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Friday 30 August 2013

चारि दिन

महीना के पूरै मे बचल रहै चारि दिन
खाता के जोड़ै मे बचल रहै चारि दिन
सब घाटा सब नफा नपल रहै चारि दिन
सब सोहाग सेहन्‍ता गँथल रहै चारि दिन
छौड़ो अलगे तूफान चिंता की चारि दिन
छौडि़यो के अलग लिस्‍ट सूतबै नइ चारि दिन
रहि रहि के मुसकाबथि कनियो ई चारि दिन
जेना गिरै ढ़ाकी सँ मौनी मे चारि दिन

मेहक बरद

खूब मेहनति कर ने वौआ
मुदा मेहक बरद जँका घूमि-घूमि
जिनगी नइ गमा
देखि लेतौ केओ भौतिकी वला
कहतौ केलौं भोर सँ सांझ
मुदा विस्‍थापन शुन्‍य
आ करिहें ओकरा संग फसाद
आ कि तियागबें परिक्रमा पथ
वैह भूस्‍सा ,वैह अनाज ,वैह गोबर
कें लतियाबैत किएक प्रसन्‍न छें
किएक या त' आव या फेर कांव
किछुओ त' नया कह
कनियो त' टटका सुना
हम रोकै नइ छियौ गेबा सँ
मुदा कुनो ढ़ंगक सुना
अइ गरमी मे अछिंजल बहा

ढ़ैंचा

ढ़ैंचा बढ़तै त' कत्‍ते बढ़तै
ढ़ैंचा रहतै त' कत्‍ते रहतै
कत्‍ते देतै छाया
कत्‍ते देतै खाद
ढ़ैंचा जरतै त' कत्‍ते काल जरतै
तीमन बनतै त' थोड़-थाक बनतै
छौड़ी रान्‍हतै त' कत्‍ते रान्‍हतै
जेहने सन संठी तेहने डांढि़-पात
छौड़ा गानतै त' कत्‍ते गानतै

Saturday 24 August 2013

वचन

137. वचन सभक मोन डेराएल रहैत छलै ।लोक घरसँ बहराइत नै छल ।लोक बेसी बाजितो-भुकितो नै छल ।बसातमे मात्र एक टा स्वर गुंजैत छलै, लाल सलाम... ।ओकर कार्यकर्ताक सामने जे आबै से मारल जाइ वा लूटि लेल जाइ ।एक दिन एकटा लड़की ओकरा सभक हाथ लागि गेलै ।लड़की खूब सुन्दर छलै ।कार्यकर्ता सब लड़कीकेँ सरदारक लेल बचा कऽ लऽ गेलै ।सरदारक क्रूर मुँह देख लड़की डरे काँपऽ लागल ।सरदारकेँ अपना लऽग आबैत देख ओ चिकरऽ लागल, कानऽ लागल, मुदा... सरदार ओकरा छूबो नै केलकै ।केलव अपन देह परहक चादर लड़कीकेँ ओढ़ा देलकै आ अपन आदमीपर तमसाए लागलै ।ई सब देख लड़कीकेँ कने हिम्मत एलै ।ओ सरदारसँ पुछलक "अहाँक दल तँ ककरो नै छोड़ैत अछि तखन अहाँ हमरा किए छोड़ि देलौं ?" सरदार शान्त होइत कहलकै "अहाँ हमर बहिन तुल्य छी ।हम अपन बहिनक रक्षाक वचन खेने छी तेँ अहाँक छोड़ि देलौं ।हमर दलमे किछु असमाजिक तत्व घूसि कऽ एकर नाम खराब करैत अछि ।हम अपने कटि जाएब मुदा ककरो माए-बहिनक इज्जत नै लुटाए देबै ।" लड़की मोने-मोन सोचि रहल छल 'एहने सोच बला सगरो समाज भऽ जैतै तँ कने नीक होइतै !' अमित मिश्र

विदेह भाषा सम्मान २०१३-१४ (वैकल्पिक साहित्य अकादेमी पुरस्कारक रूपमे प्रसिद्ध)

विदेह भाषा सम्मान २०१-१ (वैकल्पिक साहित्य अकादेमी पुरस्कारक रूपमे प्रसिद्ध)
२०१ बाल साहित्य पुरस्कार श्रीमती ज्योति सुनीत चौधरी- “देवीजी” (बाल निबन्ध संग्रह) लेल।
२०१ मूल पुरस्कार - श्री बेचन ठाकुरकेँ "बेटीक अपमान आ छीनरदेवी" (नाटक संग्रह) लेल।
२०१३ युवा पुरस्कार- श्री उमेश मण्डलकेँ “निश्तुकी” (कविता संग्रह)लेल।

