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Sunday 27 November 2011

दण्‍डी आ काव्‍यलक्षण

दण्‍डी नीरस शास्‍त्रकार नइ छथिन्‍ह ,प्रतापी कवि सेहो छथिन्‍ह । ''अलंकृतमसंक्षिप्‍तं रसभाव निरंतरम '' ।हुनकर स्‍पष्‍ट विचार अछि कि कविता ओइ पदसमूह क नाम छैक ,जे वांछित सरसता सँ युक्‍त हो ।ऐ ठाम कविप्रतिभा सुंदर पदावली सँ संयुक्‍त हेबाक चाही ।
''शरीरंतावदिष्‍ठार्थ व्‍यवच्छिन्‍ना पदावली ''(काव्‍यादर्श) । इष्‍टार्थयुक्‍त पदावलीक एकटा अर्थ ई जे  पद मे 'योग्‍यता' ,'आकांक्षा' आदि होयबाक चाही ।दंडी महाराजक मंतव्‍य ऐ ठाम ई अछि कि इष्‍ठार्थत्‍व क सौजन्‍ये सँ काव्‍यत्‍व क जन्‍म होइत छैक ।यद्यपि हुनक रसचेतना भावात्‍मक कम आ अलंकार केंद्रित बेशी अछि आ हुनका लेल समस्‍त अलंकारक उद्देश्‍य रससृष्टि मात्र छैक ।
                                                            हिनकर चिंतन मे 'इष्‍टार्थ'क स्‍पष्‍ट व्‍याख्‍या नइ छैक ,तैयो ई मानल जाइत अछि जे ऐ पदक संदर्भ भामहकालीन काव्‍यचिंतन सँ छैक ।भामहक लेल शब्‍दालंकार आ अर्थालंकार दूनू इष्‍ट छलइ ,मुदा दण्‍डी क लेल शब्‍द,अर्थ,रस सौंदर्य सँ युक्‍ते पदावली काव्‍य थिक ।दण्‍डी क सीमा ई अछि जे ओ ' 'इष्‍टार्थ'क चर्चा मात्र अर्थालंकारक लेल करैत छथिन्‍ह ।
                                                           दण्‍डी क सीमा स्‍पष्‍ट अछि ओ शब्‍दार्थ के काव्‍यक शरीर मानैत छथिन्‍ह आ अलंकार के आत्‍मा ।हुनकर विचार मे अलंकारविहीन पदावली साहित्‍य नइ भ' सकैत अछि ।


Saturday 26 November 2011

टिप्‍स फ्राम खट्टरकका

न्‍यूटनक नियम मे
किछु जोडि़ घटा देबहक
कोनो दोसर भाषा कोनो आन फांट मे
किछु शब्‍द बदलि के
क्रम बदलि के
तखन की
ओ नियम तोहर भ' जेत'
नइ ने
 मुदा साहित्‍य मे ई फ्राड खूब लोकप्रिय अछि
टीपू आ छपि जाउ
बूझलहो वौआ
आ केओ पकडि़ लए
तखन कहि दहो हम त' हुनका सँ प्रेरणा लेने छी
आ बूडि़भकुआ तैयो नइ मान'
तखन जोर सॅ बाजिह'
ओकर कान तीरैत
कानिह' खीजिह'
अपनो मुंह कान नोचैत
ओकरो केश टीक तीरने
साल दू साल त' बिताए देब'
साहित्‍यो विज्ञान होइछ
तावत केओ आन कतउ सँ टीपतइ
ओ मंच पर आबि जेतइ
आ फेर नया सिरा सँ तीरमतीरा प्रारंभ भ' जेतइ

