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Monday 26 December 2011

निशांत झा क कविता


कथ्‍य आ भाषा मे एकटा ‘इंटेगरल ‘ संबंध होइत छैक ,आ मैथिली कविता मे ई इंटेगरिटी निशांत झा क कविता मे बहुत साफ मिलत ।हुनका जे कहबा के छनि ओ साफ साफ कहता ,ई सपाटबयानी हुनकर सृजनशीलता क प्रतीक ।उधार बिंब ,प्रतीक आ उधार अनुभव सँ लाख गुणा नीक ।आधुनिक कविता अत्‍यंत स्‍पष्‍टता सँ ‘आब्‍जेक्टिव कोरिलेटिव(इलियट) आ ‘स्‍ट्रक्‍चर’ एवं ‘टेक्‍सचर’ मे तनाव क बात(क्रो रैन्‍सम) करैत अछि ।आ मैथिली कविता के सेहो एकरा स्‍वीकार कर’ पड़तै आइ ने त’ काल्हि ।बल्कि यात्री ,राजकमलक कविता मे ई संगति अछियो ।आ हमरा सब लेल ई अत्‍यंत खुशी क बात कि निशांत सन नवका संगी सेहो अपन तरीका सँ अपन बात कहैत छथि । बधाई निशांत ।‘गौरवशाली प्राचीन ‘क लेल नइ ‘अनगढ़ नवीन ‘क लेल ।
कविता,
दांत में फंसल
अड्बंगा और क्लिष्ट शब्द के काफिया नय थिक
कविता,
जिंदगी के ख़राब अनुभव जे
कारी चट्टान
के निच्चा
पियर रेत स डिरिया रहल अछि , गर्म चिटठा जकां अछि
इ कविता के आकार
कोनो समाज के कच्छ स पैघ त नय
मगर ओय समाज के न्याय स पैघ अछि
जे अन्हरिया राइत में भुईक रहल कुकुर के वफादार होबक प्रमाण पत्र दैत अछि
की अछि कविता
मासिक धर्म स निवृत्त स्त्री के चेहरा के हर्ष
इ त देश के दुर्भाग्य अछि
कि इ देश के कवि
या त माशूक पर कविता लिख रहल अछि
या बसंत पर...
सरकारी और ईमानदार जमादार के आंइख
जे कोन पर पड़ल लाल पीक जकां ललचाबईत अछि
और हमर धर्म बरगद के छाहैर पर शिक्षा दैत अछि
" इ जे कोना पर लाल अछि है"
सूरज के अह्ने गुलाल अछि "
लिखनाइ एतेक ख़राब नय
की बुराई के स्थापना केल जाय
और हमर भरती ओतय निःशुल्क भ जाय
फेर आहांक लेल की पथ बांचत


2सोचलौ हम एक दिन संसार में सैर करू
अपन कल्पना के लहर पर धीरे - धीरे हेलअ लागु
तखने विचार आयल मोन में कल्पना स उपर उठू
अपने चलइते चलइते धरती पर पैर राखु

जखन धरलौ पग हम पृथ्वी पर
किछु अहसाश भेल अहन
ज़िंदगी के चाइर दिन
और , तयो जीवन कहेन ?

अतए नजइर उठेलौ त पेलौं
कृषक श्रम दान क रहल छल
कानी हाथ रुकइ नै छल
एहन मेहनत करैत छल .

आँइख धँसल छलय भीतर
भूखआयल पेट पिचइक रहल छल
पसीना के कंचन बूंद सँ
तन हुनक चमैक रहल छल .

देख क हुनक इ हालत
एक आघात भेल ऐना मोन पर
जीवन पाललक जग के जे
रक्त देखैत ओकर तन पर

किछु पग और चल्लौ आगा
एगो आलीशान भवन ठार छल
श्रमिक के शोषण कैर कैर क
अपना के गर्वित समइझ रहल छल .

कहलक गर्व स ओ ऐना
इ सब हमर कर्म के फल अछि
कयलक ज़िंदगी भइर श्रम ओ
लेकिन तयो निष्फल अछि .

तखन पुछ्लाऊ हम ओकरा स
सुन तोहर कर्म कहेन छऊ
हंइस क बजल ओ ऐना
सबता धन के आइड़ में छुपेल अछि .

