

हमर एकटा मित्र परेशान छथि ।ओ कोनो ठाम पढि़ लेलखिन कि स्वर्गीय राम विलास शर्मा मैथिली के हिंदीक बोली मानैत छथिन्ह ।बात स्वाभाविक छैक आ हुनकर दुख सेहो स्वाभाविक ।जाहि समय मे शर्मा जी ई लेख लिखने छलखिन ,ओहि समय मे यात्री जी चारि पांच पन्नाक प्रलम्ब लेख मे हुनकर काट केलखिन आ सिद्ध केलखिन जे मैथिली पृथक ,स्वतंत्र ,सम्मानित आ गौरवशाली भाषा छैक ।दुर्भाग्य सँ ओ लेख गाम मे अछि ,तें ओकरा विषय मे कोनो प्रकारक बात नइ करब ,मुदा ई बात सिद्ध अछि कि शर्माजी क ओ प्रयास ओहिए समय नकारि देल गेलइ । आ यात्री जी ऐ नकारक बावजूद शर्माजीक प्रिय मित्र बनल रहलखिन । ई भेलए विद्वान आ महान व्यक्तिक बीचक मित्रता ।सिद्धांत पर कोनो समझौता नइ आ स्नेह यथावत ।
आब प्रश्न ई अछि कि जइ 'हिंदी जाति' क अवधारणा क लेल हुनकर एतेक सम्मान अछि ,ओ हमरा सब लेल एते कष्टकारी किएक उत्तर सेहो अत्यंत सामान्य छैक ।शर्माजीक ऐ अवधारणा मे हिंदी समाज आ उत्तर भारतीय समाजक बीज छैक ई बात त'सम्माननीय मुदा जखन हुनकर अवधारणा सामाज्यवादी रूख धारण करैत छैक ,जखन ओ पछबाहि दिमाग सँ काज कर' लागैत छथिन्ह ,तखन ओ कष्टकर साबित होइत छथिन्ह ।
खेतीक हिसाबें ,सामाजिक संरचनाक हिसाबें ,सांस्कृतिक मूल्यक हिसाबें आ पिछड़ल जीवनदृष्टिक हिसाबें शर्माजी उत्तर भारतीय जीवनक एकता देखैत छथिन्ह आ हुनकर दिमाग मे 'हिंदी जाति 'क अवधारणा अपन स्वरूप बनाब' लागैत अछि ।ऐ ठाम तक त' ठीक छैक ,मुदा जखन एकटा खास क्षेत्रक सांस्कृतिक आ साहित्यिक मूल्य ओकर बोलीबानी के ओ प्रतिनिधि मान' लागैत छथिन्ह आ ओहि क्षेत्रक साहित्यिक परंपराक प्रति ओ विशेष अनुराग देखाबैत छथिन्ह तखन हुनकर अनुराग शनै: शनै: पक्षपात दिस प्रस्थान कर' लागैत छैक ।आब हुनकर विचार एते व्यक्तिगत आ क्षेत्रीय भ' जाइत छैक कि ओ एकटा वृहत्तर क्षेत्रक साहित्यिक भाषिक परंपराक सही सही मूल्यांकन करबा मे असमर्थ भ' जाइत छथिन्ह ।
शर्माजीक ऐ विचारक साथ एकटा युग समाप्त होइत छैक । हुनकर मान्यता अपना स्थान पर आ मैथिलीक मान्यता अपना स्थान पर ऐ लेख / मान्यता /अवधारणाक बादो मैथिलीक मान्यता यथावते नइ उपरे दिसि जा रहल छैक ।साहित्य अकादमीक मान्यता यथावत अछि(किछु विवादक बावजूद) आ आब अष्टम अनुसूचीक मान्य भाषा मे मैथिली सेहो आबि गेल अछि । तें मान्यता आ सरकारी स्तर पर स्वीकृतिक कोनो खास झंझट नइ ।प्रश्न व्यक्तिगत आ सामाजिक बेशी अछि ।हमरा सबके मून मे मैथिलीक प्रति अनुरागक अभाव अछि ,किछु गोटे अतिअनुरागी छथिन्ह ।हुनकर राजनीतिके आ सामाजिके नइ साहित्यिक क्रियाकलाप मे सेहो ऐ अतिअनुरागक दर्शन होइत रहैत छैक ।मुदा ऐ दृष्टिक कोनो खास सकारात्मक प्रभाव अनुपलब्ध छैक ।बहुत रास रचना मे मैथिली आ मिथिलाक प्रति खूब मीठ मीठ शब्द रहैत छैक ,मुदा ओइ मे रचनात्मक दृष्टिक नितांत अभाव रहैत छैक । ने अरूचिपूर्ण प्रशंसा ने गारि मारि सॅं मैथिलीक दिशा आ दशा मे कोनो परिवर्तन संभव छैक ।
हमरा फेर चाही मणिपद्म !,हरिमोहन! आ यात्री !केओ हिंदीए वला नइ आनो आन भाषाभाषी जेकरा पढ़बाक लेल मैथिली सीखि सकए !
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