२०१४ अनुवाद पुरस्कार- श्री विनीत उत्पलकेँ “मोहनदास” (हिन्दी उपन्यास श्री उदय प्रकाश)क मैथिली अनुवाद लेल।




मोहनदास:
https://docs.google.com/a/videha.com/viewer?a=v&pid=sites&srcid=dmlkZWhhLmNvbXx2aWRlaGEtcG90aGl8Z3g6NjQ0NzliM2I1MTIyZTg1ZA

Sunday 4 August 2013

नव दुनियाँ बसाएब हम

बाल कविता-96 नव दुनियाँ बसाएब हम पाथरकेँ फोड़ि जेना झरना बहराइत अछि मेघकेँ तोड़ि जेना सूरज गरमाइत अछि धरतीकेँ फोड़ि जेना गाछ बहराइत अछि तहिना निर्भिक भऽ दुनियाँमे आएब हम अपन शक्तिसँ नव दुनियाँ बसाएब हम पहाड़केँ तोड़ि जेना सरिता बढ़ैत अछि गाछकेँ उखाड़ि जेना बसात बढ़ैत अछि अन्हारकेँ फाड़ि जेना इजोत हँसैत अछि तहिना डेग दैत दुनियाँमे आएब हम निज बूधि-लूरिसँ नव दुनियाँ बसाएब हम ओसक बून्न जेना सदिखन चमकैत अछि तुच्छ फऽर जेना मोन तृप्त करैत अछि उपवनक फूल जेना पल-पल हँसैत अछि तहिना निज गुणसँ दुनियाँकेँ हँसाएब हम अपन कलासँ नव दुनियाँ बसाएब हम लिखल आखरकेँ जेना मेटौना मेटबैत अछि ईश्वरक नेत जेना सबकेँ हरबैत अछि स्पर्श दऽ सबकेँ जेना ज्वाला जरबैत अछि सभक घमण्डकेँ तहिना जराएब हम दिअ आशीष नव दुनियाँ बसाएब हम अमित मिश्र

कोखि

130. कोखि लड़काक कानपटीपर बन्दूक राखि चमेलीसँ वियाह कराओल गेलै ।चमेलीक बाबू अपन शक्तिपर खुश होइत छलथि ।चमेली जखन सासुर आएल तँ ओकर दुनियें बदलि गेलै ।ओकर घरबला ओकरा प्रेम नै दैत छलै ।खाइ-पिबैक दिक्कत नै छलै मुदा वैवाहिक जीवन नरक बनि गेलै ।दस वर्षक बाद चमेली नैहर आएल ।बदलल स्वभाव आ उदास मोन देख माए बाजलीह "गै चमेली, एते उदास किए छें ?" चमेलीकेँ चुप्प देख माए फेर बाजलीह "अच्छे, बूझि गेलियै ।एते वर्ष बितलाक बादो बाल-बच्चा नै भेलौं तेँ उदास छें ।चल काल्हिये कोनौ बाबासँ झड़बा दै छियै ।भूत-प्रेत भागि जेतौ ।" माएक बात सूनि चमेली कानैत बाजलीह "गै, हमरा लेल भूत-प्रेत तँ हमर बापे छै ।हमरा कोनो ओझाक जरूरति नै छै ।हमर बापकेँ कहि दहीं जे फेर मरदाबाक कनपटीपर बन्दूक राखि बच्चा जनमेबाक सबटा जोगार अपना सामने कऽ दै ।जखन हमरा डूबाइये देलनि तखन लाज केहन ?" बेटीक बात सूनि माएकेँ किछु नै फुरा रहल छलै । अमित मिश्र

हाथी गेलै भोज खाए

बाल कविता-95 हाथी गेलै भोज खाए एक जंगलमे पण्डीत हाथी खाली सदिखन पेटक भाथी एक बेर बकरी केलकै व्रत भोजनमे एलै हाथी मस्त भोजनमे आलूक परौठा खा रहलै चाटि-चाटि औंठा आँटा खतम आलू निंघटल पेट एखन आधो नै भरल घामे-पसीने बकरी कानै खाली पेट तँ भोजन जानै अन्तमे बकरी केलक प्रणाम धन्य प्रभु !आब दियौ विराम हाथी बाजल "हम नै मानबौ" और खेबौ, घरो लऽ जेबौ कानै बकरी, हाथी बजा कऽ खाइ छै हाथी सूँढ़ नचा कऽ अमित मिश्र

