना देखए के उमेर छलै...............जे बाप माए क’ सपना सएह बच्‍चा क’ । आ छोट-छोट सपना के पूरा करए लेल माए-बाप रहबे करथिन ,से अपन सुविधा के समेटैत वौआ कऽ आवश्‍यकता पर केंद्रित भऽ गेलै घर ।
एखन तक सपना मे सपना कऽ मथफुटौएल नइ भेलै । से किएक? त’ एखन छोटका सपना के हाथ पएर नइ भेल छलै ,ओकर आंखि नइ फुटलै छल एखन ,तें ओकरा देखाओल गेलै जे वौआ रे सपना एहिना देखबा कऽ चाही आ सपना मे मात्र यैह सब देखबा के चाही ।से तीन –चारि साल तक ककरो ई बात दिमागो मे नइ एलै जे ऐ परिवारक प्रत्‍येक सदस्‍य के कोन मात्रा मे सपना देखबा कऽ चाही ।एखन तक खाए-पीबए ,पहिरनइ-ओढ़नए ,गीत-गानक सीमित बाईस्‍कोप छलै ..... आ ओइ समै मे गाम मे बाईस्‍कोप देखबै वला आबैत छलै आ ओकर चकरका पेटी मे आठ-दस टा खिड़की रहैत छलै आ घूमैत फोटो कऽ साथ गीत सेहो सुनाइत छलै ।फोटो आ गीत मे सामंजस्‍य हेबाक चाही से वौआ के ओइ समै मे नइ बुझेलए । आ वौआ नइ चिन्‍हैत छलै तें एके सिनेमा मे मरलका पृथ्‍वी राजकपूर सँ लऽ के सरलका गोविन्‍द प्रधान तक के फोटो अजीबे आकर्षक लागै ।फोटो कऽ मुद्रा ,जइ मे मारनए-पीटनए ,हँसेनए ,दौड़ेनए तऽ रहबे करए छौड़ा-छौड़ी एक दोसर के पकड़ने सेहो रहै ।आ वौआ कें ओइ समै मे ई बूझऽ आबि गेल छलै जे वौआ अलग होइ छइ आ बुच्‍ची अलग ..............
आ वौआ कऽ जखन नाम लिखेलइ तऽ वौआ एगो झोरा आ एगो बोरा नेने ईसकुल पहुंचि गेलइ । ईसकुलो मे वौआ अप्‍पन बोरा कें छौड़ा सभक बोरा मे सटा के राखए ।ईसकुल कऽ वातावरण वौआ के बेसी नइ नीक लागलै ।ऐ ठाम मरसैब सब हिंदी बाजैत छलखिन आ हाथ मे मोटका सटक्‍की राखैत छलखिन । वौआ के तऽ ईहो पता नइ रहै जे हिंदी कोनो भाषा होइत छैक ,हां ओ सब जे बाजैत छलखिन से गाम मे केओ नइ बाजैत रहै ...........मुदा नइ ऊ जे नीरस भैया आबै छथिन कहियो कहियो गाम ,आ ऊ जे कुमल भैया छथिन्‍ा ,ऊ दूनू गोटे गामो मे हिंदी बजैत छथिन ,तऽ की हिंदी बहरिया भाषा भेलै ,गाम परक नइ रोड परक ,ईसकुलक भाषा ।मुदा ओइ बात सभक लेल ओइ समै कोनो अवकाश नइ छलै ,ई कोनो सपना नइ छलै ,तें झोरा ईसकुल तक राखि बहुतो बच्‍चा मंदिर दिसि निकलि जाइ आ वौओ सएह करए ।मंदिर पर ,पोखरि दिसि ,गाछी मे ओ सभ समान मिलैत छलै ,जेकरा सपना मे देखल आ सोचल जा सकैत छैक । कनैलक फूल ,कक्‍का कऽ ललका लताम ,हुनकर बँसबीट्टी ,उत्‍तरबाय टोलक ईमली आ पवितरा आ डोमा कऽ तार आ तरकुल मे बहुत नशा छलै ।आ ईसकुलक सर्वमान्‍य मुद्रा पिनसिल छलै ,मतलब पिनसिलक कनी टा टुकड़ा मे तार कऽ कनी गो हिस्‍सा मिलबा कऽ गारंटी छलै । ओइ समै मे वौआ के बूझल नइ छलै जे पवितरा दुसाध छैक आ पवितरा के छुइ देला सँ हड्डी तक छुआ जाइत छैक ! ओइ समै ईहो नइ बूझल छलै जे डोमा डोम जाति कऽ बच्‍चा नइ कुम्‍हार छैक आ डोमा नाम राखि एगो जोगटोम कएल गेल रहै ,आ ईसकुल मे डोमा कऽ माए –बाप कें ई साबित करबए मे दम लगब’ पड़लै जे डोमा कऽ असली नाम सुकुमार छैक ।



मुदा वौआ रे हम्‍मर स्थिति किछु अलग रहै ,आइ तक घर मे हमरा केओ नइ सुनलकै हमरा जन्‍मक कहानी ।ने माए ने बाबू ने भाय-बहिन सब ।हम विशुद्ध पुरहिति‍या घर मे जनम लेलियइ ।घरक पूरा अर्थव्‍यवस्‍था बाबू के द्वारा सांझ मे आबइ वला सीदहा पर निर्भर रहै ,तें घरक पूरा राजनीति जजिमनिका पर केंद्रित छलै ।भोर मे बाबू नहा-सोना पूजा कऽ लेला के बाद सीधे भागथिन गयघट्टा ।आ ई गायघाट गाम हुनकर समस्‍त योग्‍यता आ विद्वता कऽ मंच छलै ।ऐ ठाम हुनका लेल कोनो कंपटिशन तऽ नइ रहै ,तें साबित करबा आ नइ करबा सन किछु नइ रहै मुदा ई जे निर्दन्‍द्व संभावना छलै से कतेको संभावना कें नून चटा के मारि देलकए ।एकर धरती एको डेग नइ छलै ने अकाश एको हाथ के तें वामन कें वामने रहि मरबा के छलै ,ऐ ठाम विष्‍णु मात्र सत्‍यनारयण कथे मे रहथिन ,हुनकर दस टा पचास टा रूप कहियो सपना मे आयल ,विराट रूपक बाते छोड़ू । ऐ ठामक विष्‍णु लक्ष्‍मी सहित आबैत रहथिन आ कहियो चौबन्‍नी ,कहियो अठन्‍नी ,कहियो सवा रूपैया आ कहियो ‘बाद मे दऽ देब’ कऽ पुनरूक्ति सुनाबैत गौलोक चलि जाइत छलखिन ........................