दोस महिम 3





गीत गाबैत श्‍लोक पढ़ैत
 उद्धरणक बरसा करैत
कखनो प्रेरक प्रसंग
कखनो वेद पुराण
तहिना अर्थराजनीति
कखनो भकुआइ
अकछी कखनो
दोस देवता देखाथिन
दया बेचैत
ओ छली फरेबी वंचक
बहुरूपिया छलइ
कखनो कालिदास
विद्यापति जपइ छलइ
महान ज्ञानी नइ
जानकार छलइ
फंसा लै छलै
कोनो चरचा मे
मनबा लै छलै बात
भ जाइ छलियइ चित्‍त
पटो मे किछु नइ करैत छलियइ
ओ कखनो बीमा
कखनो कविता
कखनो किताब बेचि पड़ा जाइत छल ।
ओ आब चुप अछि
ने दुश्‍मनीक बात
ने दोस्‍ती क चर्चा छइ
काल्हि फेर आयत
कोनो नया डिब्‍बा पेटी किताब
मोबाईल स्‍कीम नेने
हम फेर चित्‍त हेबइ
ओ फेर भूतिया जायत
अपन बटुआ सम्‍हारैत ।

Thursday 24 November 2011

दोस महिम 2

आब दोस डेली बतियाइ छथिन
सामना सामनी नइ त' फोने सँ
थाहइ छथिन
कोन नस कत्‍त' सँ पकड़ी
थाहैत छछारैत मुस्कियाइ छथिन
हम दबि रहल छी हुनकर जानकारी सँ
कालिदास मैथिली मोहम्‍मद रफी
आब हुनको प्रिय विषय अछि
पहिले मिलबा सँ बचैत रही
आब नइ आबइ छथिन
त' कोनादिन लागैत अछि
दोस तमाकू जँका
ठोर कब्जियेने जाइ छथि
आ भांग जँका दिमाग
की कही
दिमाग त पहिले सँ
हफीमियाइल अछि
दोस एता
ओ कहता
आ हम करब
यद्यपि नफा नुकसान जनइ छी
मुदा दोस शिष्‍ट बना गेला
बाजइ भूकइक तरीका
नीक जँका सीखा गेला

Wednesday 23 November 2011

दोस महिम 1

कखनो जातिक लसेर लगबैत
कखनो कुल गोत्र क सोंगर नेने
उपकारक पंजी समेटने
बीतल युग पर टीका करैत
कोनो चित्र पर सँ जाल मकरी साफ करैत
आबि गेलखिन दोस
ओ कहथिन आ कहिते र‍हथिन
ओ सुनबा ले नइ आयल छथिन
हुनका मोल चाही
ओ तौल रहल छथिन
अतीत के सिनेह के
ओ खोजि रहल छथिन
सबसँ बड़का अंक
जे अचूक होए
आ बटखरा के बदला
राखि देने छथिन
बीतल युगक दोसतियारी

Sunday 20 November 2011

बर्फ पानि भाफ

देह ओकर बर्फ छलइ
मोन ओकर पानि छलइ
स्‍वप्‍न ओकर भाफ छलइ
देह मोन स्‍वप्‍न ओकर
बर्फ पानि भाफ छलइ
उमेर ओकर तेहने सन
सतरह अठारह छलइ
मोनक उन्‍नीस बीस
जिनगी केर पैघ छोट
जाउ कनि एमहर
वा ओमहर लजाति छलइ
मुसका बैत मंद मंद
आंखि नाक तीर तारि
नहू नहू डेग ओकर
कखनो बिहाडि़ छलइ
इतिहासक घंटी मे गणिते
बुझाइत रहइ
रामजीक सासुर
अयोध्‍या देखाइत रहए ।