सोचलौ हम धन कहेन अछि
जे सब किछु छुपा लैत अछि
पाप के पुण्य और
पुण्य के पाप बना देत अछि .

सोचइत सोचइत गाम क दिश बढ़ल कदम
कि लोग के कहेन अछि भरम
एक दिन अहिना फेर ओहे दिश पग बैढ़ चलल
जतय कृषक और भवन छल मिलल .

देखलौ ओतय हम -----
कृषक मग्न भ काज क रहल छल
पसीना के पोइछ वो हर जोइत रहल छल
दृष्टि गेल भवन पर त बुझ्लाऊ
कि मात्र एकटा खंडहर ओतय ठार छल .

ओ देख क हमरा
ओकर बात के बुझाय में आयल
कि कर्म के अनुसार
आय तू इ फल पेलें
हमरा मुँह स ओय समय
यइ शब्द निकइल गेल
नय ओझ्रयब इ भ्रम - जाल में
नय त इंसान त अतए छलल गेल .


3कांच के इ रंगीन टुकड़ी

इ कांच के रंगीन टुकड़ी
जखन देखैत छी एकरा कतौ पड़ल
मजबूर करैत अछि हमरा नय अछि इ सड़ल
और हम एकरा अपने संगे ल आबई छी दिल में
अपन साथ अपन आशियाना में
बहुत किछु कहैत अछि इ इशारा में

सोचैय्ते रहय छि हम
की जखन इ रहल हेती हिस्सा ककरो
लोग कहैयत हेती खिस्सा एकरे
इ तारीफ़ के काबिल छल तखन
एकरा कियो देखैतो ने अछि अखन
मगर लागैत अछि हमरा किएक अहेन

की अयमे नशा बचल अछि पाहिले जेहेन
बस जरुरत भैर अछि एकरा परख के
की बरक़रार अछि कशिश अखन
तुटले त अए बर्बाद नय अछि
एकर रंग ककरो मोहताज़ नय अछि
इ कहैत अछि अपने आप कहानी

की रहित छलैय दुनिया एकर दीवानी
एकर आस्तित्व मैं जे कमी अछि
वो हमर आशियाना के जमीं अछि
और हम पूरा करइत छी जोड़ैत छी
कतेक रंग के टुकड़ा के मिलाबैत छी
इ कांच के टुकड़ा के जकां

जिंदिगी के कहियो ने करब तबाह
की इ त जुइर जायत ककरो ने ककरो स
मगर जीवन जूडैत नय अछि आसानी स
जे बिखरित अछि टुइट क कहियो
त लाख कोशिश के बाद जुड़ाए नय
यह कहैत अछि इ टुकड़ा रंगीन अहाँ टूटू नय

तबाह केने जीवन जुर्म अछि संगीन
और यह रहित अछि कोशिश हमर
की कहियो बीखैर क ने टूटू कहियो
कोनो कांच के टुकड़ा या जिंदगी ककरो
कियेकी बिखरित किछु निक नय


4कम आमदनी में घर चलब के अभिनय
सुखेल रोटी खा क पेट भरअ के अभिनय ..

छोटकी कुटिया और टुटल खटिया ….
फाटल चाद्दैर में ठीठूइर क सुतय कइ अभिनय ..

अछि कतेक आम इ शक्श जिंदगी के फिल्म में …
कानू त लागे अभिनय .. हसू त लागे अभिनय ..

ऊपर स इ गरीबी रोज़ .. खलनायक बैन जाइत अछि ..
दुखी मोन भेलो पर .. ख़ुशी होयबाक अभिनय …

जिंदगी देखू चन्द मानव केर .. कतेक अछि सस्ता ..
मुर्दा जस्बात के संग .. जिबाक के अभिनय ..

आय चाहे जनाँ होय .. काइल जरूर निक होयत …
सहमल आशा लक .. पूरा करबाक के अभिनय ..

कम आमदनी में घर चलब के अभिनय
सुखेल रोटी खा क पेट भरअ के अभिनय ..