क्रमश:

बैंकर

जहिया सँ ओ आयल अछि ,बूझू जे एकदम परेशान परेशान भ' गेल छी ।साढ़े पांच बजे बैंक सँ आयत ,बैग पटकत आ बहरका रूम मे टांग पसाडि़ के सूति रहत । फेर हम्‍मर कनियां टुघरैत टुघरैत एती आ ओकरा पानि बिस्‍कुट आ नमकीन देथिन ,चाय पियेथिन ,तखन छौड़ा अंगैठी लैत बाजत 'मौसी बैंक मे काज बहुत छैक ' ।आ हम्‍मर कनियां की बाजती ? रे ससुर थाक‍बीहीं नै ,काज नै करबीहीं त'बैंक मे नोकरी कथी ले करै छहीं आ बैंक झुठौंआ के चालीस हजार रूपया दरमाहा दैत छौक । ई कह ने जे तोरा अखन डेरा नइ छोड़बा के छओ........बूझलियओ जे कम उमेर छओ आ माए-बाप हरदम एकरे रट लगेने छथुन ,मुदा की एकैस बाईस बरीस उमेर नइ होइ छइ .....एखने वियाह भ' जेतओ त' चारि टा जनमा देबही आ एत' बात पिजा रहल छें ।साफ साफ कह ने किराया बचेबा के छओ बैंक सँ चारि हजार ल' रहल छें ,ई भेलौ जे मौसा मौसी के कहियो ओइ मे सँ एक हजार निकालि द' दी .......अरे भाय......रूपया नइ देले त' नइ देलें कहियो तरकारीए ,मिठाईयो त' नइ आनलें आ ऊप्‍पर सँ राजनीति आ साहित्‍य पर बहस ....आब डेरा पर छें त' किछु नइ कहै छियओ ,मुदा करेज मे घूर जरि रहल अछि.......

Monday 9 April 2012

महाभारत

हुनकर हुनकर हुनकर तर्क
हिनकर हिनकर हिनकर पक्ष
सभक अपन अर्द्ध सत्‍य
सभ ओकरा पकड़ने
बाबा क' डीह जँका
केओ गजलक पाणिनी
केओ मम्‍मट पतंजलि
केओ आलोचनाक' अभिनवगुप्‍त
केओ मिथिलाक चाणक्‍य
मिथिलाक हितक बात करैत
झुठौआ फूसौंआक चाणक्‍य
खेतक पुतलो नइ
सामाक चुगलो नइ
अकेला जान अहां के साहेब
कक्‍कर कक्‍कर सपोर्ट करबै
ई कोनो सत्‍यक युद्ध नइ हाकिम
बस एक क्षणक महाभारत
बस अश्‍वत्‍थामा हतो
केकरा पर विश्‍वास करबै अहां
सब दोस्‍ती करैत सिरींज नेने
बढि़ रहल महागति सँ
नस के ढ़ीला केने रहियौ
तैयार रहियौ खून देबाक लेल
आ मैथिली के खून चाही
मुदा हित मैथिली के नइ छैक
ब्‍लडबैंक क मालिक केओ आर मित्र
ओ बेचै छैक नितप्रति खूनक बोतल
आ बनबै छैक अप्‍पन बैलेंस
ओकरा साबित नइ करबाक छैक
सभ परीक्षा अहीं लेल ........

एकटा भाषा छलै

एक टा भाषा छलै
ओकरा घोघ तोरे जनाना सभ राखने रहै
ओकरा पोसै छलै
सअर सोलकन मुसहर सब मड़ुआ खुआ के
ओकरा गाबै छलै
बूढ़बा सब गीता पुरान सन
ओकरा भजबै छलै
बाभन सब पुरस्‍कार फंड लेल
ओकरा नचबै छलै
लंठ नेता दिन कुदिन

विहनि कथा---अमित मिश्र


विहनि कथा--चोरी

विद्याधर बाबू । साहित्यकार ।जीभ पर साक्षात सरस्वती कए बास । साहित्यक सब विधा पर एक समान पकड़ छलनि मुदा पाइ कए अभाव मे एको टा पोथी छपल नहि छलनि । एक दिन साँझ मे बजार दिश जाइ छलाह । पहुँच गेलाह पुस्तक महल । एकटा सुन्नर काँभर वला पोथी आकर्षित केलकनि तेँए किन लेलाह । घर पर आबि पढ़ै लए बैसलाह , जेना-जेना पन्ना उलटाबैत गेलाह तेना-तेना आँखिक गोलाइ पैघ होइत गेलै । काँभर कए पाछु लेखक कए नाउ पढ़लन्हि ,आँखि और पैघ भ' गेलै । सोच' लागलन्हि टका , मनुख-जानवर .गाड़ी-घोड़ा कए चोरी त' देखने छलौँ मुदा शब्दक चोरी पहिल बेर देखलौह । आन चिजक चोरी मे त' पता चलि जाइ छै मुदा मुँह सँ निकलैत बोल कए चोरी मे कनिको पता नहि चलै छै । धन्य छथि एहन चोर आ धन्य छेँन चोरी कए स्टाइल . . . । ।

अमित मिश्र

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विहनि कथा--सात समुद्र पार सँ

मनोहर बाबू इलाका कए नामी डाँक्टर छलाह । बजार मे तीन तल्ला घर मे अपने , कनियाँ दू टा बेटा संग माँ-बाबू सेहो रहै छलथिन । अथाह रूपैया तेंए कोनो चिजक कमी नहि ।अपनो नव जमाना कए आ कनियो कलजुगी ,अपना मोनक मालिक छलनि । हुनक कनियाँ शरबत जकाँ घोरि क ' इ बात पिया देलकनि जे माँ-बाबू बिमार रहै छथि ,तेंए बच्चा कए इनफेक्सन भ' सकै यै , दोसर देखभाल करबाक लेल फुरसतो नहि अछि तेंए दुनू गोटे कए वृद्धा-आश्रम द' आबियौ । मनोहर बाबू सब बात माँ-बाबू कए कहखिन । तै पर बाबू नोराएल नैन सँ कहलनि ,"अपन संस्कृति इ आदेश नहि दै छै , हम कते दिन जीबे करब ,तोहर मूँह देखैत मरब त' शांती भेटत , हमरा संगे रह' दए , "

