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Wednesday 29 August 2012


हम अहिना अहांक बाट ताकैत रहि गेलहौं
करेजापर उत्कंठाक पट्टी साटैत रहि गेलहौं ।

किछु छल मनमें कहबाक बास्ते अहां सं
कटैत जीनगीक बातके काटैत रहि गेलहौं ।

प्रेमक मधुर मिलन केर बनल अभिलाषी
दूरे ठाड़ सीपक सीपा चाटैत रहि गेलहौं ।

आंख़िक दहकैत आईग केर झड़ैत नोर सं
दुख केर झड़ल भित्तीके पाटैत रहि गेलहौं ।

हम अहिना अहांक बाट ताकैत रहि गेलहौं
करेजापर उत्कंठाक पट्टी साटैत रहि गेलहौं ।

- भास्कर झा 25 जुलाई 2012

गामक इयाद (बाल कविता-मैथिली


अंट - संट केर टंट - घंट सं, खखनू कक्का बनला लंठ
खनो खिसियायत, कखनो भसियायत अपन फ़ड़ला कंठ।

लुक्खा कक्का बड्ड उचक्का, बात - बातमें ऊड़य ठहक्का।

चौर-चभच्चा, नाली-खत्ता, देखिके हुनका सब हक्का-बक्का।

बेचन बेचय मुर्गीक अंडा, लाइन लगैत सब पंडित - पंडा


आमक गाछीक बुढिया बुधनी, चेंहटैत ल कए डंडा- खंडा ।

बतहा बिलट नाचैत अपने ताले, बैसल बउका गाल बजाबे

चौक केर चेतु चप्पल सीबय, लूटन ताड़ीक कटिया सजाबे।

सुतल सोगारथ टुकटुक ताकय, तेतरीक तनया रोज निहारे

खचरा तेतरा छल बड्ड थेथ्थर, सोझे उठाकए पाथर मारे।

टूटल-फ़ूटल हम्मर मड़ैया, वोहि पर बाजय चुनमुन चिड़ैया

फ़ेकल-फ़ाकल कुरसी-टेबुल, बैसल पढय अप्पन “बबलू’ भैया ।

भेल परीक्षा केला पास, फ़ेकला गामक झोड़ा, चप्पल –छत्ता

छोड़ल “बसंत”क हवा-पानी, पेटक आइग मिझाबे कोलकत्ता ।

- भास्कर झा 25 जुलाई 2012

गजल- भास्कर झा


हक्कर कानि, हारल मानि, जिनगी नहिं जीयल करु
कष्टक बेलामें दम घोंटि निराशक भांग़ नहिं पीयल करु।

कोनो जिद्द ठानि,नियतिके मानि, अपन पग-डेग बढाबी
चुभे कोनो कांट, भले देह टांट, फ़ाटल नहिं सीयल करु।

राखू एकटा लक्ष्य, मन निरपेक्ष, सुख-दुख अबिते रहतै
जीवन एकटा जंग, भले अंग-भंग,थाकल नहिं जीयल करु।

गजल- भास्कर झा



अपन बात हम कहिते रहब
मनक घात हम सहिते रहब।

जिनगी झकड़ल सुन्दर फ़ूल

देहक पात हम झपिते रहब।

रुसल हर्ख बैसल एक कात

दुखक लात हम सहिते रहब।


धर्मभूमि बनल छै पाप स्थल
पुण्यक लेल हम लड़िते रहब।

मित्र चरित्र विचित्र छै चर्चित

सत्यक चित्र हम रचिते रहब ।

- भास्कर झा 28 अगस्त 2012

गजल- भास्कर झा





नव विचारक सचार सजाबैत रहू
पुरान बातक ओहार हटाबैत रहू।

आजुक समयमें बढबा अछि आगू

त परिवर्तनक कहार बजाबैत रहू ।

नहिं झगरु ने रगड़ू, संभरिके चलू

ईर्ष्याद्वेषक गाईंठ सोझराबैत रहू।

Monday 27 August 2012

भुवनेश्वरमे २५ सितम्बर २०१२ केँ साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार आनन्द कुमार झा केँ देल गेल (रिपोर्ट पूनम मण्डल)

-भुवनेश्वरमे २५ सितम्बर २०१२ केँ साहित्य अकादेमीक पहिल युवा पुरस्कार नाटककार आनन्द कुमार झा केँ देल गेल
- हुनका ई पुरस्कार नाटक हठात परिवर्तन लेल देल गेल








