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Tuesday 28 February 2012

एकटा सुक्‍खल गद्यक खोज मे

फूल सँ फूल बिया सँ बिया निकलैत
माटि सँ माटि
पसेना सँ पसेना
आ तहिना पैसा सँ पैसा निकलि रहल
देश ओतबे टा
संवृद्धिक समाचारक बीच
ह्रदय छोट सँ छोट होइत
गाड़ी सँ गाड़ी
आ गरीबी गरीबी के जनमाबैत
गहिर रंग आ
मझोलगर दरिद्रा
हजारों लाखों क खूने मे मिलल
जखन परिवर्तन देवी घोघट ओढ़ने छथिन
आ क्रांतिकुमारी हफीमाइल
दोस तोरा की बूझाइ छओ
देश दुनिया चुटकुला मसकी
गप्‍प गीत गजले तक रहतइ
जमानाक सब बुधिज्ञान
समस्‍यापूर्तिए तक सिमटि के
कालिदास आ विद्यापति
की बुझौएल बुझेता
या एकटा एहन सुक्‍खल गद्य
जेकरा चाही बस एकटा सलाईक काठी

Monday 27 February 2012

तीन पीढ़ी एक साथ

आ मुंह निरारिते रहि गेली बा
अपन तीन सलिया पोता के
एक बीत क छौड़ा
रंगबिरही बात
कखनो ए0बी0सी0डी0
'क' से कबूतर ,'क' से कात
एक दू तीन चारि
देलकइ किताब फाडि़
आ माए ,बाप दूनू प्रशंसा मे लागल
आ बच्‍चा अपन सब विद्या क बाहर करैत
पूरा घमासान
देखबइ देखाबइ आ देखइ लेल
तीन पीढ़ी
पूरा लहूलुहान
तावते बौआ पेंट मे से निकालि
कर' लागलइ सुसु
माए जस्टिफिकेशन दैत कहइ छथिन्‍ह
ओछाइन पर त' कखनो करिते नइ छैक
एमहर बौआ सुसु सँ चित्रकारी करए लागला
बौआ बनब' चाहैत छइ
'क' से कबूतर
मुदा बनि जाइ छैक
अबूझ जटिल बहुव्‍यंजनीय
आधुनिक कोनो चित्र
माए आबिते पीठ पर
दे दनादन धम धम
बचबैत बा अपन पोता के
आहा आहा च'च'च'
बच्‍चा 'क' से कुत्‍ती कहैत
तीनू पीढ़ी लागल छैक अपन अपन काज मे ।

Sunday 26 February 2012


अहाँ बिनु
अहाँ केहन छी
तकर कोनो खबरि नै
अहाँ आएब कहिया
तेकर कोनो तिथि नै....
हम एतय बताह भेल छी
जिनगी हमर निराश लगैया
बिनु अहाँ हमर जिनाई
हमरा व्यर्थ बूझि परैया...
अहाँ आउ जल्दी आउ
आब विलम्ब करू जूनि
देखू! हम अहाँक बाट में
अपन नयन ओछेने छी....
पल-पल हर एक पल
हम अहाँ के याद करी
जखन हम एकसरि रही
अहाँक छवि नयन में निहारी...
एकटा कथा जनै छी ?
हम अहीं सँ प्रेम करै छी
सपनहु में हम
दोसर के नहि देखैत छी....
हम जनै छी
अहाँ के हमर ई कथा
मिथ्या बुझाइत होएत
सएह सोचि होईया व्यथा...
मुदा, एक कथा सच थिक-
हमर प्रेम
हम अहाँ सँ बहुत प्रेम करैत छी
बहुत- बहुत प्रेम...............
:Ganesh Kumar Jha "BAWRA"
GUWAHATI

Saturday 25 February 2012

दुमका मे झुमकाक बहाने किछु गपशप (बूझू जे खलिहर छी)

