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Sunday 16 September 2012

यदि हम अहांक बातक जबाव नइ दी

जौं कखनो अहांक बात ,फोनक जबाव नइ दी
 अहांक बात पर हुंकारी नइ
तुक मे तुक नइ मिलबी
ठहक्‍का पर सूर नइ मिलबी
तखन हे मातु पिता सखा सहोदर
बूझब जे हम छी कतौ फंसल कंटगर दांतक बीच ।
या बाते नइ अछि अहांक दमदार
ईहो भ' सकैछ जे हमरा हाथ मे हो कागजी नेमो
आ कन्‍हा पर गमछा
आ हम नजरि जमेने होए अधसरक दांत दिस
तें खराब जुनि मानू
हे मित्र सखा दोस गामक शहरक आ इंटरनेटक
एकरो संभावना कम नइ
कि हमरो मोन मे होए कोनो खेल
 आ हमहूं फेकैत होए कतौ पासा
नजरि गड़ेने प्‍यादा आ मंत्री पर
गिद्धी दृष्टि कि केओ गिरै आ हम लपकी
हमरो मोन मे होए किछु आर
आ हम बाजैत होए किछु दोसरे चीज
तें हे मित्र क्षमा चाही
यदि कखनो कखनो
कोनो अनुकूल प्रतिक्रिया नइ आबै
त' ग्रेड दैत बताह पागल बन्‍तू
बढि़ जाएब कतौ आगू.......

Saturday 15 September 2012

हम एगो गाछ छी

हम एगो गाछ छी

अपन वंशक एकमात्र गाछ
एहि नम्हर परतीमे धीपैत ठूंठ पेड़
इतिहासक पन्नामे डूबल
पल-पल जीबाक लेल तरसैत
दर्दक सागरमे ठाढ़
हम एगो गाछ छी

कहियो साँझ-भोर हमर ठाढ़िपर

नवाह जकाँ होइ छल अनघोल
शीतल छाहरिमे एतै बैसकऽ दू जुआन मन
रिश्ता जोड़ैत ,बाजै छल नव-नव बोल
चिख कऽ बटोही मीठगर फल
दैत छल आशीषक टोल
आइ वैह बोल सुनै लेल
क्षण-क्षण तरसैत
हम एगो गाछ छी

अंधविश्वासक चक्करमे
हलाल भेलोँ जेना खस्सी
काँपैत रहलौँ भविष्यक भयसँ
जेना नवयौवनाक अधरक हँसी
मनुखक नीज कोटी स्वार्थसँ
बली-बेदी पर चढ़ैत
हम एगो गाछ छी

माँटि कतऽ छै आब शहरमे
कंक्रीटक मोट परत छै सतहपर
पानियोँ तँ गुलैरक फूल भेलै
हमरा लेल नै टंकीमे छतपर
हम जनमि नै सकै छी दुर्भाग्यसँ
कोखमे बेटी जकाँ मरैत
हम एगो गाछ छी

हे मुर्ख मानव! आबो तँ जाग
हमरा मारि कऽ की लेबेँ
बेटी गेलौ तँ वंश गेलौ
हम मरबौ तँ तूहूँ मरि जेबेँ
एहि महामुर्खक दुनियाँकेँ
आब छोड़ैत
हम एगो गाछ छी ।

{हमर हिन्दी कवितासँ मैथिली अनुवाद}

अमित मिश्र

Sunday 9 September 2012

मनोज बाबू छौड़ा ताकैत छथिन

रिटायरमेंटक बाद मनोज बाबू एकटा लघु डेयरी खोलि नेने छथिन आ डेयरी की छैक.....वैह बूझू जे छह-सात टा गाए छैक ,बिना बाछा बाछी के ।लागैत छैक मनोज बाबू नौकरी आ जिनगीक सब अनुभव डेयरी मे राखि देथिन ।आ नोकरी मे अनुभव की होइत छैक ,वैह बेइमानी ,लापरवाही ,बकहूत्‍थनि आ दस सँ पॉंच तक कुरसी पर बैसनए ।से मनोज बाबूक कनियां पहिलुके दिन कहि देलखिन ' पलान नीक अछि आ खराब से अहां बूझू ,मुदा छह-सात टा जीव के राखनै सधारण बात नइ' आ मनोज बाबू नोकरी वला लापरवाही के बिसरि गोबर -करसी मे लागि गेला ।प्रारंभ मे त' बड्ड मून लागलेन ,मुदा दस-पंद्रह दिन बाद धीरे -धीरे मोन अलसियाब' लागइ........