Saturday 25 August 2012

मूतना


डॉक्‍टर राजीव ,नगरक सबसँ विश्‍वसनीय सर्जन ,जखन-जखन मूत्र रोग संबंधी कोनो अंग लिंग ,मूत्राशय ,वृक्‍कक ऑपरेशन करथिन त' हुनका अपन हॉस्‍टल जरूर यादि आबि जाइ ।राजीव बच्‍चे सँ मूतना रहै ,गामक जनाना सभ राजीवक माए  के कहबो करथिन जे राति मे दूध नइ पियाबियौ ,तैयो राजीवक माए नइ मानथिन आ शीशी वा गिलास मे दूध जरूर
द' देथिन आ राजीव एहने कहियो भेल हेतै जे ओछाउन पर नइ मूतने होए आ मात्र पांचे साल मे बाबू माए ओकरा भेज‍ देलखिन दरभंगा हॉस्‍टल ।आ पता नइ की भेलै जे छुलमूतनी ओकरा लागले रहलै ,छुलमूतनी क' अलावे बिछौन पर मूतनइ डेलीक रूटीन आ हॉस्‍टल मे मास्‍टर सँ डेली मारि खेनए ।कखनो मारि खेलाक बाद मूत्‍ती आ कखनो मूत्‍ती करबाक लेल मारि खेनए ।आ राजीव मूत्‍ती क' बेमारी के छुपेनए शुरू क' देलकए ।मूतले ओछौन पर सूतल रहै ,मास्‍टरक डरे ओछैन
के नइ सूखबै आ यदि केओ गंधक बात करए तखन बकहूत्‍थनि......आ फेर मारि खेनए ।जखन दस एगारह बरिख के रहै त' अपन बहिनक सासुर हरलाखी गेल रहै आ एक बेर ओहियो ठाम मूता गेलै आ जखन मूता गेलै त' राजीव एक लोटा पानि गिरा देलकै कुटुम पूछलखिन त' राजीव कहि देलकै जे देखियौ ने गलती सँ पानि गिर पड़लै ।
................
ई सब बात पुरान भ' गेलै ।आब ने राजीव के केओ मूतना कहै छैक ने कोनो आन बातक समस्‍या छैक ,मुदा राजीव जखन जखन ऑपरेशन लेल तामझाम शुरू करैत छथिन ,हुनका नाक मे पता नइ कत' सँ ओ गंध आबि जाइत छैक ।वैह मूतायल सूजनी............कनेक भीजल ,कनेक सुक्‍खल,नमहर भेला पर सेंट आ तेल छिटैत .......ओ मूत आ सेंटक मिलल जुलल गेन्‍हायत गंध......................


Monday 20 August 2012

गाम @7

साओन पूर्णिमाक दिन आ भीजल बाट
ने बेशी कादो ने साफ-सुक्‍खल
तैयो धोती बचबैत विदा भेलौं
नीरस भाय अपन लतामक प्रशंसा कहैत कहलखिन
वौआ रे पहिले बारहो महीना कतौ ने कतौ
एगो दूगो मिले जेतौ छल
आब त' डांटे नइ छैक
उमेर एकर हमर बड़का वौआ एते
आ मीठ त' वौओ सँ बेशी
रामसेवक घर बनाब' लागलखिन
तें दू टा ठांडि़ काट' पड़ल
मिथिलांचल वस्‍त्रालय ओहिना ठाढ़ छलै भकोभंड
राखी के दिन मे कपड़ा के खरीदए
आ छुन्‍नू पंडित राखिए मे उन्‍नीस-बीस करैत भेटला
शंभू जी एक मुट्ठी राखी राखने पान लाड़ैत
एकदम पिजेने
जजिमान सभ कें यादि करैत
नाम,गुण,ओकादि
केशव भाय साफे कहलखिन
जे मौह वाली क' जमीन हमरा नइ चाही
ने हम आगि देबै ने जमीन लेब
आ वौआ रे मरलै जे मौहवाली
सब के जोगी झा हमरे घर दिस भेजए
जे आगि त' आहीं द' सकैत छियइ
हम कहलिएन जे जमीन जोगी झा के
पासबुक जोगी झा के आ आगि दिअइ हम
आ वौआ रे पूरा नौटंकी आ तामझाम रहेन हुनकर
मुदा हम नइ फसलौं आ चलि देलैां बाध दिस जनेर कटवा लेल ।
दया बाबू बड़ा सजा के राखने छलखिन राखी
पुरनका स्‍टॉक सेहो मिला के
देखैत छियइ कते बिकैत छैक बारह बजे तक
हम आ सुनील बाबू गप्‍प लसियाबैत
सबसँ हिट बात ई छलै जे
मंगल बाबूक तबियत कोना खराब भेलै
केओ कहै मंगल बाबू मरसैब पनिभरनी क' राखि लेलखिन
आ बेटा बड्ड मारि मारलकेन
केओ कहै बड़का बेटा महाराष्‍ट्र मे मुसलमनिया सँ बियाह क' लेलकै
आ मरसैब रहि गेल‍खिन मोंछ पिजबैत
आ अही दुखे जहर खा लेलखिन
अपना आप के खुफिया बुझैत सुपारी लाल कहलखिन जे
इसकुले मे पकड़ा गेलखिन ने
अपन गामे के बचिया संग
आ गौंआ सब मारबो केलकेन आ बान्हियो के राखलकेन
श्रीकांतजी क' विचार छल जे मरसैब जे पछुएैत में एकटा खद्धा खूनने छथिन
ओहिए मे विश्‍वशांतिक लेल तपस्‍या प्रारंभ क' देने छथिन
ताबते लालनक साईकिल गिरलै
मझिला वौआ साईकिल सम्‍हारैत
हमरा दिस कह' लागलै बिन पूछनैए
बड़का वौआ तीन साल सँ बंबई सँ नइ लौटल
जहिया सँ घर बनेलक
आ जहिया सँ बौह बसेलक
रोड पर यातायात बढि़ गेल छलै
भाय-बहिन सभ अपना मिशन पर
पुरहित सभ अलगे मुदित
सूर्यदेवक ताप बढ़' लागलै