'दुमका मे झुमका हेरौलनि' प्रसिद्ध गीत अछि ,मुदा गीतक भाव मे अन्वितिक किंचित अभाव मिलैत अछि ।पहिल स्‍टैंजा मे
दुमका ,काशी ,बलियाक चर्चा अछि ,जइ मे नायिका क्रमश: झुमका ,कनबाली आ ठोरक लाली आ नथिया बिसरि जाइत छैक या हेरा जाइत छैक ।या त' नायिका अल्‍हड़ छैक ,जकर अपन समान सब पर कोनो नियंत्रण नइ ,वा ओकर चालि मे किछु छिनरपन सन छैक ,जे जत' जाइत छैक ,किछु ने किछु छोडि़ते रहैत छैक ।ई समान सब या त' कोनो अनजान जगह पर बिसरैत छैक वा नायकक ओइ ठाम ।नायक कोनो समाजिक प्रकृतिक नायक नइ छैक ,बल्कि एहन नायक जेकरा सॅं छीना झपटी मे नायिका अपन गहना सब हेरा लैत छैक या मिलनक ठाम पर कोनो अवांछित व्‍यक्ति क ' एलाक उपरांत ओ भागि जाइत छैक ।'बरामद' शब्‍द एहन छैक ,जेना पुलिस पंचनामाक बाद कोनो समान जब्‍त केने होए वा समाजक लंठ तत्‍व आगू बढि़ के कोनो सनसनीखेज़ प्रकाशन केने हो ।
डा0 शशिधर कुमर सेहो कहला जे ऐ मे छिनरपनक कार्यभाग बेशी छैक ।



पाठकगण ईहो जान' चाहैत छथिन्‍ह जे की दुमका शहर झुमकाक लेल प्रसिद्ध अछि या दुमका मे केवल झुमका चोर सब रहैत अछि या कवि दुमका आ झुमकाक शब्‍दांत मे स्थित 'का' पर मुग्‍ध होइत सब किछु बिसरि गेलखिन ।तहिना बाबा विश्‍वनाथक नगरी काशीक सम्‍बन्‍ध कनवालीक निर्माण ,उपयोग आदि सँ किछु अछि वा कवि काशी आ कनवालीक 'क'के जोड़ए मे रीझैत आन चीज बिसरि जाइत छथिन्‍ह । आ देखियौ ने नायिका क नथिया कत' बरामद भेलइ त' बलिया मे ।जेना ओ नायिका नइ भेलइ ,कोनो महीस या आओर मोटगर चीज भ' गेलइ जेकर सूक्ष्‍मांश सब उडि़ उडि़ के भारत भ्रमण क' रहल हो । आ नायिको केहन पेटगरि आ मोटपसम जे बलियाक प्रसिद्ध लिट्टीचोखा लेल अपन नथिया तक द' दैत हो ।कहीं एहियो ठाम 'या'क मिलबैक लेल कविक आकुलते त' जिम्‍मेवार नइ अछि ।हमरा पूरा विश्‍वास भ' गेल जे भाव आ विचार दोयम ,सबसँ मुख्‍य अनुप्रास देवी आ तुक ग्रह ।आ कविक प्रवृत्ति धार्मिक ,ऐ पूजनीय सबकें फूल देने बिना ओ कत' जा सकैत छथि ।
गीतकार छथिन्‍ह त' भावुक हेवे करथिन्‍ह ,आ अपन अनुभव ,रसगर वा सुखल ,जे होए ,देवे करथिन्‍ह ,मुदा अन्विति के कोन ठाम छुपा के राखथिन्‍ह ।पहिल स्‍टैंजा मे अल्‍हड़पन वा छिनरपन आ दोसर मे पूजाक भाव ।आब धुन जत्‍ते टांसगर होए ,शब्‍द पर ध्‍यान देलाक बाद कने मून केनादिन त' करबे करत ।

भाय गोपाल जी झा कहैत छथिन्‍ह जे शायद ओ (नायिका)मिथिलाक नइ अछि ,किएक जे पहिल स्‍टैंजा मे चिहिनत शहर दुमका ,काशी आ बलिया मिथिलाक भूगोल मे नइ अछि ।बात सही अछि भाय ,मुदा मैथिल जनाना त' कतओ भ' सकैत छथि आ ओहुना कोनो नीक वा अधलाह बात कोनो भौगोलिक ,जातीय ,नस्‍ली संस्‍कार सँ अनिवार्यत: जुड़ल या हटल नइ रहैत अछि ,ओहुना ई त' कविते अछि तें हमरा ओइ या कोनो नायिकाक स्‍वभाव आ संगे कविताक स्‍वभाव पर चर्चा करबाक अछि ।ई काव्‍य सत्‍य अछि जीवन सत्‍य नइ ।


