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Saturday 3 August 2013

कथा -प्रेम : वरदान वा अभिशाप


प्रेम : वरदान वा अभिशाप


गर्मीक दिन छल ,साँझक समय ।ऐहन समयमे डूबैत सूरूजक दृश्ये किछु अजीब होएत अछि ,जेना किछु व्याकुल , किछु उदास-सन , किछु कहैत मुदा चुपे - चाप सूरूज डूबि रहल छल ।साउनक मासमे गंगाक कातसँ अथाह पानिक पाछाँ सूरूज डूबबाक चित्रे मोनमे कए तरहक प्रश्न प्रकट कऽ दैत अछि ।
॰ ॰ ॰ कि एका- एक राजीव फोन देखैत अछि , ककरो फोन नै आएल रहैक । ओ अपन शर्टक जेबमे हाथ दैत अछि आ सिगरेटक डिब्बा निकालि लैत अछि , डिब्बा खोलि ओहिमेसँ एकटा सिगरेट निकालि लैत अछि , सिगरेट सुलगा डिब्बा पानिमे फेँक दैत अछि , शायद एक्केटा सिगरेट ओहिमे बचल रहैक । ओ सिगरेटक कश खीचैत गंगाक धारमे हिलैत - डोलैत सिगरेटक डिब्बाक आगू जाएत देख रहल छैक आ ता धरि देखैत रहल जा धरि उ डिब्बा विलुप्त नै भेलै , ओ किछु उदास भऽ गेल जेना ओकर किछु अपन छूटि दूर चलि गेल होए ।
॰ ॰ आ कि जेना ओकरा किछु फुरायल होए ओ अपन मोबाईल देखैत अछि कोनो फोन नै आएल रहैक । ओ अपन मुख पश्चिम दिस करैत अछि , सूरूज आधा डूबल छल आ आधा ऊपर । ओ सिगरेटक अंतिम कश खीँचैत सूरूजके डूबैत देखैत रहल , आ फेरसँ एक बेर मोबाईल दिस देखैत अछि , कोनो फोन नै आएल रहैक ,ओकर मोन व्याकुल भऽ गेल आ ओ उठि डेरा दिस चलि दैत अछि । डेरा गंगा कातसँ किछुए दूरी पर छल ।ओ बराबर साँझके गंगा कातमे स्थित कृष्णा घाट पर आबि बैस जाएत छल , ओकर मोनके ऐहि ठाम किछु शांति भेटैत छल ।
॰ ॰ डेरा पहुँचि , गेट खोलि ओ अंदर कमरामे गेल पहिले बल्ब फेर पंखाके चालू कऽ दैत अछि , आ एक बेर अपन मोबाईल देखैत अछि कोनो फोन नै आएल रहैक । फेर ओ कपड़ा खोलि , डाँढ़मे गमछा लपटि बाथरुम जाएत अछि , बाथरुमसँ आबि फेरसँ मोबाईल देखैत अछि , फोन नै आएल रहैक ।बल्बके बंद कऽ ओझैन पर पसरि जाएत अछि ॰ ॰ किछु देर मोनमे अस्थिर कऽ सुतबाक प्रयास करैत अछि ॰ ॰ नीन्न आँखिसँ कोसो दूर ॰ ॰ मोबाईल देखैत अछि , फोनो नै आएल रहैक । कियै , आखिर कियै ॰ ॰ ॰ नीतू ओकरा फोन नै कऽ रहल छैक ॰ ॰ ॰ शायद ओकरा बिसरि गेलै , नै ई नै भऽ सकैत अछि ओ ओकरा नै बिसरि सकैत अछि आ ओकरा दिमागमे सभटा पुरना बात सीडी प्लेयर जकाँ घूमऽ लागलै ।जेना ई कोल्हके बात होए ओकरा मोबाईल पर एकटा नंबरसँ फोन एलै -

- हैलो ( कोनो लड़कीक स्वर रहैक)
- हाँ , हैलो , के
-हम अंजलि , आ अहाँ
- राजीव , हम राजीव छी ॰ ॰ अहाँ कतोऽ सँ बाजैत छी
- दरभंगा , आ अपने
-रौंग नंबर अछि ,ई पटना छैक (आ राजीव फोन काटि दैत छैक )