मनोहर बाबू जबाब देलनि ," जहिना अंग्रेजी ,पहिराबा , खान-पान , रहन-सहनसंग बहुतो रास तकनीक दोसर संस्कृती सँ आबि अपन भ' गेल , तहिना वृद्धा आश्रम भेजबाक संस्कृती अपनाब' परत किएक त' इ सात समुद्र पार सँ एलै यै ,एकरा छोड़ल नहि जा सकै यै "

दुनू प्राणी बेटा कए मूँह ताकैत सोच' लागलाह जे केहन जमाना छै लोक कोना बदलि रहल छै अपन संस्कृति कए सात समुद्र पार सँ . . . । ।

अमित मिश्र


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विहनि कथा-नव अंशु

प्रभात बाबू माँजल संगीतकार-गायक आ शिवाजीनगर काँलेजक संगीत विभागक प्रधान प्रोफेसर छलखिन ।एक बेर पटना सँ प्रोग्राम क' ट्रेन सँ गाम आबैत छलाह ।भरि रातिक झमारल तेँए आँखि बंद केने सुतबाक अथक कोशिश केलनि मुदा हो-हल्ला सँ नीन कोसोँ दूर भागि गेल ।तखने एकटा नारी कंठ कोलाहल के चिरैत हुनक कान के स्पर्श केलकै ,आरोह-अवरोह के फूल सँ सजल सप्त-सुरी माला मे गजबे आकर्षण छलै । प्रभात बाबू आँखि खोलि चारू कात हियासलाह मुदा केउ देखाइ नै देलकै ,मुदा आभास भेलै जे ओ कोकिल-कंठ लग आबि रहल छै ।कने कालक बाद लागलेन जे ओ बगल मे आबि गेल छै ,आंखि खोललनि त' नीच्चा 10-12 वर्षक बच्ची झारू लेने फर्श साफ करैत आ लोक सब के एक टकिया दैत देखलनि ।प्रभात बाबू ओकरा लग बजा नाम-पता पुछलनि ,हुनका बूझहा गेलै जे ओहि अनाथ मे शारदा बसल छथिन ।ओकरा अपना संग चलबाक लेल आ नीक स्कुल मे नाम लिखा देबाक बात कहलनि , ओ तैयार भ' गेल ।अपना लग बैसा प्रभात बाबू गीत सुनैत रहलखिन ,ओकर हर-एक स्वर संग दुनूक दिल सँ निकलैत नव किरण आँखिक बाटे निकलि सगरो संसार के प्रकाशित क' रहल छल ।आशक नव अंशु पिछला जीवनक अन्हार के इजोर क' देने छल ।

अमित मिश्र

Sunday 8 April 2012

नाटक 'जागु'

नाटक: "जागु"




पात्र परिचय :



१. नारायण : एक गृहस्थ , उम्र ४५ वर्ष



२. लक्ष्मी:नारायण के पत्नी , उम्र ४० वर्ष



३.लाल काकी:नारायण के माए, उम्र ६५ वर्ष



४. विष्णुदेव: एक समाज सेवक , उम्र ४० वर्ष



५.अकबर:एक साधारण बुद्धिजीबी व्यक्ति , उम्र ३५ वर्ष



६.गीता :नारायण के ज्येष्ठ कन्या,उम्र १५ वर्ष



७.बिल्टू:बी.ए.पास एक बेरोजगार युवक ,उम्र २३ वर्ष



८. नन्हकू काका:एक बुजुर्ग ,उम्र ६० वर्ष



९. रहीम: १५ वर्षक अनपढ़ बालक



१०.सोहन:१३ वर्षक अनपढ़ बालक



११.मोहीत: १६ वर्षक अनपढ़ बालक


अंक प्रथम: दृश्य:प्रथम समय: राइत


(दलानक दृश्य , अषाड़क अन्हरिया राइत, लालटेन जरैत, दलान पर चिंतित मुद्रा मे नारायण टहलैत| नेपथ्य मे प्रसूति पीड़ा सँ लक्ष्मी कराहैत , थोड़े देर बाद बच्चाक जन्म आ कनबाक ध्वनि )

लाल काकी : (रुदन करैत प्रवेश ) रे नारायनमा ! रे नारायनमा !!

नारायण : की भेलई माए? की भेलई ??

लाल काकी: तोहर कर्म फुटि गेलौ रौ ! ई कुलक्षणी नामक लक्ष्मी चारीम बेटी कें जन्म देलकौया रौ ! अरे देव रौ देव !! कओन मुखे एकर पाएर हमर घर मे पड़ल रौ देव ! बेटी के बाहिड़ लगा देलकौ रौ देव !!
कोना क' चारिटा बेटी के विआहबाए रौ नारायणमा  ? देहो बिकीन लेबा' तइयो नै पार लगतौ रौ ! तोड़ा कहने छलिऔ दोसर विआह क' ले' --एहि मौगिया सँ तोड़ा बेटा नै हेतौ , मुदा , तू नै मानलाए हमर बात ! आब वंश कओना चलतौ रौ नारायणमा ?(जोड़ जोड़ सँ छाती पिटैत)

नारायण :(माए के बुझबैत ) माए! माए!! ई अहाँ किदौन कहाँ दून कियाक बजैत छी ?--एहि मे लक्ष्मी कें कोन दोष थिक ? ई त' भगवतिक कृपा ! एखन लक्ष्मी प्रसूति पीड़ा मे छथि , हुनका ऊपर एहन असहनीय  दुर्वचनक बाण नै चलाऊ !!

लाल काकी:(खौझा' क बजैत ) त' तोहर की मुन ? फूल-पान ल' आरती उतारीयनि!!

नारायण: हँ माए हँ ! लक्ष्मी आई फेर एक लक्ष्मी कें जन्म देलिहाए | माए! अहाँ जनैत छी --कन्यादान सभ सँ पैघ यज्ञ थिक | सौभाग्यवश: भगवतिक कृपा सँ हमरा चारिटा यज्ञक फल भेटबाक अवसर भेटलाए | अहाँ जुनि व्यर्थ चिंतित हौ |
      (विष्णुदेवक प्रवेश )
विष्णुदेव :लाल काकी , एना कियाक खौंझाएल छी ?

लाल काकी: ई लक्ष्मी रानी फेर बेटी बिएलिहाए !!

विष्णुदेव: ई त' हर्षक गप थिक ! बेटी के जन्म --बुझू साक्षात् लक्ष्मी के जन्म !! एहि मे एतेक खौंझेबाक कोन .....