ओना हमर कनियां कहैत छथिन्‍ह जे अहां क‍नेक घसकि गेलियइ ।बूझू त' गीत के विषय मे कतओ एना ओना सोचल जाइ ।हम कहलिएन जे कविता मे दुमका ,काशी क बदले भरपुरा ,प्रयाग किएक नइ छइ ।पत्‍नी कह‍लखिन 'कवि क मून'
मतलब ,की ओकरा जे मून हेतइ से लिखतइ ?
कनियां कहलखिन अहां जे एते बेकल छी ,से लोक ओहिना कैसेट खरीद खरीद के सुनलक ।इसकूल मे ,अस्‍पताल मे ,कार्यालय मे फूटबॉल मैदान मे लोक अपन काज बिसरि नथिया ढ़ूरहैत रहल
हम कहलियइ अइ मे दुमका ,काशी शहरक योगदान कम स्‍वर्गीय हेमकांत जी क गला ,धुन आ सिनेहक योगदान बेसी छैक ।

आ गीत मे लिय' ने 'मुंह हिनक पूरनिमाक चंदा' ई कोन नव बात ।
पत्‍नी कहलखिन 'तखन की मुंह साइकिलक चक्‍का सन हेतइ'? आ नव बात हरदम भेनए जरूरी छैक ?
हम कहलिएन 'त' कविते लिखनइ हरदम जरूरी छैक की '?
हमरा लागल जे आब बात बढि़के रहत ,हम तुरत चुप भ' गेलउं जेना नव कवि संपादक वा आलोचकक बात सुनि भ' जाइत छैक ।ई चुप्‍पी तर्कक नइ भविष्‍यक छल ।

Tuesday 21 February 2012

अंतर्राष्‍ट्रीय मातृभाषा दिवस


एके शब्‍द के जानू
ओकरा सम्‍यक् रूप मे जानू
उचित स्‍थान(ठाम) पर ओकरा राखू
यदि एतबे क' पाबी
तखन ऐ लोक आ परलोक
दूनू ठाम अहांक सभ मनोकामना पूर्ण होयत(पतंजलि)
एक: शब्‍द: सम्‍यक् जात:
सुप्रयुक्‍त: स्‍वर्ग लोके च कामधुक् भवति:
आ भगवती मिथिला आ मैथिली के फंचारि ,डपोरशंख,कूपमंडूकत्‍व आ आत्‍मश्‍लाघा सँ दूर करथु आ अपनो ठाम नव विचार ,नव साहित्‍य ,नवदर्शन क जय जय हो ।मैथिली भाषा साहित्‍ये नइ समाजशास्‍त्र ,इतिहास ,राजनीति ,विज्ञान आ दर्शनक भाषा बनए ।
अंर्तराष्‍ट्रीय मातृभाषा दिवसक शुभकामना ।

Saturday 11 February 2012

लछमी आ दरिदरा


लछमी क मुंह छूछून रहनि
दरिद्राक श्रृंगार बढ़ैत रहल
लछमी के चढ़ल जल फूल तिलक
मोने अमूने पूजा चलैत रहल
मुदा प्रसन्‍न होइत गेली दरिद्रा
लछमी कहियो सरिया के नइ एली
आ दरिदरा संगे रहली
अभ्‍यागत अतिथिक अशेष व्‍युत्‍पत्तिक संग
पूजाक प्रत्‍येक अध्‍यायक संग लछमी क आभा मंद होइत गेल
आ दरिदरा मुस्‍कुराइत रहली नवसारि जँका
सब तरहक बातचित
हँसी मजाक
गीत नाद चलैत रहल
नवसारि कोनो मर्यादा नइ राखली
एकटा प्रलम्‍ब अंतर्धानक बाद
'आब कतेक स्‍वागत करी
कोनो आर घर नइ देखलहो
जे खानदानक संग हमरे बथेलहो ?'