Tuesday 14 August 2012

स्‍वतंत्रता आ छंदक मुक्ति

स्‍वतंत्रता दिवस क' उपलक्ष्‍य मे एकटा आर स्‍वतंत्रताक बात करी ।छंदक स्‍वतंत्रता............।मैथिलीक एकटा वर्ग अपन छंद-मोह कें प्राचीन साहित्‍यक महानता आ लोकप्रियता सँ जोड़ैत अछि ,ठीक बात.... मुदा जखन छंद अपना आप मे पूर्ण छलै तखन नवीन छंदक आवश्‍यकता किएक भेलै ,विभिन्‍न कवि पुरनके छंदक प्रयोग किएक नइ केलखिन ,ओ नया छंदक निर्माण आ पुरनका गति,यतिक परिवर्तन दिसि किएक प्रयाण  केलखिन ।नवीन छंदक आवश्‍यकता आ छंद वैविध्‍यक गर्भ मे मुक्‍त-छंदक बिया छैक । हिंदी आ मैथिली मे मुक्‍त छंदक प्रवाह बांग्‍लासाहित्‍य क' बाटे आयल अछि आ स्‍वतंत्रताक पूर्वे ई स्‍थापित भ' गेल अछि ।छंदक प्रति मोह नवीन नइ अछि ,जइ समै मे मुक्‍तछंदक प्रयोग बढ़ल ,किछु गोटे जोर- शोर सँ छंदक उपयोगिता बतेनइ प्रारंभ क' देलखिन ।एहन व्‍यक्ति सभ कें आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी बुझबैत कहलखिन 'आइ काल्हि लोक सभ कविता आ पद्य कें एके चीज बुझैत छथिन ।ई भ्रम अछि ।कविता आ पद्य मे वैह भेद छैक जे अंग्रेजी पोइट्री आ वर्स मे छैक ।कोनो प्रभावोत्‍पादक आ मनोरंजक लेख ,बात वा वक्‍तृताक नाम कविता छैक आ नियमानुसार गानल-जोखल सतराक नाम पद्य ।जअ पद्यक पढ़ला आ सुनला सँ चित्‍त पर असर नइ होइत छैक ओ कविता नइ ।ओ गानल-गाथल शब्‍द स्‍थापना मात्र अछि ।गद्य आ पद्य दूनू मे कविता संभव छैक ।'