5किएक आखिर किएक
किएक अते मजबूर होइत अछि माँ

भोर के पहिल इजोत में
आईयो तोरा ताकि छऊ माँ

ओ मह्कैत कली के
परागकण में तोरा खोजैत छऊ माँ

ओ फूल के खुशबू
में आईयो तोरा ताकि रहल छऊ माँ

अपन माँ के आँचल में
अपन ममता तकैत छैथ माँ

तरेगन के ओय रौशनी में
सिर्फ ओय एक सितारा के तकैत माँ

पतझड़ के सुखेल पात में
एगो हरियरी के ताकैत माँ

सबटा नन्ही मुस्कान में
तोहर वो मुस्कान ताकैत माँ

कलरव करैत पंची के
फरफराहट में तोरा ताकत छाथुन माँ

ओउंस के ओ बूद पर
एकता जुगनू के ताकैत माँ

अंधियारी ओ राइत में
ओय चान में तोरा तकैत छ्थुन माँ

निशांत झा

Sunday 25 December 2011

अमित क’ कविता


मैथिली कविता मे एकटा नवीन स्‍वर ,विषय सर्वथा नवीन नइ ,मुदा एकटा बेचैनी ,एकटा असंतोष अमित मिश्र जी क कविता मे अछि ,ई असंतोष भविष्‍यक उच्‍च्‍कोटि क’ कविता मे परिणत होयत ,इएह कामना ।
एकटा सच
काईल्ह देखलौ
मास्टरक एहन दशा.
चढल छल दारुक नशा.
आकी ताड़ी भाँग-धथुराक.
.सड़क कात पेटकुनीया देने.
माछीक छल बनल बथान
,मैल श्याम बरु दामिल कपड़ा,
कुकुरक छल बनल अखाड़ा.
चलल समाज ध रुमाल नाक पर.
थु-थु गरीयाबैत क्रेध माँथ पर.
राष्ट्र निर्मान केर ठिकेदार ओ.
तहन हुनक एहन छेन हाल.
की पढ़बैत हेता विद्याक मंदिर मेँ.
दारु चखना नारीक चाल
.अमित छगुन्ता मे पड़ल देख क
, टुटी गेल सबटा आशा
.काईल्ह देखलौ . .


2(गाछक सँदेश )
जौँ क्रोध अहाँ के आबी सकै यै ,
हमहू त' सजीव छी .
जौँ जहर सँ' हम मैर सकै छी .
त' हमहू क्रोधित भ' सकै छी .
अहाँ मारलौँ हमर कतेक भाई .
तेँ देखियौ ने मौसम आई .
2012 मे प्रलय हेबे करत .
हम हँसब आ अहाँ सब मरब .
पर जौँ रोक' चाहै छी प्रलय .
त' बढ़ाबू हमर जनसंख्याँ
जौँ खुश क' देबै अहाँ हमरा .
त' हम वचन दै छी
नै हेतै प्रलय .
नै डोलत हिमालय .
बचल रहत सबहक आलय . . . . . . .


3समाजक सुरसा:दहेज
रात बगल के घर मे छल उठल धुआँ,
हवा महके जेना कतौ जरै नुआ,
मोन मे बड़ भारी अचरज भेलै . . .
देखू दहेज के कारण एगो और जैर गेलै . . .
साल भैर सँ' सुनै छलौ गाली-गलौज,
बपटुरी बेटखौकी कहे लड़का के भौज,
अधरतीए मे लाश ओकर उठी गेलै. . .
देखू दहेज के कारण एगो और जैर गेलै

एक लाख रूपैया के माँग छलै,
90-95 के इन्तजाम छलै,
मात्र पाँचे के खातिर जाग छुटी गेलै,
देखू दहेज के कारण एगो और जैर गेलै

ठार भ' समाज सब देखै छलै,
छ'(6) महिना के नेना भुखे बिलखै छलै,

ई नरक मे बेटी के किय(why) ठेल देब,
ऐ सँ' बढ़िया जनमिते घेट घोटी देब,
हेयौ मिथिला के बासी जुनी बनु कठोर,
जुनी लिय दहेज कहै छी कर जोर,

किएकी(क्यो की)

विधि सब संग एके टा खेल खेलै
देखू दहेज के कारण एगो और जैर गेलै


4टाका टाका सब करै यै .
टाका सबहक पहचान यौ .
सब फसल ई भवर जाल मे .
टाका सबहक जान यौ .
टाका भैया टाका माता आ टाका भगवान यौ .