Saturday 3 August 2013

कथा -प्रेम : वरदान वा अभिशाप


प्रेम : वरदान वा अभिशाप


गर्मीक दिन छल ,साँझक समय ।ऐहन समयमे डूबैत सूरूजक दृश्ये किछु अजीब होएत अछि ,जेना किछु व्याकुल , किछु उदास-सन , किछु कहैत मुदा चुपे - चाप सूरूज डूबि रहल छल ।साउनक मासमे गंगाक कातसँ अथाह पानिक पाछाँ सूरूज डूबबाक चित्रे मोनमे कए तरहक प्रश्न प्रकट कऽ दैत अछि ।
॰ ॰ ॰ कि एका- एक राजीव फोन देखैत अछि , ककरो फोन नै आएल रहैक । ओ अपन शर्टक जेबमे हाथ दैत अछि आ सिगरेटक डिब्बा निकालि लैत अछि , डिब्बा खोलि ओहिमेसँ एकटा सिगरेट निकालि लैत अछि , सिगरेट सुलगा डिब्बा पानिमे फेँक दैत अछि , शायद एक्केटा सिगरेट ओहिमे बचल रहैक । ओ सिगरेटक कश खीचैत गंगाक धारमे हिलैत - डोलैत सिगरेटक डिब्बाक आगू जाएत देख रहल छैक आ ता धरि देखैत रहल जा धरि उ डिब्बा विलुप्त नै भेलै , ओ किछु उदास भऽ गेल जेना ओकर किछु अपन छूटि दूर चलि गेल होए ।
॰ ॰ आ कि जेना ओकरा किछु फुरायल होए ओ अपन मोबाईल देखैत अछि कोनो फोन नै आएल रहैक । ओ अपन मुख पश्चिम दिस करैत अछि , सूरूज आधा डूबल छल आ आधा ऊपर । ओ सिगरेटक अंतिम कश खीँचैत सूरूजके डूबैत देखैत रहल , आ फेरसँ एक बेर मोबाईल दिस देखैत अछि , कोनो फोन नै आएल रहैक ,ओकर मोन व्याकुल भऽ गेल आ ओ उठि डेरा दिस चलि दैत अछि । डेरा गंगा कातसँ किछुए दूरी पर छल ।ओ बराबर साँझके गंगा कातमे स्थित कृष्णा घाट पर आबि बैस जाएत छल , ओकर मोनके ऐहि ठाम किछु शांति भेटैत छल ।
॰ ॰ डेरा पहुँचि , गेट खोलि ओ अंदर कमरामे गेल पहिले बल्ब फेर पंखाके चालू कऽ दैत अछि , आ एक बेर अपन मोबाईल देखैत अछि कोनो फोन नै आएल रहैक । फेर ओ कपड़ा खोलि , डाँढ़मे गमछा लपटि बाथरुम जाएत अछि , बाथरुमसँ आबि फेरसँ मोबाईल देखैत अछि , फोन नै आएल रहैक ।बल्बके बंद कऽ ओझैन पर पसरि जाएत अछि ॰ ॰ किछु देर मोनमे अस्थिर कऽ सुतबाक प्रयास करैत अछि ॰ ॰ नीन्न आँखिसँ कोसो दूर ॰ ॰ मोबाईल देखैत अछि , फोनो नै आएल रहैक । कियै , आखिर कियै ॰ ॰ ॰ नीतू ओकरा फोन नै कऽ रहल छैक ॰ ॰ ॰ शायद ओकरा बिसरि गेलै , नै ई नै भऽ सकैत अछि ओ ओकरा नै बिसरि सकैत अछि आ ओकरा दिमागमे सभटा पुरना बात सीडी प्लेयर जकाँ घूमऽ लागलै ।जेना ई कोल्हके बात होए ओकरा मोबाईल पर एकटा नंबरसँ फोन एलै -

- हैलो ( कोनो लड़कीक स्वर रहैक)
- हाँ , हैलो , के
-हम अंजलि , आ अहाँ
- राजीव , हम राजीव छी ॰ ॰ अहाँ कतोऽ सँ बाजैत छी
- दरभंगा , आ अपने
-रौंग नंबर अछि ,ई पटना छैक (आ राजीव फोन काटि दैत छैक )