Tuesday 7 February 2012

कवि ,कविता आ प्रतिभा




काव्‍य हेतु वा काव्‍य प्रेरणा क लेल संस्‍कृत विद्वान प्राय: तीन तत्‍वक संयोग पर बल दैत छथिन्‍ह । प्रतिभा ,व्‍युत्‍पत्ति आ अभ्‍यास ।ऐ तीनू मे प्रतिभा सर्वोपरि छैक । 'ध्‍वन्‍यालोचन 'मे प्रतिभाक लेल एकटा अन्‍य शब्‍दक प्रयोग सेहो भेल छैक ।ई शब्‍द छैक 'शक्ति' ।आचार्य अभिनवगुप्‍त काव्‍य सृजन मे तीनू तत्‍वक तुलनात्‍मक विवेचन करैत प्रतिभा के निर्णायक मानैत छथिन्‍ह आ व्‍युत्‍पत्ति के प्रतिभे क एकटा रूप मानैत छथिन्‍ह ।हुनका विचारे प्रतिभे शक्ति थिक ।ऐ विचार के संस्‍कृत काव्‍यशास्‍त्र मे व्‍यापक समर्थन भेटल ।पंडितराज जगन्‍नाथ अन्‍य दूनू तत्‍व के चर्चा योग्‍य तक नइ मानैत छथिन्‍ह ।
'तस्‍यं च कारणं कविगता केवला प्रतिभा ' ऐ प्रकारे मात्र कविगत प्रतिभा एकमात्र काव्‍यक प्रधान हेतु छैक । प्रतिभा समस्‍त संस्‍कृत काव्‍य शास्‍त्र आ विशेषत: रसशास्‍त्रीगणक मध्‍य प्रधान हेतुक रूप मे स्‍वीकार्य अछि ,वामन तक प्रतिभे मे कवित्‍वक बीज देखैत छथिन्‍ह ।
'कवित्‍व बीजं प्रतिभानम् '


परवर्तीकाव्‍यशास्‍त्र मे 'प्रतिभा' के काव्‍यसृजनक आद्याशक्ति मानल गेलइ ,जकरा अभाव मे श्रेष्‍ठ सृजनक कल्‍पना संभव नइ ।एतबे नइ अभिनवगुप्‍त प्रतिभा क संग 'स्‍वतंत्र'शक्तिक उल्‍लेख 'घटकर्परकुलक विवृति' मे करैत छथिन्‍ह आ एकर साहित्यिक भूमिकाक विश्‍लेषण करैत मानैत छथिन्‍ह कि मात्र ऐ शक्तिक प्रतापे कालिदासकाव्‍य मे सर्जन सम्‍बन्‍धी नियमक अतिक्रमण सुभग भाव मे परिवर्तित होइत छैक । 'महार्थ मंजरी ' मे 'भाषा शक्ति'क महत्‍वक प्रतिष्‍ठा करैत महेश्‍वरानंद 'भाषा' के सृष्टिक पंचतत्‍वक प्रमुख तत्‍व मानैत एकरा 'प्रतिभा' ,स्‍वातंत्रय आ 'चित् शक्ति'क पर्याय मानैत छथिन्‍ह ।


'ध्‍वन्‍यालोचन' मे 'परा प्रतिभा'क नामे जइ 'चिन्‍मयी शक्ति'क विवेचन भेलइ ,ओ 'परमानंद रूप परा' आ 'काव्‍योत्‍सभूत प्रतिभा' क सामंजस्‍य छैक ।ई 'परा प्रतिभा ' विष्‍वक समस्‍त पदार्थक वैचित्र्य के अंतर्भुक्‍त करैत छैक आ ओकरा मे पश्‍यन्‍ती ,मध्‍यमा ,बैरवरी आदि वाक् शक्ति सेहो रहैत छैक ।हुनका विचारे प्रतिभे 'प्रातिभज्ञान' थिक ।ई अतीन्दिय थिक आ बुद्धिक सीमा सँ बाहर ,किएक त' बुद्धि मे एकटा जड़ता होइत छैक । ,जखन कि प्रतिभा आ 'ज्ञेय विषय ' मे अभेद छैक ।ई बुद्धि सँ भिन्‍न 'स्‍वयं चित्‍त' वा संविदक पर्याय थिक ।प्रतिभा संपन्‍न व्‍यक्ति 'विवेक'क द्वारा 'शद्ध विद्य 'क उच्‍चतम भूमिका पर पहुंच जाइत छैक । ध्‍वनिकार प्रतिभा के शिव पार्वतीक साक्षात रूप मानिके वंदना केने छथि । प्रातिभ शिवा मे एहन उन्‍मीलन शक्ति होइत छैक ,जाहि सँ क्षणे मे विश्‍व उन्‍मीलित भ' जाइत छैक ।