आधा दरजन जानवर ,केओ ने केओ गोबर गोंत करबे करए आ मनोज बाबू तुरत उठि खर्रा सँ खड़रनए शुरू क' देथिन ।एहनका रूटीन किछु दिन चललै ,फेर अनठाबै क' क्रम ........कनियां ,बेटा आ बेटी के अरहेनए ,बेटा आ बेटी द्वारा बहाना बनेनए......बेटा-बेटी के मारनै ,मारबा लेल कनियां सँ लड़ाई -झगड़ा ,रूसनए ,घर सँ भागबाक उपक्रम केनए,भागनए आ लौटनए ।एना किछु दिन चललै ।आब नोकर तका रहल छैक ।दूधक ग्राहक ,कुटुम-परिवार ,रस्‍ता बाटे जाए वला लोक सभ ,सभ कें मनोज बाबू कहैत छथिन जे एकटा छौड़ा ताकि दिय' ..........अहूं सब सतर्क रहू ,मनोज बाबू भेटबे करता आ भेटता त' कहता एकटा छौड़ा के विषय मे आ छौड़ा क' रंगबिरही गुण-दोष : कत्‍ते टा ,कोन कोन गाम दिसक ,कोन कोन जातिक ,बेसी नमहर नइ हो ,नेटा पोटा नइ हो ,दरमाहा कम होइ ,काज रेगुलर करै ,स्‍वस्‍थ होए ,जल्‍दी जल्‍दी गाम नइ भागै.....आदि आदि ।

Thursday 6 September 2012

गजल - भास्कर झा


किछु लोक किछुके हरकाबए पर लागल छै
विरोधक आईग में झरकाबए पर लागल छै।


जिनका जे नीक लागय सब बड्ड नीक करैया
जाति-पातिक नामसं भरकाबए पर लागल छै।

नवतुरियाक उमंग देखि मिथिला-मन गवैया
एहन सुन्नर तानके कनाबय पर लागल छै।

गीत-गजलक छंद मुक्तक हायकू काव्यक अंग
सर्जन सुन्नर बारीघर खसाबए पर लागल छै।

अलभ्य लाभके लोभमें पड़ल करय आगू पाछू
भेटल जीनगीके अहिना सड़ाबए पर लागल छै।

-----------------भास्कर झा 6 अगस्त 2012

Wednesday 5 September 2012

तीन छह छत्‍तीस

साउस कहलखिन कनिया ठीक सँ रहब
कूलरक अवाज मे कनिया किछु नइ सुनलखिन
कनिया वौआ के मारबै नइ
छौंकक दौंक आ खोंखी-छींक मे किछु नइ सुनेलए
दूनू गोटा झगड़ब नइ
कनिया सीरियलक ठहक्‍का मे मगन रहथिन
आ कनियो कहलखिन माए फेर आयब
ई छथिन त' घर घर लागै छैक
आ साउसक कान कमजोर
किछु बुझलखिन किछु नइ
आ जुगजुग जीबू आ माथ लाल आ लहठीक हरदिरंग अमर रहै
मुंह पटपटबैत आंखि मूनने
चढि़ गेलखिन रिक्‍शा पर
रस्‍ता मे दहोबहो नोर चूबैत
केना रहतै नवकनियां
आ दूगो छोटछोट बच्‍चा
केओ नइ देखलकए
ने शहरक लोक
कोनो कौआ कोनो समदिया
ने रिक्‍शे वला
ने कनिया आइ राति सपने देखलखिन

आ कनिया सुस्‍ताइत रहथिन
साउसक विदा भेला पर
कनिया के लागलेन जे एगो रहै हवा
से बिला गेलै
कुनो चुम्‍मक
कुनो रिमोटक हरेबाक
खुशी आ दुख
घरक देबाल पर रहै.........




















Saturday 1 September 2012

छुतहर घैल

 छुतहर घैल जनमे सँ छुतहर नइ छलै
जनमे सँ नइ छलै ऐ मे  धोइन-धाइन
जनमे सँ नइ रखाइ आंठि-कूठि
ईहो कुमहिनियाक माथ पर आयल छलै
ईहो अछिंजल सँ धुआयल छलै
तुलसी गंगाजल एकरो भाग्‍य मे छलै
गृहस्‍थक अन्‍न-पानि
दूध-दही
भाग-सोहाग ओतबे
जत्‍ते छुतहर घैल के
आ एकदिन एकाएक
पवित्र घट बनि गेलै छुतहर घैल
कोनो अपवित्रक अस्‍पर्श
लिखा गेलै एकरा माथ पर
भाग लिखा गेलै करिया लोहा सँ
आ एकर जग्‍गह रहै
कोनो पोखरि कात
कोनो गाछी कोनो रोड कात
बाध वन एकात
मुदा ई भगगर रहै
गिरहत राखि लेलखिन
दलान पर एकात मे
लोक-वेद बच्‍चा धियापूता सँ दूर
आ ई संग्रहिणी बनि गेलै
सब उच्छिष्‍टक स्‍वर्ग
आ माछी पिलुआ क' असंख्‍य जातिक संग रहैत
छुतहर घैल बड्ड मोसकिल सँ रोकि पाबै अपन हँसी
जखन गिरहत अपन नाक मूनै
खखसै  फेकै थूक खखार
आ हँसे छुतहर घैलक भाग्‍य