किछुए देर बाद फेरसँ फोन आबैत छैक राजीव जा धरि फोन उठेताह , फोन कटि जाएत छैक ॰ ॰ ओ मिसकाँल रहैक । ईम्हरसँ फोन करैत अछि , फेरसँ ओहे लड़कीक स्वर - ! आ अहिना धीरे-धीरे फोनक सिलसिला शुरु भऽ जाएत छैक आ बात होबऽ लागैत छैक ।बादमे ओ लड़की राजीवसँ कहैत छैक ओकर नाम अंजलि नै नीतू छैक । किछुए दिनमे बात बेसी होबऽ लागल आ गप्पक अवधि बढ़ैत गेल आ एक दोसरासँ प्रेम भऽ गेलैक ।
धीरे-धीरे बात एते होबऽ लागल कि राजीवक काँलेज - कोचिंग ,पढ़ाइ - लिखाइ सभ छूटि गेलैक आ जौँ कहियो ओ काँलेज जेबाले सेहो चाहै नीतू ओकरा मना करैत रहैक ।
बातक दरमियान दूनू भविष्यमे विवाह करब आ मिलबके प्रोगाम बनाबैत रहैक ।
आइ राजीव बहुत प्रसन्न छैक ओ नीतूसँ मिलऽ लेल दरभंगा जा रहल छैक । साँझके 7 बजे दरभंगा पहुँचैत छैक आ भोजन कऽ होटलमे एकटा कमरा लऽ लैत छैक । भोरे नीतू दरभंगा जाइत छैक आ हजमा चौराहा पर राजीवके मिलनक लेल बजबैत छैक । राजीव हजमा चौराहा जाइत छैक आ दूनूक मिलन होएत छैक ।राजीव देखबामे ठीक ठाक रहैक नीतू सेहो सामान्ये छलीह । बाटमे चलिते चलिते नीतू राजीवक हाथ पकड़ि लैत छैक , राजीवके एकटा विशेष प्रकारक अनुभूति होएत छैक ,आखिर पहिल बेर कोनो युवती ओकर हाथ पकड़ने छैक ।दूनू होटलक कमरा धरि हाथ पकड़ि जाएत छैक , कमरामे जा गेट अंदरसँ बंद कऽ लैत छैक ।नीतू राजीवक हाथ पकड़ि चूमि लैत छैक आ राजीव ओकर ठोर पर आ दूनू एक दोसरामे ओझरा जाएत छैक ।
मिलनक उपरांत बातचीतमे कोनो प्रकारक अंतर नै भेलैक आ दोबारा मिलनक प्रोगाम बनैत रहलै , संगे संग विवाहक प्रोगाम सेहो बनैत रहलै । आ कि एक दिन नीतू , राजीवसँ अपन विवाह कोनो आन ठाम तय होबाक समाद सुनाबैत छैक , राजीवक देहपर तऽ जेना बिजली खसि पड़ल होए । दुनु बहुत कानैत खीजैत छैक आ नीतू पहिले चुप भऽ राजीवके बुझाबैत छैक -
"अहाँ नै कानू , हम्मर सप्पत । हम अहाँसँ बाते ने करैत छलौ ।हम विवाहक बादो बात करब आ अहाँसँ मिलब । हयौ जान ॰ ॰ हमर देहे टा ने ओकरा लग रहतैक बाँकि मोनमे अहीँ छी आ अहीँ रहब ।हम अहीँ टा सँ प्रेम करैत छी आ अहीँ टा सँ करैत रहब ।अहाँके हमर सप्पत चुप भऽ जाउ नै कानू । "
राजीव कहुना सप्पत मानि चुप भऽ जाएत छैक । लगभग दू मासक बाद नीतूक विवाह होएत छैक , विवाह दिन धरि बात ओहिना होएत रहल जेना होएत छल ।
विवाहत परात राजीव ,नीतूक फोन करैत छैक मुदा फोन बंद छैक ,एक दिन ,दू दिन आ कि तेसर दिन ओकरा एकटा दोसर अनजान नंबंरसँ मिसकाँल आबैत छैक ओ फोन करैत छैक , दोसर दिससँ नीतूक स्वर आबैत छैक ।बात होएत छैक , राजीव बहुत कानैत छैक ,नीतू चुप कराबैत छैक , बुझाबैत छैक ।फोन राखबाक कालमे नीतू कहैत छैक अहाँके जखन मिसकाँल करब तखने टा फोन करब ।किछु दिन तक अहिना चलैत छैक ।
राजीवके बहुते दिक्कत होएत छैक , ओकरा मोन नै लागि रहल छैक ।दिन तऽ कहुना कटियो जाएत छैक राति काटब मुश्किल होएत छैक . . नीन्न सेहो नै होएत छैक ।नै भूख छैक , नै प्यास ।