आचार्य राजशेखर प्रतिभाक दू भेद करैत छथिन्‍ह 1कारयित्री
2 भावयित्री
पहिल सृजनक प्रतिभा थिक आ दोसर पाठक ,दर्शक ,रसज्ञ,सामाजिकक ,सह्रदयक प्रतिभा ,जाहि सँ ओ काव्‍यार्थ के ग्रहण करैत छैक ।
किछु विद्वान प्रज्ञाक माध्‍यमे प्रतिभा के देखैत छथिन्‍ह ।प्रतिभाक तीन टा रूप छैक 1स्‍मृति 2मति 3प्रज्ञा ।इएह तीनू परंपरा(अतीत) ,वर्तमान आ अनागत(भविष्‍य)के विषय मे संकेत दैत छैक ।विद्याधर चक्रवर्ती 'प्रज्ञा' के 'त्रैकालिकी' घोषित करैत छथिन्‍ह ।तीनू काल मे नूतनताक उन्‍मेष शालिनी प्रज्ञे प्रतिभा थिक ' ज्ञेया प्रज्ञा त्रैकालिकीमता ' ।

प्रतिभाक काज आ स्‍वरूप पर संस्‍कृत मे बहुत रास विचार विमर्श भेल छैक ।भट्टतौत महराज कहैत छथिन्‍ह 'प्रज्ञा नवनमोन्‍मेष शालिनी प्रतिभा मत:'(काव्‍य कौतुक)स्‍पष्‍ट छैक प्रतिभा नवनवोन्‍मेषक हेतु । दूनू एके ठाम रहैत छैक ।प्रतिभा अछि तखने नवनमोन्‍मेष संभव अन्‍यथा पुरनका रस्‍ता पर चलबाक आग्रह कवि के बान्हि सकैत छैक ।
तहिना अभिनवगुप्‍त प्रतिभा ओतइ देखैत छथिन्‍ह ,जत' अपूर्व वस्‍तुक निर्माणक क्षमता होए(प्रतिभा अपूर्व वस्‍तु निर्माणक्षमा प्रज्ञा)
एकठाम ओ प्रतिभाक दर्शन ओतए करैत छथिन्‍ह जत' नवका विषयक संभावना होए (प्रतिभान वर्णनीय वस्‍तुविषयनूतनोल्‍लेख शालित्‍वम ) ।'काव्‍यमीमांसा' मे राजशेखर प्रतिभा के चित्रणक उपकरण जुटबइ वला भावलीन करए वला आ सौंदर्यानुभूति प्रदान करए वला मानैत छथिन्‍ह ।
'
या शब्‍दग्राममर्थसार्थमलंकारतंत्रमुक्तिमार्गमत्‍यदपि तथा विधमधिह्रदयं सपति सां प्रतिभा ।'
संस्‍कृत काव्‍यशास्‍त्रक हिसाबें प्रतिभा 'अनंता' शक्ति थिकइ ,तें ई 'पार्वती शक्ति' छइ ।जगन्‍नाथ सेहो मार्नत छथिन्‍ह कि प्रतिभा काव्‍यघटनाक अनुकूल शब्‍दार्थ के प्रस्‍तुत करैत छथिन्‍ह ।( सा काव्‍य घटनानुकूल शब्‍दार्थोपस्थिति:)


कम या बेशी प्रतिभाक प्रधानता काव्‍यक लेल स्‍वीकार्य छैक ।प्रारम्‍भहि सँ ऐ विषय मे कोनो संदेह नइ रहल ।सर्वप्रथम भामह महराज स्‍वयं स्‍पष्‍ट कहि देला कि गुरू उपदेश सँ शास्‍त्रक अध्‍ययन त' मूर्खो क' सकैत छैक ,मुदा काव्‍यसृजन केओ प्रतिभावाने क' सकैत छैक ।इएह मत आगू रस संप्रदायक सर्वोच्‍चताक काल मे सेहो रहल ।

