युवाकवि विद्यापतिक पुरूषपरीक्षा
कवि सँ बेशी ओइ जुगक मांग
पुरूषार्थ आ ओइ पौरूषक प्रशंसा
ओइ दरबार आ बूढ़रसिक समै केर छन्द
तैयो ओइ कवि के शत्रु साओन बिढ़नी के छत्ता
केओ किताब चोराबै ,केओ पांड़ुलिपि पोखरि मे फेंकि दै
कतेको चेतावनी ,रस्तारोकी ,छीनाछोरी
विद्यापति जानैत रहथिन
कि पुरनका पोथी बिसरले सँ नवपोथीक आगमन
पुरूषपरीक्षा लिखै काल हुनकर बैठकी भरल रहै
वेद-पुराण ,व्याकरण ,न्याय-स्मृतिक ग्रंथ सँ
जयदेव ,वात्स्यायन आ भामहक भार सँ दाबल
पाणिनी आ पिंगलक बान्ह सँ पिसाइत कल्पैत युवाकवि
सबसँ पहिले फेंकलखिन पुराण आ स्मृति
तखने प्रकट भेलखिन कीर्तिलता आ कीर्तिपताका
मुदा एखनो संतोष नइ
ऐ कीर्ति के तुच्छ बूूझैत बढि़ गेलखिन आगू कवि विद्यापति
फेर फेंकलखिन छंद-काव्य आ दर्शनक शताधिक पोथी
फेकैतो काल प्रणाम करैत ओइ पोथी सभ के
महल आ बैठकी कें त्यागि
आबि गेलखिन जन आ जनपदक मध्य
जनपदक संगे-साथ चिन्ह' लागलखिन जनमन
तखने त' दुखहि जनम भेल ,दुखहि गमाओल
ऐ दुख के गमिते उदित भेलखिन महाकवि
महाकविक कविता राजा जनकक नइ
आरक्षित बस जनजनक लेल
जइ कविताक छाती मे धुकधुकाइत रहै मिथिलाक श्वास
ई अमरकविता तुरूकक कागज पर लिखाइ सँ बेशी अमर भ' गेलै
कोटिजनक ह्रदय मे ,रक्त मे ,माटि मे
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हयौ साहेब
अहां के एखनो एहनेसन लागै कि विद्यापति बाभनक कवि
आ विद्यापति कें जियेने रहलेन बाभन सब
अपनेने आ माथ पर चरहेने रहलेन बाभन सभ
हयौ महराज
विद्यापति त' भ' गेलखिन चारू लोक सँ बाहर
महराजक दरबार सँ
पंडितक चुटपांति सँ
शास्त्रार्थक झूठ-अखाड़ा सॅ
अहॉं नीक-हमहूं नीक सँ
मुदा महाकविक कविता जीयत रहलै
माथ पर सम्हरल बोझक हुंकारी सँ
काशी आ नेपालक व्यापारी सँ
जहिना प्रिय असोम आ बंग मे
तहिना अराकान आ अंग मे
महाकवि बरहैत गेलखिन
महफा उठेने कहारक पदचाप संग
मखान तोड़ैत मलाहक अलाप संग
महाकवि आगि भ' गेलखिन
अगहन-पूसक घूर मे
महाकवि पाथर भ' गेलखिन
दुसाधक दुख संग
महाकवि गामबदर
डोम-हलखोरक टोल-टापरि मे
अधमरू महाकवि कें आश्रय भेटलेन नारीजनक कंठ मे
दुख आ कष्टबोधक जांता-गीत बनि
मुदु प्रतिशोधक उक्खडि़-समाठ छंद मे
महादुख पर लेपैत सोहरक लेप मे
महाकवि जी गेलखिन विषम-विवाहक व्यंग्य मे
महाकवि जी गेलखिन बूढ़-छिनारक ललैठी धरबा लेल
सभ पोथी-पतरा फेकैत
पुर्नजीवित महाकवि
बस रूकि गेलखिन मैथिलानीक लोर संग
यैह लोर शालिग्रामी ,बागमती कें भरैत
कोशी ,गंडक कें तोड़ैत
सभ साल दहबै-दहाबै छै मिथिला के