किछुए देर बाद फेरसँ फोन आबैत छैक राजीव जा धरि फोन उठेताह , फोन कटि जाएत छैक ॰ ॰ ओ मिसकाँल रहैक । ईम्हरसँ फोन करैत अछि , फेरसँ ओहे लड़कीक स्वर - ! आ अहिना धीरे-धीरे फोनक सिलसिला शुरु भऽ जाएत छैक आ बात होबऽ लागैत छैक ।बादमे ओ लड़की राजीवसँ कहैत छैक ओकर नाम अंजलि नै नीतू छैक । किछुए दिनमे बात बेसी होबऽ लागल आ गप्पक अवधि बढ़ैत गेल आ एक दोसरासँ प्रेम भऽ गेलैक ।
धीरे-धीरे बात एते होबऽ लागल कि राजीवक काँलेज - कोचिंग ,पढ़ाइ - लिखाइ सभ छूटि गेलैक आ जौँ कहियो ओ काँलेज जेबाले सेहो चाहै नीतू ओकरा मना करैत रहैक ।
बातक दरमियान दूनू भविष्यमे विवाह करब आ मिलबके प्रोगाम बनाबैत रहैक ।
आइ राजीव बहुत प्रसन्न छैक ओ नीतूसँ मिलऽ लेल दरभंगा जा रहल छैक । साँझके 7 बजे दरभंगा पहुँचैत छैक आ भोजन कऽ होटलमे एकटा कमरा लऽ लैत छैक । भोरे नीतू दरभंगा जाइत छैक आ हजमा चौराहा पर राजीवके मिलनक लेल बजबैत छैक । राजीव हजमा चौराहा जाइत छैक आ दूनूक मिलन होएत छैक ।राजीव देखबामे ठीक ठाक रहैक नीतू सेहो सामान्ये छलीह । बाटमे चलिते चलिते नीतू राजीवक हाथ पकड़ि लैत छैक , राजीवके एकटा विशेष प्रकारक अनुभूति होएत छैक ,आखिर पहिल बेर कोनो युवती ओकर हाथ पकड़ने छैक ।दूनू होटलक कमरा धरि हाथ पकड़ि जाएत छैक , कमरामे जा गेट अंदरसँ बंद कऽ लैत छैक ।नीतू राजीवक हाथ पकड़ि चूमि लैत छैक आ राजीव ओकर ठोर पर आ दूनू एक दोसरामे ओझरा जाएत छैक ।
मिलनक उपरांत बातचीतमे कोनो प्रकारक अंतर नै भेलैक आ दोबारा मिलनक प्रोगाम बनैत रहलै , संगे संग विवाहक प्रोगाम सेहो बनैत रहलै । आ कि एक दिन नीतू , राजीवसँ अपन विवाह कोनो आन ठाम तय होबाक समाद सुनाबैत छैक , राजीवक देहपर तऽ जेना बिजली खसि पड़ल होए । दुनु बहुत कानैत खीजैत छैक आ नीतू पहिले चुप भऽ राजीवके बुझाबैत छैक -
"अहाँ नै कानू , हम्मर सप्पत । हम अहाँसँ बाते ने करैत छलौ ।हम विवाहक बादो बात करब आ अहाँसँ मिलब । हयौ जान ॰ ॰ हमर देहे टा ने ओकरा लग रहतैक बाँकि मोनमे अहीँ छी आ अहीँ रहब ।हम अहीँ टा सँ प्रेम करैत छी आ अहीँ टा सँ करैत रहब ।अहाँके हमर सप्पत चुप भऽ जाउ नै कानू । "
राजीव कहुना सप्पत मानि चुप भऽ जाएत छैक । लगभग दू मासक बाद नीतूक विवाह होएत छैक , विवाह दिन धरि बात ओहिना होएत रहल जेना होएत छल ।
विवाहत परात राजीव ,नीतूक फोन करैत छैक मुदा फोन बंद छैक ,एक दिन ,दू दिन आ कि तेसर दिन ओकरा एकटा दोसर अनजान नंबंरसँ मिसकाँल आबैत छैक ओ फोन करैत छैक , दोसर दिससँ नीतूक स्वर आबैत छैक ।बात होएत छैक , राजीव बहुत कानैत छैक ,नीतू चुप कराबैत छैक , बुझाबैत छैक ।फोन राखबाक कालमे नीतू कहैत छैक अहाँके जखन मिसकाँल करब तखने टा फोन करब ।किछु दिन तक अहिना चलैत छैक ।
राजीवके बहुते दिक्कत होएत छैक , ओकरा मोन नै लागि रहल छैक ।दिन तऽ कहुना कटियो जाएत छैक राति काटब मुश्किल होएत छैक . . नीन्न सेहो नै होएत छैक ।नै भूख छैक , नै प्यास ।