Saturday 4 February 2012

**गजल**

‎ हम बाजि रहल छी मायक कोखि सँ ,
हम सबटा सुनै छी बेशक कोखि सँ ,
कष्ट सहब हमर नियती बनल ,
मल- मुत्र खून सहै छी मायक कोखि सँ ,
मारि देब पहिल तीन बहिन जेकाँ ,
सुनि हँसि रहल छी मायक कोखि सँ ,
बेटी कए जौ मारबै यौ भलमानुष ,
बेटा जनमत कोन मायक कोखि सँ ,
हम बेटी छी दुर्गा छी सुनि लिअ अहाँ ,
आइ हुंकार भरै छी मायक कोखि सँ ,
बेटी कए जे केउ सम्मान नै करत ,
नै जनमS चाहब ओ मायक कोखि सँ ,
बेटी बिन बंश ककरो त' नै बढ़तै ,
जारि क' बंश मरै छी मायक कोखि सँ . . . । ।

मैथिली आ हिन्‍दी





हमर एकटा मित्र परेशान छथि ।ओ कोनो ठाम पढि़ लेलखिन कि स्‍वर्गीय राम विलास शर्मा मैथिली के हिंदीक बोली मानैत छथिन्‍ह ।बात स्‍वाभाविक छैक आ हुनकर दुख सेहो स्‍वाभाविक ।जाहि समय मे शर्मा जी ई लेख लिखने छलखिन ,ओहि समय मे यात्री जी चारि पांच पन्‍नाक प्रलम्‍ब लेख मे हुनकर काट केलखिन आ सिद्ध केलखिन जे मैथिली पृथक ,स्‍वतंत्र ,सम्‍मानित आ गौरवशाली भाषा छैक ।दुर्भाग्‍य सँ ओ लेख गाम मे अछि ,तें ओकरा विषय मे कोनो प्रकारक बात नइ करब ,मुदा ई बात सिद्ध अछि कि शर्माजी क ओ प्रयास ओहिए समय नकारि देल गेलइ । आ यात्री जी ऐ नकारक बावजूद शर्माजीक प्रिय मित्र बनल रहलखिन । ई भेलए विद्वान आ महान व्‍यक्तिक बीचक मित्रता ।सिद्धांत पर कोनो समझौता नइ आ स्‍नेह यथावत ।

आब प्रश्‍न ई अछि कि जइ 'हिंदी जाति' क अवधारणा क लेल हुनकर एतेक सम्‍मान अछि ,ओ हमरा सब लेल एते कष्‍टकारी किएक उत्‍तर सेहो अत्‍यंत सामान्‍य छैक ।शर्माजीक ऐ अवधारणा मे हिंदी समाज आ उत्‍तर भारतीय समाजक बीज छैक ई बात त'सम्‍माननीय मुदा जखन हुनकर अवधारणा सामाज्‍यवादी रूख धारण करैत छैक ,जखन ओ पछबाहि दिमाग सँ काज कर' लागैत छथिन्‍ह ,तखन ओ कष्‍टकर साबित होइत छथिन्‍ह ।

खेतीक हिसाबें ,सामाजिक संरचनाक हिसाबें ,सांस्‍कृतिक मूल्‍यक हिसाबें आ पिछड़ल जीवनदृष्टिक हिसाबें शर्माजी उत्‍तर भारतीय जीवनक एकता देखैत छथिन्‍ह आ हुनकर दिमाग मे 'हिंदी जाति 'क अवधारणा अपन स्‍वरूप बनाब' लागैत अछि ।ऐ ठाम तक त' ठीक छैक ,मुदा जखन एकटा खास क्षेत्रक सांस्‍कृतिक आ साहित्यिक मूल्‍य ओकर बोलीबानी के ओ प्रतिनिधि मान' लागैत छथिन्‍ह आ ओहि क्षेत्रक साहित्यिक परंपराक प्रति ओ विशेष अनुराग देखाबैत छथिन्‍ह तखन हुनकर अनुराग शनै: शनै: पक्षपात दिस प्रस्‍थान कर' लागैत छैक ।आब हुनकर विचार एते व्‍यक्तिगत आ क्षेत्रीय भ' जाइत छैक कि ओ एकटा वृहत्‍तर क्षेत्रक साहित्यिक भाषिक परंपराक सही सही मूल्‍यांकन करबा मे असमर्थ भ' जाइत छथिन्‍ह ।