लाल काकी:(बीचे मे टोकैत) हाँ ...हाँ ...., 'दोसरक घर जरैत छै त' तमाशा देखबाअ मे बड्ड नीक लगैत छै ...मुदा ,जखन अपन घर जरैत छै त' आगिक दाह बुझि पड़ैत छै |' अपना बेटी नै अछि ने , दूटा बेटे अछि --ताँए एहन गप निकलैया...
.
नारायण: माए....! अहाँ चुप रहब की नै ? (विष्णुदेव के)-- भाई , क्षमा करब ! माएक गप के जुनि .....

विष्णुदेव: .....भाई ! ई की करै छी ? अहाँक माए हमरो माए | हम काकी कें दुःख बुझि सकैत छीयनि ! मुदा मनुष्य की क' सकैत अछि .....??
 (लाल काकी के बुझबैत ) काकी जुनि खौंझाऊ ! कने सोचू !  पहिल- जे अहूँ  त' बेटी छी ! जौं बेटी नै  हेती त' बेटा-बेटी के जन्म के देत ?? दोसर स्त्री भ' स्त्री के प्रति दुर्यव्यव्हार , इ उचित नै थिक !
तेसर- बेटा-बेटी कें जन्म स्त्री द्वारा निर्धारित नै होइत अछि | विज्ञानं बतबैया कि बेटी-बेटा कें निर्धारण पुरुष दवारा होइत अछि |--ताँए जँ  नारायण भाई कें चारिटा बेटी भेलनि त' एहि मे लक्ष्मी भौजी कें कोनो दोष नै | ...ओ त' साक्षात् लक्ष्मी छथि |.....काकी !अहाँ के त' पाँच टा पुतौहु छथि --काएटा  लग मे रहि सेवा करै छथि ? एक लक्ष्मी भौजी छथि जेँ तन-मन-धन सँ अहाँक सेवा मे समर्पित रहैत छथि |....चलु ,एहि समय हुनका अहाँक जरुरत छन्हि | सास आ माए मे कोनो अन्तर नै होइत छै |
(लाल काकी अन्दर जाईत छथि )
    पर्दा खसैत अछि ......प्रथम दृश्य के समाप्ति |||

दृश्य:दोसर ,




(सोइरिक दृश्य )



(नारायणक प्रवेश )







नारायण:: (लक्ष्मी सँ )...नीके छी ने ? (बच्चा कें कोरा मे उठा लैत छथि )....लक्ष्मी , ई त' बिल्कुल अहींक दोसर रूप बुझि पड़ैत अछि !



लक्ष्मी:: गीता के बाबू , हम बड्ड अभागिन छी ! हम अहाँ कें बेटा नै द' सकलौं ! माए ठीके कहै छली , अहाँ दोसर विआह क' लियह....



नारायण:: (बीचे मे )....लक्ष्मी !!...ई अहाँ की कहैत छी ? दोसर विआह ! ओ हम!! कदापि नै !!! हमरा बेटा नै भेल त' एहि मे अहाँक कोन दोष ? जँ हमरा भाग्य मे बेटा नै होएत त' चारियोटा विआह केने कोनो लाभ नै ...







लक्ष्मी::..मुदा, अहाँक वंश...







नारायण:: ....की बेटी बापक अंश नै होइत अछि ? बेटीए सँ वंश चलत
देखिलियौ, नेहरूजी कें वंश इंदिरा गाँधी सँ चलि रहल छन्हि




लक्ष्मी::..हम अहाँक भावना कें बुझैत छी , मुदा, ई समाज नै बुझत ! हमरा सब दिन निपुत्री होएबाक उलाहना सुनै पड़त








नारायण:: त' की समाजक डर सँ हम अपन जिनगी नरक बना लीअ? की हम दोसर विआह करू ? वा बेटा के इंतजार मे एक सोरहि धिया-पुता जन्माऊ ?...लक्ष्मी , समाज एहिना कहैत रहत ...भुगतअ त' अपना सभ कें पड़त
हम कहैत छी ---आब ऑपरेशन करा' लीअ
आजुक युग मे एक -स -दू धिया -पुता बड्ड भेलहि, चाहे बेटा हुए वा बेटी ...







लक्ष्मी::..हम कहिया मना केलहूँवाँ ! हम त' दोसरे बेटी के बाद ऑपरेशन कराबअ लेल माइर केने रही, मुदा, माए जिद्द करए लगली...







नारायण::...नै, आब किनको जिद्द नै नै चलतैन ! अहाँ सोइरी सँ निकलू , तखन ऑपरेशन भ' जाएत




(नारायण...नारायण ...नेपथ्य सँ नारायण के केओ सो पाडैत)...याह एलौ ...



नारायणक प्रस्थान ....(पर्दा खसैत अछि )



दोसर दृश्यक: समाप्ति

नाटक: "जागु"




दृश्य:तेसर



समय:भोर



(विष्णुदेव दालान में कुर्सी पर बैस अख़बार पढैत छथि, तहने अकबर मियां के प्रवेश )



अकबर:: राम! राम !! विष्णुदेव भाई ....









विष्णुदेव::(ध्यान तोडैत )...ओ अकबर भाई ! अस्सलाम अलैकुम ! अरे , अहाँ त' दुतिया के चाँद भ' गेल छी ! कतअ नुका रहल छलौं ? आऊ, बैसू-बैसू (अकबर कुर्सी पर बैसइत छथि )...अओर हाल-समाचार सुनाऊ
कनियाँ आ धिया -पुता सभ ठीक छथि ने ?









अकबर:: हाँ ....! (चिंतित मुद्रा में ) एखन तइक त' ठीक छथि , मुदा.....









विष्णुदेव:: ....मुदा की ? कोनो विशेष गप ??









अकबर:: भाई ! हम रोजी -रोटी कें जुगार में अपन मातृभूमि छोइड़ मुंबई गेल छलौं , मुदा, ओतअ त' साम्प्रदयिक्ताक आगि में समूचा शहर धू-धू क ' जरि रहल छै ! लोक सभ रक्त पिशाचू बनल अछि ! कतेकों लोक अकाल काल कें गाल में समां गेल ! कतेकों घर सँ बेघर भ' गेल ! कतेकों बच्चा अनाथ भ' गेल ! कतेकों नारी विधवा भ' गेली !....भाई ! हमरा त' डर लागि रहल अछि --कहीं ई आगि मिथिलांचल के सेहो ने जराए दाए ?