टाका के ई लोभ मे पैड़ क'
सगरो पड़ै यै डाका .
घर मे डाका बैँक मे डाका आ चलतो वायुयान मे डाका .
डाका के ई वायरस सँ' सब केऊ परेशान यौ .
टाका भैया टाका माता आ टाका भगवान यौ

घुसखोरी बेईमानी के धन्धा फले-फुलै .
कोनो काज करै सँ' पहिले 100 टाका ल' लै .
कोनो जगह नै छुटल ऐ सँ' दफ्तर या दोकान यौ .
टाका भैया टाका माता आ टाका भगवान यौ

किडनैप हत्या बम धमाका
सब टाका के रूप
अछि
खादी खाकी आ मजदूर सब टाका लेल व्यस्त अछि .
टाका सँ ईमान बिकै यै
आ बिकै इन्सान यौ
टाका भैया टाका माता आ टाका भगवान यौ

कलजुग के बरदान अछि
कमबू खुब टाका .
पर अमित नै समझै केऊ
खेबो करतै टाका.
मिस्रा के मानु भैया कर्म हमर प्रधान यौ
टाका भैया टाका माता आ टाका भगवान यौ

5माँ गै
एही विशाल दुनिया मे .
दया-दृष्टी बनौने रहिहैं ,
बेटा टुअर भ' गेलौ जननी .
झलक अपन देखाबैत रहिहैं .
तोहर दुलार सन प्यार नै भेटल .
अधरतीया मे लोड़ी सुनाबैत रहिहैं .
भटैक जेबौ जौँ पंक पाथ पर .
हमरा तू फटकारैत रहिहैँ .
माछ-मखान किछु नीक नै लागै .
नून-रोटी अपन हाथ सँ' खुआबैत रहिहैँ .
अमित करै छौ नमन चरण मे .
आशिषक हाथ बढाबैत रहिहैँ .
झलक अपन देखाबैत रहिहैँ

Friday 23 December 2011

बर्फ भोर


सूर्यदेव कत' लुप्‍त भेला
कोन अंतरिक्ष ,मंदाकिनी मे
या जाड़ हुनकेा खेहाड़इ छइ
देखियौ ने कुम्‍हरबा
मटकूरी नइ बनाबए छइ ।
बनाओत की मटकूरी
घैल चुक्‍का पातिल तौला
उगता नइ सूर्यदेव
लेब की हम बमभोला ।
तहिना पसरल अन्‍हार कुहेसा
हड्डियो कंपकंपाइ छइ
बीलटबा सूतलेसूतल
ओछैने पर खाइ छइ ।
रूकल जीवन स्‍पंदन
गाय भैंस कुकुर बकरी
डोलबए छए गरदनि
डोलबए नांगरि पूछड़ी
कानए बिना नोर
दांत देखबै छै ।
बंद भेलै विद्यालय
बंद कटनी रोपनी
एहन बर्फ भोरो मे
नहा के छुन्‍नू पंडित
पहिर ओढि़ काजल टीका
तीन कोस जजिमनिका
साइकिल के गरूड़ बूझि
घंटी डोलबैत छइ

Wednesday 21 December 2011

साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार 2010


साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार 2010
असमी कबीन फूकन
बांग्‍ला महेन्‍द्र गुप्‍ता
बोडो प्रेमानंद मोसाहारी
कश्‍मीरी नसीम सैफी
कोंकणी मेल्विन रॉड्रिग्‍स
संस्‍कृत हरेकृष्‍ण सत्‍पथी
संथाली आदित्‍य कुमार मांडी
उर्दू ख़लील मैमून
(उपरोक्‍त सब कवि छथि)
हिंदी काशीनाथ सिंह
कन्‍नड़ गोपालकृष्‍ण पई
मणिपुरी क्षेत्री बिरा
उडि़या कल्‍पनाकुमारी देवी
पंजाबी बल्‍देव सिंह
राजस्‍थानी अतुल कनक
तमिल एस वेंकटेशन
(सब उपन्‍यासकार)
डोगरी ललित मगोत्री
ग्रेस मराठी
तेलुगू सामला सदाशिव
(सब निबंधकार)
रामचंद्र गुहा (अंग्रेजी मे नैरेटिव हिस्‍ट्री)
मोहन परमार(गुजराती मे लघुकथा)
एम के सानु (मलयालम में जीवनी)
मोहन गहानी (सिंधी मे नाटक)
मैथिली मे बाद मे पुरस्‍कार देबाक घोषणा सँ विभिन्‍न संस्‍था ,मैथिली लेखक आ सुधी पाठकगण क्षुब्‍ध छथि ।की सबसँ नीक जँका चयन मैथिलीए मे हेतए वा मैथिली क लेल एहन पुस्‍तक सब छलए ,जाहि पर निर्णय जल्‍दी संभव नइ छैक ।की निर्णायकगण बीमार छलाह या छथि ।यदि कोनो पोथी पुरस्‍कार योग्‍य नइ छैक तखन सेहो बता देल जाए ।ऐ सब बातक उत्‍तर मैथिल समाज जान' चाहैत अछि ।यदि अकादमी अपन विश्‍वसनीयता बनाके राख' चाहैत अछि ,तखन ओकरा सविस्‍तार ऐ प्रश्‍नावली क जवाब देबाक चाही ।