चारि दिनसँ फोन आएल बंद भेल छैक , तखन एक दिन राजीव फोन करैत छैक , नीतू फोन नै उठाबैत छैक । दोसर दिन राजीव फेरसँ फोन करैत छैक , नीतू उठबैत छैक आ कहैत छैक - हमरा कियै फोन करैत छी , हमरा फोन नै करु , हमर जिनगी कियै बरबाद करऽ चाहैत छी , हमरा कियै घरसँ बाहर करऽ चाहैत छी , विनय (ओकर पति)हमरा छोड़ि देत , हम कतौऽ कऽ नै रहब । जौँ अहाँके हमरासँ प्रेम अछि तऽ फोन करल छोड़ि दियौ ,अहाँके हम्मर सप्पत फोन नै करु । ई बात सुनिते मानू जेना राजीवक देहमे आगि लागि गेल होए । जेना ओकरा करेज पर कियौ पाथर मारि देने होए ।ओकर मोन टूटि जाएत छैक उ भोकारि पाड़ि कऽ कानै छैक ।आ ओहि दिन ओ प्रण करैत छैक चाहे प्राण कियेक नै निकलि जाय लेकिन नीतूक फोन नै करतै ।आ दर्दमे ओ डूबल रहऽ लागल , असगर कमरा बंद कऽ रहऽ लागल ।धीरे धीरे ओकरा शराब सिगरेट गुटखाक हिस्सक सेहो पड़ि गेलै ।

किछु दिन उपरांत ओकरा पता चलैत छैक जे ओकर परीक्षा होबऽ बला छैक ओ काँलेज पहुँचैत छैक ।तखन नोटिस बोर्ड पर परीक्षाक सूचना देखैत छैक ।फार्म भरबाक लेल किरानी बाबू लग जाएत छैक , तखन किरानी बाबू एतेक दिनसँ अनुपस्थित रहबाक कारण पुछैत छैथ ,ओकर पिताक फोन नंबंर लैत छैथ आ फार्म भरवाके अनुमति नै दैत छथि ।ओकरा किछु नै फुरायत अछि कि की करी , आ की नै ? ओ बहुत प्रयास करैत छैक मुदा फार्म नै भरि पाबैत छैक ।ओकर पराते ओकरा घरसँ फोन आबैत छैक , फोन पर ओकर पिता छलखिन्ह आ बहुते क्रोधित सेहो छलखिन्ह ।ओकर पिता राजीवसँ कहलखिन्ह-
" हम दुनु प्राणी अपन पेट काटि तोरा पाइ भेजैत छलौँ आ तू नै काँलेज जाएत छलैए आ नइ पढैत छलैए ।काल्हि तोहर काँलेजक किरानी बाबू फोन पर कहलाह जे तू छ माहसँ काँलेज नै जाएत छलैए आ देरसँ जेबाक कारण बार्षिक परीक्षाक फार्म नै भरि सकलेए , से आइसँ तू अलग हम अलग ।आब हम तोरा एक नया पाइ नै देबौ " ।
एतेक सुनि राजीवक जेना पैर तोरसँ धरती खिसकि जाएत छैक , ओकर कंठ सूखऽ लागैत छैक , देह टूटि रहल छैक ।मोन कानि रहल छैक , आँखिमे नोर नै छैक , मुँह पीयर लागैत छैक ।उ मोबाईलमे समय देखैत छैक रातिक तीन बाजि रहल छैक , एक आठ बजे साँझसँ उ सुतबाक प्रयास कऽ रहल छैक मुदा नीन्न कोसो दूर छैक ।आ कि एक बेर फेरसँ मोबाईल देखैत छैक , कोनो फोन नै आएल रहैँ । ओकरा विश्वास छैक नीतू फोन जरुर करतीह आ जा धरि ओकर जिनगी छैक उ नीतूक फोनक बाट जोहैत रहत मुदा फोन आएल आइ मास भरिसँ बेसी भेल छैक ।

© बाल मुकुन्द पाठक