विष्णुदेव:: (भावुक आ संवेदनशील भाव )..नै भाई, नै ! हम मिथिलावाशी एतेक निष्ठुर आ निर्दयी नै छी ! जेहन हमर बोली मीठ अछि , तेहने कोमल आ स्नेहमयी ह्रदय अछि !...हाँ , कहिओ -काल भाई-भाई में टना-मनी भ' जाइत अछि , मुदा, एहि कें अर्थ इ नै जेँ हम एक -दोसरक घर फूँकि देब !!









अकबर:: से त' ठीके कहै छी भाई
हम मिथिलावाशी सदा सँ 'शांति आ प्रेम ' कें पूजारी रहलौंहाँए
एतअ सीता सन बेटी जन्म लेली , जेँ नारी हेतु आदर्श थिक
राजा जनक 'विदेह' कहबैत छलाह अर्थात राजा होइतो ' माया सँ मुक्त छलाह '
प्रजा हेतु स्वयं ह'र जोतलाह
एतअ कें अन्न-पानि ततेक पोष्टिदायक आ बुद्धिवर्धक छल, जेँ विद्वानक भरमार छल
मुदा,
आब लागि रहल अछि जेँ एतौ राक्षस आ अमानुष प्रवृति कें लोक जन्म ल' रहल अछि !!





विष्णुदेव:: इ सत्य थिक जेँ किछु लोक आगि लगा अपन हाथ सेकबा में लागल रहैत अछि ....





अकबर:: ...त' भाई ! एहन लोक सँ समाज कें कोना बचाएल जाए ? कारण ! अशिक्षा आ गरीबी कें अन्हार चारू दिश पसरल अछि ! एहि कें लाभ उठा समाजक दुष्ट व्यक्ति भाई-भाई कें लड़ा दैत अछि !!





विष्णुदेव:: याह त' सभ सँ पैघ समस्या थिक ! यावत लोक शिक्षित नै होएत तावत एकर पूर्ण रूपेण समाधान संभव नै






अकबर:: भाई ! की मात्र पढि-लिख लेला सँ व्यक्ति शिक्षित भ' जाइत अछि ?





विष्णुदेव:: नै, कदापि नै ! शिक्षाक अर्थ थिक प्रेम, सहयोग , ज्ञान आ अनुशासन
जँ एही में सँ एकौटाक आभाव होएत त' शिक्षा पूर्ण नै भ' सकैत अछि । जेना आहि -काहिल देखबा में अबैत अछि --बहुतों डॉक्टर , वकील , कलेक्टर आदि बहुते पढ़ल -लिखल छथि, मुदा , अनेकों असामाजिक क्रिया -कलाप में लिप्त रहैत छथि , जाहि सँ समाज के अनेको हानी होइत छै ।









अकबर:: ....अर्थात लोक के जागरूक होएबाक जरुरत अछि । लोक के इ बुझअ पड़तै कि जँ एक भाई के घर जरतै त' दोसरों के घर में आगि लगतहि । जँ एक कें नैन्ना भूखे कनतै त' दोसर कें कोना नींद हेतहि !!









विष्णुदेव:: बिल्कुल सच कहलौं ! हम पूछै छी ---जँ गाम में आगि लागैत अछि, केओ बीमार पडैत अछि , बाहिर अबैत अछि ---तखन के काज अबैया ? अपने भाई आ समाजक लोक ने ! त' फेर कियाक हम कोनो नेता आ असामाजिक व्यक्ति कें बहकाव में आबि अपन ' वर्तमान आ भविष्य ' दूनू ख़राब क' लैत छी ?









अकबर:: हाँ भाई ! यावत लोकक बिच सामंजस नै होएत , तावत व्यक्ति आ समाज कें पूर्ण विकास संभव नै अछि !! (लम्बा सांस लैत )...ओना हम जाहि काज सँ आएल छलौं गप करबा में बीसैरे गेलौं ! ..भाई , काहिल ''ईद'' थिक , अपने सपरिवार सादर आमंत्रित छी ...जरुर आएब ।











विष्णुदेव:: अवश्ये! अवश्ये!!



अकबर:: (कल जोइर )...तखन आब आज्ञा दियअ ...।



प्रस्थान (पर्दा खसैत अछि )



दृश्य: तेसर (समाप्ति)

दृश्य: चारिम




समय: दिन









(खेत में नारायण खेत तमैत)



(अकबर कें प्रवेश)









अकबर: प्रणाम, नारायण भाई!









नारायण: खूब निकें रहू !









अकबर: बुझि परैया खेतक खूब सेवा करैत छी !









नारायण: की सेवा करबै ? माएक दूधक कर्ज कियो चुका सकैत अछि ? तहन जतेक पार लगैया करैत छी !









अकबर: ...ठीक कहलौं ! माए आ खेत में कनेकों भेद नै । लोक माएक दूध पीब आ खेतक अन्न खाए पैघ होइत अछि , मुदा, देखबा में अबैत अछि जेँ मनुष्य पैघ भेला' बाद माए आ खेत दुनु कें बिसैर भदेस में जा ' बैस जाइत अछि ।









नारायण: हम की कही ? ...कहबा लेल हमरा माए कें पांचटा बेटा , मुदा, केकरो सँ कोनो सुख नै ! चारिटा भदेस रहैत अछि आ हम एकटा गाम पर रहैत छी , जतेक पार लगैत अछि सेवा करबाक प्रयत्न करैत छी ! ओकरा चारू कें त' पांच-छ: वर्ष गाम एलाह भ' गेलहि ....









अकबर:..पांच-छ: वर्ष !! धन्य छथि महाप्रभु सभ ! की हुनका लोकन कें अपन जननी -जन्मभूमि कें याद नै अबैत छन्हि ??









नारायण:.. फोन केने छलाह --छुट्टी नै भेटहिया ! माए हेतु खर्चा हम सभ भाई मिल क' भेज देब ।









अकबर: तौबा!तौबा!! ई पापी पेट जे नै कराबाए ! एक बिताक उदर भड़बाक हेतु जननी-जन्मभूमिक परित्याग ! -भाई , की मिथिलांचल एतेक निर्धन थिक? की माएक छातीक ढूध सुइख गेलहि --जे एकर धिया-पुता कें दोसरक छातीक दूध पीबअ लेल विवश होबअ पइड़ रहल छै ?