Sunday 18 December 2011

देश आ गेयर

देश सुस्‍ता रहल छइ
या पनहा रहल छइ
चाही एकरा तेल ग्रीस मोबिल
आ तहिना साहित्‍य आ सम्‍बन्‍धो मे
पहिले हमरा पढ़ैत देखि
मॉ आनइ छली चाय पानि
बाबू तमाकू चूनबैत
चलि जाइत छलाह अकाश सँ आगू
आ कनिया पहिरैत छली चूड़ी ,पायल नि:शब्‍द
झनझनाहट सँ भंग नइ हो हमर ध्‍यान
हवा बिहाडि़ सेहो बहैत छलए पूछि के ।
हमरे खोंखी सँ खोंखियाइ पूरा दुनिया
हमरे सपना सपनाइत उगैत छलइ चान सूरज ।
ओ आर जमाना छलए नेता जी
यादि अछि अहॉ क एक संकेत पर देश बिछ जाइत छलइ
अहॉ मतलब देश आ देश मतलब अहॉ नेताजी
आब दोसरे हवा बहि रहल
सब अपना विषय मे सोचि रहल
स्‍त्री ,सोलकन,जाम्बिया ,भूटान ,लातेहार ,पलामू
सबके पता छइ अपन हित अपन बात
देश ,सम्‍बन्‍ध ,साहित्‍य चढ़ाई पर चलि रहल
 चाही बेशी दम गेयर नम्‍बर चारि
बेशी गति बेशी तेल पानि
या फेर बच्‍चा क वीछियो जँका बढ़ा दियओ लेवेल
धूर्तता ,छल ,धोखाक लेवेल बढ़ब' पड़त
चाही नया नया मुखौटा
मोबिलाइजेशन प्रोपेगंडा
पाखंडक अद्यतन संस्‍करण
दोसरे हवा बहि रहल छैक
 देश दुनिया जागि रहल छइ

Friday 16 December 2011

पॉंच केबी


Saturday 10 December 2011

जन्‍मदिनक मधुर मंगलकामना टिल्‍लू जी

जन्‍मदिनक मधुर मंगलकामना टिल्‍लू जी ।बहुत दिन सँ अहॉं से बात नइ भ' रहल अछि आ हम प्रयासो केलहुं त' अहॉ व्‍यस्‍त रही ,कखनो टाटा ,कखनो भुवनेश्‍वर ।आइ अहॉक जन्‍मदिन अछि आ अहॉक सभ स्‍वप्‍न सभ प्रतिज्ञा सामने होयत ।भगवान सँ हमर सभक प्रार्थना कि अहॉंक सब कामना फलीभूत हो ।मैथिली भाषा क एकटा पाठक होयबाक नाते हमर ई कामना कि अहॉ सब तरहें मैथिली साहित्‍य के समृद्ध करी ।एकटा कविक पुत्र होयबा क नाते जे दायित्‍व अहॉ क छल से अहॉ लगभग पूरा क देलहुं ,मुदा एकटा लेखक होयबा क नाते अहॉके बहुत किछु करबा क अछि ,ने केवल मात्रा मे बल्कि गुणात्‍मकता मे सेहो ।
अहॉक कविता मे बूच भैया क कविता क छाया देखाइत अछि ,ई जत्‍ते स्‍वाभाविक छैक ,ओतबे अहॉ लेल अपरिहार्य अछि कि अहॉ अपन रस्‍ता बनाबी ।जे ओइ पीढ़ीक दुख छैक ,ई ओकरे छैक आ ओ पीढ़ी जे शिल्‍पक चयन केलकइ ,सेहो ओकरे रहतइ ,नवका पीढ़ी के बेशी नवोन्‍मेषी बनए पड़तए ,तखने ई ज्‍योतिरीश्‍वर आ विद्यापतिक भाषा अपन प्रासंगिकता बनेने रहतइ ।यद्यपि सभ भाषाक अपन अपन संस्‍कार होइत छैक आ ओकर रचनात्‍मकता सेहो इतिहासक कोखि सँ निकलि रहल छैक ,तैयो लोकल किछु नइ रहलइ ।