चारि दिनसँ फोन आएल बंद भेल छैक , तखन एक दिन राजीव फोन करैत छैक , नीतू फोन नै उठाबैत छैक । दोसर दिन राजीव फेरसँ फोन करैत छैक , नीतू उठबैत छैक आ कहैत छैक - हमरा कियै फोन करैत छी , हमरा फोन नै करु , हमर जिनगी कियै बरबाद करऽ चाहैत छी , हमरा कियै घरसँ बाहर करऽ चाहैत छी , विनय (ओकर पति)हमरा छोड़ि देत , हम कतौऽ कऽ नै रहब । जौँ अहाँके हमरासँ प्रेम अछि तऽ फोन करल छोड़ि दियौ ,अहाँके हम्मर सप्पत फोन नै करु । ई बात सुनिते मानू जेना राजीवक देहमे आगि लागि गेल होए । जेना ओकरा करेज पर कियौ पाथर मारि देने होए ।ओकर मोन टूटि जाएत छैक उ भोकारि पाड़ि कऽ कानै छैक ।आ ओहि दिन ओ प्रण करैत छैक चाहे प्राण कियेक नै निकलि जाय लेकिन नीतूक फोन नै करतै ।आ दर्दमे ओ डूबल रहऽ लागल , असगर कमरा बंद कऽ रहऽ लागल ।धीरे धीरे ओकरा शराब सिगरेट गुटखाक हिस्सक सेहो पड़ि गेलै ।

किछु दिन उपरांत ओकरा पता चलैत छैक जे ओकर परीक्षा होबऽ बला छैक ओ काँलेज पहुँचैत छैक ।तखन नोटिस बोर्ड पर परीक्षाक सूचना देखैत छैक ।फार्म भरबाक लेल किरानी बाबू लग जाएत छैक , तखन किरानी बाबू एतेक दिनसँ अनुपस्थित रहबाक कारण पुछैत छैथ ,ओकर पिताक फोन नंबंर लैत छैथ आ फार्म भरवाके अनुमति नै दैत छथि ।ओकरा किछु नै फुरायत अछि कि की करी , आ की नै ? ओ बहुत प्रयास करैत छैक मुदा फार्म नै भरि पाबैत छैक ।ओकर पराते ओकरा घरसँ फोन आबैत छैक , फोन पर ओकर पिता छलखिन्ह आ बहुते क्रोधित सेहो छलखिन्ह ।ओकर पिता राजीवसँ कहलखिन्ह-
" हम दुनु प्राणी अपन पेट काटि तोरा पाइ भेजैत छलौँ आ तू नै काँलेज जाएत छलैए आ नइ पढैत छलैए ।काल्हि तोहर काँलेजक किरानी बाबू फोन पर कहलाह जे तू छ माहसँ काँलेज नै जाएत छलैए आ देरसँ जेबाक कारण बार्षिक परीक्षाक फार्म नै भरि सकलेए , से आइसँ तू अलग हम अलग ।आब हम तोरा एक नया पाइ नै देबौ " ।
एतेक सुनि राजीवक जेना पैर तोरसँ धरती खिसकि जाएत छैक , ओकर कंठ सूखऽ लागैत छैक , देह टूटि रहल छैक ।मोन कानि रहल छैक , आँखिमे नोर नै छैक , मुँह पीयर लागैत छैक ।उ मोबाईलमे समय देखैत छैक रातिक तीन बाजि रहल छैक , एक आठ बजे साँझसँ उ सुतबाक प्रयास कऽ रहल छैक मुदा नीन्न कोसो दूर छैक ।आ कि एक बेर फेरसँ मोबाईल देखैत छैक , कोनो फोन नै आएल रहैँ । ओकरा विश्वास छैक नीतू फोन जरुर करतीह आ जा धरि ओकर जिनगी छैक उ नीतूक फोनक बाट जोहैत रहत मुदा फोन आएल आइ मास भरिसँ बेसी भेल छैक ।

© बाल मुकुन्द पाठक 

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