नारायण: नै भाई, नै ! हम एहि गप के नै मानैत छी , जे माए मैथिलिक छातीक दूध सुखा गेलाए ! ओकर दूध त' बहि क' क्षति भ' रहल छै ! कारण, धिया -पुता सभ 'सभ्य आ संस्कारी ' दूध पिबहे नै चाहैत अछि ! ओकरा त' भदेसी डिब्बा बंद दूध पिबाक हीस्सक लागि गेल छै ।









अकबर: ठीक कहलौं ! धान कटेबाक अछि , एकटा ज'न नै भेट रहल अछि । सब दोसर जगह जा' गाहिर -बात सुनि गधहा जेना खटैत अछि, मुदा, अपन गाम आ अपन खेत में काज करबा' में लाज होइत छै ! भदेस में रिक्शा-ठेला सब चलाएत , मुदा, अपना गाम में मजदूरी नै करत ! आ भदेस में अनेरो अपन जननी-जन्मभूमि के अपनों आ दोसरो सँ गरियायत..









नारायण: अरे, हम त' कहैत छि--किछु दिन जँ जी-जान सँ एहि धरती पर मेहनत काएल जाए त' ई धरती फेर हँसत-लहलहाएत । कोनो धिया-पुता कें माएक ममताक आँचर सँ दूर नै रहए पड़तै ।









अकबर: मुदा, ई होएत कोना ? कोना सुतल आत्मा कें जगाओल जाए?









नारायण:एहि हेतु सभ सँ पहिने हमरा लोकन कें जाइत-पाइत सँ ऊपर उठि एक होबअ पड़त ! हमरा सभ कें बुझअ पड़त जे हम सभ मिथिलावाशी छी अओर हमर मात्र एक भाषा थिक 'मैथिली' , हमर मात्र एक उद्देश्य थिक सम्पूर्ण मिथिलाक विकाश ।









अकबर: (खेत सँ माइट उठबैत ) हाँ भाई, हाँ ! हम सभ एक छी --"मिथिलावाशी" । एहि माइट में ओ सुगंध अछि जकर महक अपना धिया-पुता कें जरुर खिंच लाएत ।(कविता पाठ)



"हम छी मैथिल मिथिलावाशी, मैथिली मधुरभाषी ।



मातृभूमि अछि मिथिला हमर, हम मिथिला केर संतान ।



सीता सन बहिन हमर , पिता जनक समान ।



नै कोनो अछि भेद-भाव , नै जाइत-पाइत कें अछि निशान ।



आउ एक स्वर में एक संग , हम मिथिला कें करी गुण-गान ---जय मिथिला , जय मैथिली ।



पर्दा खसैत अछि



चारिम दृश्यक समाप्ति

दृश्य:पाँचम




समय:दुपहरिया



(लाल काकी आँगन में धान फटकैत )









(विष्णुदेवक प्रवेश )









विष्णुदेव: गोड़ लागे छी लाल काकी !









लाल काकी: के..? विष्णुदेव ! आऊ, खूब निकें रहू ।









विष्णुदेव: लाल काकी ! बुझि परैया--एहि बेर धान खूब उपजलाए ?









लाल काकी : हाँ , सब भगवतिक कृपा ! जँ एहि तरहे अन्न-पानि उपजाए , त' मिथिलावाशी कें अपन गाम-घर छोइड़ भदेस नै जाए पड़तैं ।









(प्लेट में एक गिलास आ एक कप चाय ल' गीताक प्रवेश , गीता दुनु गोटे के चाय द' दुनु गोटे के पाएर छू प्रणाम करैत )









विष्णुदेव: खूब निकें रहू ! पढू-लिखू यसस्वी बनूँ ! अपन गीता नाम के चरितार्थ करू ।









गीता: से कोना होएत कका ?









विष्णुदेव:...किएक ? अहाँ स्कूल नै जाइत छी की ?









गीता:...नै !



लाल काकी: (बीचे में )...आब स्कूल जा' क' की करतै ! बेटी के बेसी पढ़ेनाहि ठीक नै , चिट्ठी-पुर्जी लिखनाई-पढ़नाई आबि गेलहि , बड्ड भेलहि ..









विष्णुदेव:...काकी !! पढाई त' सब लेल अनिवार्य थिक, चाहे ओ बेटी होइथ वा बेटा । आओर , खास क' बेटी कें त' बेसी पढबाक चाही , कारण, बेटीए त' माए बनैया । माए परिवारक ध्रुव केंद्र होइत छथि । हुनक संस्कार आ शिक्षाक प्रभाव सीधा -सीधा धिया-पुता आ समाज पर परैत अछि ।









लाल काकी:..सें त' बुझलौं ! मुदा, बेसी पढि-लिख लेला सँ विआहक समस्या उत्पन्न भ' जाइत अछि ! बेसी पढ़त त' बेसी पढ़ल जमाए चाही । बेसी पढ़ल जमाए ताकू त' बेसी दहेज़ --कहाँ सँ पा'र लागत ?...एक त' पढ़ाइक खर्च , ऊपर सँ दहेजक बोझ , बेटी वाला त' धइस जाइत अछि ।









गीता :....कका ! की बेटी एतेक अभागिन होइत अछि ? ... जकर जन्म लइते माए- बाप दिन-राइत चिंतित रहे लगैत छथि ! बेटीक जन्मइते माए-बाप "वर" ताकअ लगैत छथि ! आओर ओकर हिस्साक कॉपी-किताबक टका विआह हेतु जमा होबअ लगैत अछि !....कका ! की मात्र दहेजक डर सँ बेटी कें अपन अधिकार सँ वंचित काएल जाइत अछि वा पुरुष प्रधान समाज कें ई डर होइत छन्हि ----जँ नारी बेसी ज्ञानी भ' जेती त' हुनका सँ आगू नै भ' जाए ......???









विष्णुदेव:..नै बेटी , नै ! बेटी अभागिन नै सौभागिन होइत छथि ! बेटी त' दुर्गा , सरस्वती आ लक्ष्मी रूप छथि ! नारी त' पत्नी रूप में दुर्गा अर्थात "शक्तिदात्री ", माए रूप में सरस्वती अर्थात "ज्ञानदात्री" आ बेटी रूप में लक्ष्मी अर्थात सुखदात्री छथि । हमर शास्त्र में त' नारी कें उच्च स्थान देल गेल अछि , जेना ----



"यत्र नारी पूज्यन्ते , तत्र लक्ष्मी रमन्ते "



" या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण सवंस्थिता ।



नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो: नम: ।।"---आदि -आदि ...