अहॉक आलोचना भाषा तथ्‍यात्‍मक आ निर्णयात्‍मक रहैत अछि ।तथ्‍यात्‍मकता यद्यपि प्रामाणिकताक अंग बनिके आबैत अछि ,तथापि कखनो कखनो ओ पाठ के बोझिल सेहो बनबैत अछि आ तथ्‍य क बोझ तखन आर बेशी भ' जाइत अछि ,जखन ओ केवल जानकारी क प्रदर्शनक लेल आबैत अछि ।जेना 'गामक जिनगी' पर लिखैत काल अहॉ खूब रास कहानीकारक नाम लिखैत छी । बात केवल अहींके नइ अछि ,प्राय: मैथिली मे नामक गोला चलैत छैक ,आ लेखकक भाषाक स्‍वभाव ,ओकर बनावट पर कम विचार होइत अछि ।तहिना तुलनात्‍मक आलोचनाक मतलब लेखक लोकनि दूटा किताब ,लेखक या उद्धरणांश सँ बूझैत छथिन्‍ह ,तुलनात्‍मक आलोचना के सही बाट देखयबाक जिम्‍मेवारी अहीं सन लेखक के अछि ।ऐतिहासिक आलोचना एखनो महत्‍वपूर्ण अछि ,किएक त' मैथिली साहित्‍यक इतिहास आ विभिन्‍न युग ,लेखक ,क्षेत्र आ प्रवृत्तिक कार्यभागक सही सही मानचित्र अखनो हमरा सभक समक्ष नइ अछि ।समाजशास्‍त्रीय आ उत्‍तर आधुनिक आलोचना क बाते छोड़ू ,एकर त' नामोनिशान अखन मैथिली मे नइ अछि ,मुदा अहॉ सन उद्योगी व्‍यक्ति हमरा समक्ष छथि ,तें आशान्वित छी ,आइ ने काल्हि सब चीज अनुकूल स्‍थान पर मानक रूप मे रहत ।
आइ बस एतबे ,जन्‍मदिनक फेर सॅ मंगलकामना ।अहॉ चिरायु हो ।

Thursday 8 December 2011

मनोज भाय के चिट्ठी

की भाय आबो राजदूत उड़बै छियइ सौ पर
की भाय आबो हंसइ छियइ ओहिना हहा के
की भाय आबो देखइ छियइ रौद बरखा के ओहिना प्रेम सँ
की भाय आबो कचकूह आम देखि पानि आबैत अछि मुंह मे
अपन गाछी आ दोसरक आम एखनो नीक लागैत अछि
की भाय जालंधरो करियने जँका छैक
कोना साधए छियइ उदयनाचार्य आ जालंधरनाथ के एक साथ
नव्‍यन्‍याय आ नाथपंथक सूत्र कत' मिलैत अछि
या हमरे जँका उलझैत देरी छोडि़छाडि़ निवृत्‍त भ' जाइ छी
सही कहलहुँ भाइ
विदेहो त' हमरे छथि
आ हम पूरा दुनिया मे पसरलाक बादो ओतबे लोकल छी
सक्‍कत माटि खींचैत अछि हमरा
आ दरिद्रछिम्‍मरि रहितहुं ओतबे सामंतवादी छी
संग मे अछिए की ,जे दुनिया छीनत
तैयो पकड़ने छी अपन दूबि के बकुट्टा मे
छोड़ू ई सब
 की  ओतहु एहिना गामघर गीतनाद धूपदीप
यादि आबै छी हम ,गाम आ समाजक लोक
बड़ी ,‍सिंगराही ,नबकी  नौला पोखरि
बडि़याही ,बलहा घाट
ककरहा ,ठकुरनीया ,महिसर बाध
कखनो सुनइ छी प्राती ,नचारी ,समदओन
चाखै छी नबका चूड़ा पर छलियैल पूष मासक टटका दही
हंसए क बात पर हंसइ छी
आ कानइ क मौका पर
गिरैत अछि नोर
या आहूं के मारि देलक समय
जेना हमरा मारलक सम्‍हरल डांग सँ