Friday 18 November 2011

आचार्य भामहक चिंतन


भामह क चिंतन
भामह अलंकारवादी रहथि आ संस्‍कृत आलोचना क ऐ विवाद सॅं परिचित छलाह जे काव्‍यसौंदर्यक मूलाधार शब्‍दालंकार मे होइछ वा अर्थालंकार मे ।पहिल मानैत छलाह जे काव्‍य मे चमत्‍कार क सृष्टि शब्‍द सौंदर्ये सँ संभव अछि ।दोसर समुदाय मानैत छल जे उपमा ,रूपक आदि अर्थालंकारे सँ काव्‍य शोभा होइछ ।भामह अपना हिसाबें दूनू मे समन्‍वय करबा के प्रयास केलखिन्‍ह ।
' शब्‍दार्थौ सहितौ काव्‍यम्' क द्वारा भामह शब्‍द आ अर्थ दूनू क महत्‍व पर बल दैत छथिन्‍ह ,अर्थात शब्‍द आ अर्थक सहभाव मे काव्‍यक सृष्टि होइत छैक ।य‍द्यपि भामहक चिंतन सँ ई विवाद आर गहिरायल कि काव्‍य कत' होइत छैक 1 शब्‍द मे2 अर्थ मे 3 या सहभाव मे ।ई विवाद एते प्रबल रहल कि शाहजहॉ कालीन विद्वान जगन्‍नाथ कहलखिन्‍ह 'रमणीय अर्थक प्रतिपादक शब्‍दे काव्‍य थिक ।आ वर्तमान मैथिली कविता के देखल जाइ तखन लागैत अछि जे फेर सॅ शब्‍द अपन जाल फैला रहल अछि ।
ओना आधुनिक मैथिली मे फतवा क कमी नइ छैक आ जइ कविता के प्राचीन सॅ प्राचीन आचार्य तक नवोन्‍मेष के कारणें स्‍वीकार क' सकैत छलखिन ओ कविता मैथिली मे एक झटका मे श्रीविहीन साबित क' देल जाइत अछि ,आ तहिना श्रीविहीन कविता के गौरवान्वित करए के सेहो ऐ ठाम सुदीर्घ परंपरा अछि ।

Sunday 6 November 2011

बस तीने दिन

लागि रहल पटना दरभंगा
 तीन दिन लसेर अओ
जुटि रहला बड़ बड़ महन्‍थ
सेर केओ सवा सेर अओ
सुनु सुनु रंगबिरही बाजा
वौआ पटना कक्‍का झाझा
पाउडर काजर खूब लगेने
कविक राग बहेर अओ
 लस्‍सी पेप्‍सी मुरगा माछक
 पन्‍नी शीशी  हड्डी कांटा
 लागि रहल अछि ढ़ेर अओ
 बस तीने दिन जय विद्यापति
 जय मिथिला के फेर अओ
फेर वौआ तहिना दिन रहतइ
कानिपीट के भाग पड़ेतइ
जगत जानकी सासुर बसतइ
बस तीने दिन दिनक फेरा

बिसरत सब नरहेर अओ

Thursday 3 November 2011

उत्‍थर लोक


जेहने हम
तेहने हमर ई उत्‍थर शब्‍द
करिया माटिक बड़का चेका
सुक्‍खल बज्‍जर सन
हर बरदक बात छोडू
ट्रेक्‍टरोक चक्‍का धसैत छैक
आ कखनो भुसभुसिया उस्‍सर
पनिसोखिया बलुआही
कनियो लैस नइ
की चापलूसी
कोन कृतज्ञता
नोकगर खतरनाक
सटला पर घोंपयबाक गारंटी
कखनो लाल लाल
जेना माटि खूनक दोस्‍ती हो
सुल्‍तानगंज भागलपुरक जमीन
अलगे उपज जेजात
बूझू कोनो ग'रक लोक नइ
अहॉ उपकार करब
हम हस्‍तक्षेप मानब
अकछियाएब अलगे
हम छी उत्‍थर लोक
परिधि पर रहए वला ।

Wednesday 2 November 2011

चमारक ऋण

 बहुत नमहर मोट पुरान रजिस्‍टर छैक
 चमार सभ कें संग मे
 हँ हँ सभ के संग मे छैक
 ककरो जिल्‍द रंगगर छैक
 ककरो सादा
 तहिना नव पुरान सेहो
 केओ छंद निछंद
 सभ्‍यासभ्‍य
 सभ पर छैक क्रोधक निशान
 कोनो कोनो मे प्रतिहिंसा क आगि ,लोहा ,पाथर
 केओ तर्कक साथ
 ई तर्क तर्कशास्‍त्रक उधार नइ
 विज्ञानक छैक
 आ कखनो फूले ,अंबेदकर
 कखनो कर्पूरीक फोटो
 सजा गेलइ ई रजिस्‍टर
 ई केओ चोरा नइ सकैत छैक
 केओ जरा गला नइ सकैत छैक
 एकर सभ शब्‍द
 चमार सभ के ह्रदय पर अंकित छैक
 पाथरक शब्‍द
 लोहाक शब्‍द
 कोनो आर भरिगर वस्‍तु होइ त कहब