ई जें समाज में उहा-पोह आ दहेजक प्रकोप देख रहल छी , एकर एकटा मात्र कारण थिक --'मिथ्या प्रदर्शन ' ! एक-दोसर कें नीच देखेबाक होड़ आओर बेसी-स-बेसी दोसरक सम्पति हड़पबाक लोभ ।









गीता: कका ! त' की हम पढि-लिख नै सकैत छी ? की डॉक्टर बनि समाजक सेवा करबाक हमर सपना पूर्ण नै भ' सकैत अछि ? की हमर आकांक्षा के दहेजक बलि चढअ परतै ?









विष्णुदेव: (गीता सँ )...बेटी , अहाँ जुनि निराश हौ ! अहाँ पढ़ब आ जरुर पढ़ब ! हम सब मिल अहाँ कें जरुर डॉक्टर बनाएब । होनहार पूत केकरो एक कें नै बल्कि समाजक पूत होइत अछि । (लाल काकी सँ )... लाल काकी , ई त' कोनो जरुरी नै जे जँ बेटी डॉक्टर छथि त' "वर" डॉक्टर आ इंजिनियर हौक ! जँ बेटी स्वंम आत्मनिर्भर छथि त' कोनो नीक संस्कारी आ पढ़ल-लिखल लड़का सँ विआह करबा सकैत छी । अपन सबहक नजरिया के बदले परत, तहने ई समाज आगू बढ़ी सकैत अछि । ... काहिल सँ गीता कें स्कूल जाए दिऔ । पढि-लिख क' अहाँक संग सम्पूर्ण समाज कें नाम रौशन करत । अच्छा आब हम चलैत छी ।(प्रस्थान)



दृश्य:पांचमक समाप्ति














राम लोचन ठाकुर क' दूटा कविता



कलकत्‍ता सँ वरिष्‍ठ कवि श्री रामलोचन ठाकुर दिल्‍ली पहुंचला आ दिल्‍ली सँ हुनकर दूटा कविता उडि़याइत -उडि़याइत वाया प्रयाग काशी हमरा लग पहुंचल । दूनू कविता अपन दृष्टि संपन्‍नता आ आधुनिक चेतनाक संग बेजोड़ अछि आ मूल रूप मे अहां सभक समक्ष ...

कविता आ कविता आ कविता

बन्‍धु !
एना होइत छैक
एना होइत छैक कहियो काल
भदवारिक सतहिया
माघक शीतलहरी
कोनो नव बात नहि
जखन दिन पर दिन सूर्यक अस्तित्‍व
रहैछ अगोचर
तें मानि लेब सूर्यक अवलुप्तिकरण
आलोक पर अन्‍धकारक वर्चस्‍व
कत' क' बुद्धिमानी थिक
सामयिक सत्‍य होइतहुं
शाश्‍वत नहि होइछ अन्‍धकार
आ आगू
जखन पूंजीवादी विस्‍तार लिप्सा क'
जारज संतान वैश्‍वीकरण
वृहत विश्‍व कें बाजार बना देबाक लेल
अछि उद्धत अपस्‍यांत
आवश्‍यके नहि अनिवार्य भ' जाइछ
प्रतिकार शब्‍द-साधक लेल
विचारब-बतिआएब कविताक माहे
भ' जाइछ अनिवार्य शब्‍द-संस्‍कृतिक रक्षार्थ
जे सभसँ पहिने होइछ आक्रान्‍त
बाजार संस्‍कृति द्वारा
बाजार-संस्‍कृति
भांट आ भरूआक बल पर
लतरैत-चतरैत विकृत आ विकार युक्‍त
बाजार-संस्‍कृति
आदमी सँ आदमीयत
शब्‍द सँ संवेदना धरि कें
वस्‍तु मे बदलि देबाक लेल रचि रहल षड्यंत्र
शब्‍दक अपहरण
शब्‍दार्थक संग बलात्‍कार
तखन एकमात्र कविताए रहैछ ठाढ़
अपन सम्‍पूर्ण ऊर्आ ओ आक्रामकता संग
बनल अभेद्य ढ़ाल
एकमात्र कविता
एकमात्र कविता
हँ बन्‍धु
हम कविताक बात करैत छी
शब्‍द-समाहारक नहि
शब्‍द -जादूगर द्वारा सृजित-संयोजित इन्‍द्रजाल

साहित्‍यक अन्‍यान्‍य विधाओ
अनुगमन करैछ कविताक
मुदा आगू त' कविते रहैछ
उएह करैछ नेतृत्‍व
मुक्तिक नाम पर
पददलित होइत कोनो देश कोनो जाति
जनतंत्रक नाम पर दलाल-तंत्र प्रतिष्‍ठाक प्रयास
सुरक्षाक मुखौटा तर लुंठित होइत सम्‍पत्ति -सम्‍मान
सभ्‍यताक धरोहर
संस्‍कृतिक पुरहर
काबुल सँ करबला धरि रक्‍तरंजित
जाति-सम्‍प्रदाय-पूंजीवादक त्रिशूल ताण्‍डव नृत्‍य
तखन कविता आ एक मात्र कविताए
उठओने मशाल
विध्‍वंसक विरूद्ध सृष्टिक
दानवताक विरूद्ध मानवताक
शोषणक विरूद्ध मुक्तिक
आशा-विश्‍वासक प्रतीक बनि
अपन सम्‍पूर्ण अर्थवत्‍ता
उपयोगिता-उपादेयताक संग
जातियता मध्‍य अन्‍तर्राजातियताक
व्‍यष्टि मध्‍य समष्टिगत चिन्‍तन चेतनाक संग
दीपित रहैछ कविता
हमर कविता
अहांक कविता
आशाक कविता
भाषाक कविता
कविता..
आ कविता......
आ कविता........!

2 एक फांक अन्‍हार:एक फांक इजोत

सांझ पडि़ते
अन्‍हारक गर्त मे
हेरा जाइछ गाम
एकटा आशंका
एकटा आतंक
पसरि जाइछ
सभ ठाम
गाम ....
जतए भारतक आत्‍मा रहैछ !
सांझ पडि़ते
शहर बनि जाइछ
लिलोत्‍तमा
नित नूतन आभूषण
नव-नव साज
रंग-बिरंगक आलोकक संसार
एकटा आकांक्षा
एकटा उन्‍माद
शहर....
जतए भारतक भाग्‍य-विधाता रहैछ !