Monday 5 December 2011

बियाह आ मोंछ

ओ बियाह नइ ,मोंछक लड़ाई छलई
आ सभक अपन अपन प्‍लान रहए
बाबू ,मॉ ,दोस ,सासु ससुर
संस्‍कार कम ,नाच बजार छलइ ।
 बाबूए पढ़ेने लिखेने रहथिन
तें बियाह हुनके पसिन्‍नक जगह ,लड़की आ तिथि के निश्चित छलए
भैयाक लेल ई छलए अचूक मौका
साबित करबाक लेल बहुत रास चीज
तें केवल नवका चमचम गाड़ी क जखीरा रहए
आ यदि ऐ साल बियाह नइ हेतइ
तखन बाबू क मोंछ आ माथ नीचा भ' जेतेन ।
यदि हम काजर लगेबा सँ रोकबा क प्रयास करतियइ
तखन जनानी सबक नजरि मे
मॉ बहुत छोट भ' जेतइ
आ ससुर महराज सेहो लगेने रहथिन बाजी ककरो सँ
तें दिसम्‍बर पक्‍का रहए
आ ने हमर उमेर कम रहए
ने हम बेरोजगार रहियइ
तें ससुरक ससुर जांच करबा लेल पहुंच गेलखिन
बागमती सँ केन
कहीं कोनो जनानाक चक्‍कर त' नइ छइ
आ बियाह मे जरूरी रहए दारू पीनए आ नाचनए
किएक त' वीडियो गड़बड़ा जेतइ
आ धियान देने रहए बहुत लोक गिद्धो सँ बेशी
हम हुसियइ
आ ओ प्रारम्‍भ करए ।

Thursday 1 December 2011

प्‍लेटो आ हमर कनिया

अंतत:
प्‍लेटो के योग्‍य शिष्‍या मिलिये गेलेन
हे मैथिलीक स्‍वर्गीय कविगण
बता देबेन प्‍लेटा के
ओ एकटा युवा महिला छथिन्‍ह
आ जहिना प्‍लेटो दोड़ैत छलथिन्‍ह
कविता दिसि राजदंड ल के
तहिना ललकारैत छथिन्‍ह ई
एकटा नवोदित कवि के
आ पूछैत छथिन्‍ह एकटा अस्‍थापित कवि सँ
की हेतओ ऐ कविता ल' के
 काज रोजगारि छोडि़
किएक बताह भेल छें
सजमनि छीलैत आटा सानैत
फोड़न दैत छौंकक मेंजन तैयार करैत
बच्‍चा के मुंह मे कौर दैत
नेटा कांची पोछैत
नाना प्रकारक मुखाकृति
भाव भंगिमा
खुसुर फुसुर
खौंझाइत बड़बड़ाइत
गारि गीत जँका
कखनो गायत्री मंत्र
कखनो सप्‍तशती
कखनो कोनो अतुकांत वैदिक ऋचा
अरबीक अबूझ नेमाज जँका ।
आ प्‍लेटा जे नइ क' सकला मंत्री पद अछैत बधाई प्‍लेटो ।
अहॉक योग्‍य शिष्‍य अरस्‍तू वा
हमर कनियां
। ओ निर्णय निकालि नेने छथि
एहिना फिफियाइत रहब
हिहियाइत रहब किछु देखने सुनने
ऐ दुनिया मे सब केओ अछि आ
दुनिया ढ़न्‍नूक लाल सॅ नइ चलैत अछि
मुदा ई दुनिया ढ़न्‍नुको लालक छैक ।