शर्माजीक ऐ विचारक साथ एकटा युग समाप्‍त होइत छैक । हुनकर मान्‍यता अपना स्‍थान पर आ मैथिलीक मान्‍यता अपना स्‍थान पर ऐ लेख / मान्‍यता /अवधारणाक बादो मैथिलीक मान्‍यता यथावते नइ उपरे दिसि जा रहल छैक ।साहित्‍य अकादमीक मान्‍यता यथावत अछि(किछु विवादक बावजूद) आ आब अष्‍टम अनुसूचीक मान्‍य भाषा मे मैथिली सेहो आबि गेल अछि । तें मान्‍यता आ सरकारी स्‍तर पर स्‍वीकृतिक कोनो खास झंझट नइ ।प्रश्‍न व्‍यक्तिगत आ सामाजिक बेशी अछि ।हमरा सबके मून मे मैथिलीक प्रति अनुरागक अभाव अछि ,किछु गोटे अतिअनुरागी छथिन्‍ह ।हुनकर राजनीतिके आ सामाजिके नइ साहित्यिक क्रियाकलाप मे सेहो ऐ अतिअनुरागक दर्शन होइत रहैत छैक ।मुदा ऐ दृष्टिक कोनो खास सकारात्‍मक प्रभाव अनुपलब्‍ध छैक ।बहुत रास रचना मे मैथिली आ मिथिलाक प्रति खूब मीठ मीठ शब्‍द रहैत छैक ,मुदा ओइ मे रचनात्‍मक दृष्टिक नितांत अभाव रहैत छैक । ने अरूचिपूर्ण प्रशंसा ने गारि मारि सॅं मैथिलीक दिशा आ दशा मे कोनो परिवर्तन संभव छैक ।


हमरा फेर चाही मणिपद्म !,हरिमोहन! आ यात्री !केओ हिंदीए वला नइ आनो आन भाषाभाषी जेकरा पढ़बाक लेल मैथिली सीखि सकए !

Thursday 2 February 2012

**आधुनिक पूजा**

आधुनिकता कए दोड़ मे पुजा आधुनिक भ' गेलै ,
पूजन सँ बेसी आयोजन पर ध्यान देल गेलै ,
मंहगाई कए मारल जनता सँ बेसी चंदा लेल गेलै ,
चौक-चौराहा पर पैघ पंडाल सजाओल गेलै ,
जेकर बेसी खर्च भेलै तेकर नाउ अखबार मे छापल गेलै ,
चिकनी चमेली ,शीला के जवानी ,जलाबी बाई कए नचाओल गेलै ,
कट्टो गिलहरी ,उह ला ला .रजिया संग कतेको मुन्नी बदनाम भेलै ,
कत्तौ-कत्तौ शेरावाली कए जयकारा सुनि पूजा कए यादि एलै ,
भक्तक कम रसिया कए भीड़ बेसी जुटलै ,
ओना पहिले जेकाँ मस्त भ' अबिर उड़ाओल गेलै ,
ऐ तरह सँ आधुनिक पूजा सफल भेलै . . . । ।
जौँ किनको खराब लागए त हम क्षमा चाहब ।
अमित मिश्र

गजल

डेगे-डेग ओ जमीन नापि रहल ,
कतS बिछाबी आसन भाँपि रहल ,
जनता कए ठगबाक लेल देखू ,
राम नामक राग अलापि रहल ,
भूत आ चाची कए डाईन बता क' ,
जोतषी बनि रूपैया छापि रहल .
साँझ ओकर डेरा पर गेलौँ देखू ,
मांस मदिरा लुंगी सँ झाँपि रहल ,
कने पाखंडी जे हम कहि देलियै ,
देखू "अमित" कए शरापि रहल ,
आइ पकड़लक जखन पुलिस ,
देखू कोना थर-थर काँपि रहल . . . । ।
अमित मिश्र