जइ बात कें सौ साल पहिले विद्वतापूर्ण तरीका सँ कहि देल गेलै आ विद्वत्समाज बुझियो गेलै ,तइ पर प्रश्‍न ......।मुदा प्रश्‍न अहां क' सकै छियै ,उत्‍तरो सुनबा लेल तैयार रहू आ उत्‍तर पर गुटबाजी केला सँ काज नइ चलत ।
किछु गोटे मुक्‍त छंद कें अक्षमता ,आलस्‍य (काहिलपन) सँ जोड़ैत छथिन ,हुनकर विशाल मस्तिष्‍कक लेल ई तथ्‍य अनिवार्य कि विभिन्‍न भाषा मे मुक्‍तछंदक मुख्‍य प्रणेता जेना रवींद्रनाथ ,निराला आ यात्री पहिले छंदे मे लिखलखिन आ हुनकर छंदबद्ध रचनाक महत्‍व प्राचीन क्‍लासिकल साहित्‍यक महत्‍व सँ तुलनीय अछि ।मुक्‍त छंदक प्रति हुनकर झुकाव छंदबद्धताक सीमाक कारणें संभव भेल ।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी निराला जी क' मुक्‍तछंद प्रेम पर एना लिखैत छथिन ' छंदक पगहा क' प्रति विद्रोह करैत ओ ओइ मध्‍ययुगीन मनोवृत्ति पर प्रहार केलखिन जे छंद आ कविता कें प्राय: समानार्थक बुझैत अछि ।कविता भाव-प्रधान होइत छैक आ छंद ओकरा ऐ रूप मे सहायता करैत छैक ।छंदक पगहा कें अस्‍वीकार करै वला कवि कविता क' ओइ समस्‍त सिन्‍नुर-टिकुली कें अस्‍वीकार करैत छैक जे काव्‍य मे संगीतक गुण भरैत छैक आ अइ प्रकारें काव्‍य कें अलौकिक बनबैत छैक । मुदा निराला जी जखन छंदक प्रति विद्रोह केलखिन तखन हुनकर उद्देश्‍य छंदक अनुपयोगिता बतेनइ नइ छलै ।ओ मात्र कविता मे भावक- व्‍यक्तिगत अनुभूतिपूर्ण  भावक -स्‍वच्‍छंद अभिव्‍यक्ति कें महत्‍व देब' चाहैत छलखिन ,जेकरा ओ मुक्‍त छंद कहैत छथिन ,ओहियो मे एकटा झंकार आ ताल विद्यमान अछि ।'


निराला स्‍वयं 'परिमल'(1929) मे लिखैत छथिन - ' मनुष्‍यक मुक्ति जेना होइत छैक तहिना कविता के सेहो ।मनुष्‍यक मुक्ति कर्मक बंधन सँ छुटकारा अछि आ कविताक मुक्ति छंदक शासन सँ अलग भेनए  '


कवि आ कविता क' अस्तित्‍व लीक पर चलबा सँ नइ ।सर्जक कोनो कुम्‍हारक सांचा ल' के नइ चलै छैक ,एके मुंह कानक पचास टा मूर्ति क्षणे -पले मे बना देबाक सामर्थ्‍य कविक सामर्थ्‍य नइ छैक ।यदि रमणीयता नवीनता आ नव वस्‍तु क' माध्‍यमे आबैत अछि तखन सब बंधन अग्राह्य ।भाषा ,बिंब ,प्रतीक ,शब्‍द सभ अपन अपन ढंग सँ ।खतरा एतबे बस कि नवीनता फैशन नइ बनि जाइ ,मुदा यदि नवोन्‍मेष किछु रचबा के अछि ,तखन ओ अतिक्रमणे करैत छैक ।



आ बाल्‍मीकि ,कालिदासक,विद्यापतिक  नाम लेबा सँ काज नइ चलत आ ने हुनकर नकल केला सँ केओ कालिदास भ' जायत ।कालिदास साहित्‍य अपन समै के शास्‍त्र के नइ मानै छैक ओ पचासो जगह आ पचासो तरीका सँ शास्‍त्रक अतिक्रमण करैत छैक ।साहित्‍य शास्‍त्रक डिबिया क' पाछु महुआइत ,लसियाइत चलै वला चीज नइ छैक ,ई शास्‍त्रो कें दीप देखाबै वला चीज छैक ।सभ के पता छैक कि मात्र रस सम्‍प्रदायक अतिरिक्‍त सभ सम्‍प्रदाय कालिदासक बादे जनमल ।तखन .....साहित्‍य पहिले कि शास्‍त्र ।ओना विवाद पुरान छैक कि मुर्गी पहिले या अंडा आ ई विवाद चलितो रहै त' कोनो हर्ज नइ ,बेसी सँ बेशी दियादी झगड़ा जँका ि‍कि अहां अपन आडि़ मे रहू आ हम अपन आडि़ मे रहब ।तैयो बहसा बहसी नइ हेतै त' खखसा -खखसी त' जरूर हेतै ।ओना स्‍वतंत्रता दिवसक अवसर पर साहित्‍य मे बहुपक्षीय स्‍वाधीनता क' आकांक्षी रवीन्‍द्रनाथ ,निराला आ यात्री कें नमन ............।