Thursday 5 April 2012

प्‍ले ग्रूप

नगरक नामी इसकूल आ माए बाप सभ अप्‍पन बच्‍चा कें एडमिशन करेबा लेल व्‍याकुल .....नमा-दसमां क' एडमिशन खतम भऽ गेल छलै आ मात्र प्‍ले ,नर्सरी ,एल0के0जी0 क'एडमिशन बांकी रहै ।आ गार्जियन सभ कखनो ओइ ,मास्‍टर सँ कखनो ओइ मास्‍टर सँ पैरवी करेबा मे परेशान छला ।केओ ओइ नेता सँ ,केओ फलनमा गुंडा सँ ,केओ डी0एम0 क' अर्दलिए सँ पैरवी करा के निश्चिंत भऽ गेल छलै ।

आ जइ दिन 'प्‍ले' ग्रुपक परीक्षा छलै माए सब नबका साड़ी मे ,मैच करैत टिकुली ,घड़ी ,पर्स पहिर उपस्थित भेली ।बापो सभ बच्‍चा के कोरा नेने ,केओ डेनियेने ,केओ डांटैत ठाढ़ छला । आ वौआ सँ पूछल की गेल ? नाम आ बापक नाम ।किछु वौआ एगो दूगो राईम्‍स सेहो रटने छलै ।तें बहुतो बच्‍चा गोर नार भेने ,बाप -माए क' आर्थिक स्थिति सँ संपुष्‍ट होइत पास भऽ गेलै आ जे सभ छटेलइ ,ओकरा लेल एगो भाषा जिम्‍मेवार छलै ।जे माए-बाप मैथिली मे बाजै छलखिन आ अप्‍पन बच्‍चा संग सेहो बतियाइत रहथिन ,हुनका सभ कें छांटि देल गेलेन ।किछु बच्‍चा अप्‍प्‍न माए-बापक धोती कुरता आ सीधापन-सच्‍चापन सँ सेहो छंटा गेल रहै ........ई ईसवी सन 2012 क' मार्च महीना रहै आ धरती खूब तेजी सँ घूमैत छलै ......

Wednesday 4 April 2012

दू गुरू

हम प्राय: गीदड़क गति देखए छियइ
ओकर डर के नइ
आ कुकुरक स्‍नेह साहस
ओकर डोलैत पूछरी नइ
गाय क सीधापन
अहांके प्रिय
थन आ दूधक धार
आश्‍वस्‍त करैत
हम हरदम देखैत छियइ लेरूक मुंह
कविता मे विष आ शत्रुक खोजबा लेल
प्राय: अहां सांप लग जाइ छी
अप्‍पन पोटरी किएक ने ढ़ूरहए छी
अहांक उत्‍प्रेक्षा भिन्‍न
उपमा रूपक भिन्‍न अछि
किएक त हम दू गुरूक चेला छी

दू गुरू

हम प्राय: गीदड़क गति देखए छियइ
ओकर डर के नइ
आ कुकुरक स्‍नेह साहस
ओकर डोलैत पूछरी नइ
गाय क सीधापन
अहांके प्रिय
थन आ दूधक धार
आश्‍वस्‍त करैत
हम हरदम देखैत छियइ लेरूक मुंह
कविता मे विष आ शत्रुक खोजबा लेल
प्राय: अहां सांप लग जाइ छी
अप्‍पन पोटरी किएक ने ढ़ूरहए छी
अहांक उत्‍प्रेक्षा भिन्‍न
उपमा रूपक भिन्‍न अछि
किएक त हम दू गुरूक चेला छी

प्रेमक हार

दिनहि पहिल बाधक भेल मान
बढ़थि चान बढि़ गेल अभिमान
मानक हरिण भेल खूंखार
प्रेमक शावक भेल शिकार
दिन पांचम छलबलबौकार
लुप्‍त विवेक छल अस्‍त विचार
हमर विजय आ प्रेमक हार

Tuesday 3 April 2012

वियाह

मेडिकल कॉलेज मे कतेको प्रकारक वियाह लोकप्रिय छलै ।' माला वियाह'मे केवल माला पहिरेला के बाद दूनू प्राणी संग रह' लागैत छलै ।'कोर्ट वियाह' मे कचहरी मे सप्‍पथ खाएल जाइत छलै ।'मंत्र वियाह' गाम मे आ गारजियन लोकनि के सामने संपन्‍न होइत छल ।पूरा गाजा-बाजा ,सेंट-सिनेमा ,फटक्‍का-रोशनी क' संग ।आ एकटा छलै 'सुतौआ वियाह' ।सर्वाधिक लोकप्रिय ई वियाह महीना दूमहीना तक संग रहला ,खेला-पीला ,सूतला-उठला क'बाद होइत छल ।आ सभ विवाहक पक्ष मे आ विपक्ष मे खूब तर्क बहस चलैत छलै ,कखनो कॉलेज मे आ कखनो बाहर ।कखनो कखनो एक प्रकार दोसर प्रकार मे विलीन भ' जाइत छलै ।जेना कि प्रवेश अखन 'सुतौआ वियाह' केने छैक आ सहरसा स्थित गाम मे हुनकर माए-बाप लाख नाकर-नुकुर ,भभटपन ,रूस्‍सा-बौंसी ,जहर-जेलक धमकी क' बावजूद किछ नइ क' सकला ।मुदा हुनका आशा छनि जे ई वियाह एकदिन 'मंत्रवियाह' मे बदलि के रहतए .......

Sunday 1 April 2012

नवराति

आइ तऽ पांचमे दिन
नवरातिक चारि दिन बचले बचल
मुदा नइ गिलाइत ई आलू ,सिंघाड़ा कऽ रोटी
आ सेंधा नमक मे सट्टल पाखंड
बूझऽ दे भूखक रंग
स्‍वाद लियऽ दे पानि के
थाहऽ दे अपन पेटक धैर्य
नापबें तऽ नापि ले
जलक कैलोरी मूल्‍य
मुदा साबूरदाना कऽ बात नइ कर
हम देखऽ चाहैत छियइ ओ व्रत
जे देशक कोटि कोटि जनता
बिना पतरे गुणेने राखैत छैक
पाप-पुण्‍यक कोन बात रहल
तमाशा तऽ खतम हेबे करतै
बस हम्‍मर झंडी कऽ इंतजार कर
प्रयोग जारी रहऽ दे
आब बचबे कएल कत्‍ते दिन ?