दण्डी नीरस शास्त्रकार नइ छथिन्ह ,प्रतापी कवि सेहो छथिन्ह । ''अलंकृतमसंक्षिप्तं रसभाव निरंतरम '' ।हुनकर स्पष्ट विचार अछि कि कविता ओइ पदसमूह क नाम छैक ,जे वांछित सरसता सँ युक्त हो ।ऐ ठाम कविप्रतिभा सुंदर पदावली सँ संयुक्त हेबाक चाही ।
''शरीरंतावदिष्ठार्थ व्यवच्छिन्ना पदावली ''(काव्यादर्श) । इष्टार्थयुक्त पदावलीक एकटा अर्थ ई जे पद मे 'योग्यता' ,'आकांक्षा' आदि होयबाक चाही ।दंडी महाराजक मंतव्य ऐ ठाम ई अछि कि इष्ठार्थत्व क सौजन्ये सँ काव्यत्व क जन्म होइत छैक ।यद्यपि हुनक रसचेतना भावात्मक कम आ अलंकार केंद्रित बेशी अछि आ हुनका लेल समस्त अलंकारक उद्देश्य रससृष्टि मात्र छैक ।
हिनकर चिंतन मे 'इष्टार्थ'क स्पष्ट व्याख्या नइ छैक ,तैयो ई मानल जाइत अछि जे ऐ पदक संदर्भ भामहकालीन काव्यचिंतन सँ छैक ।भामहक लेल शब्दालंकार आ अर्थालंकार दूनू इष्ट छलइ ,मुदा दण्डी क लेल शब्द,अर्थ,रस सौंदर्य सँ युक्ते पदावली काव्य थिक ।दण्डी क सीमा ई अछि जे ओ ' 'इष्टार्थ'क चर्चा मात्र अर्थालंकारक लेल करैत छथिन्ह ।
दण्डी क सीमा स्पष्ट अछि ओ शब्दार्थ के काव्यक शरीर मानैत छथिन्ह आ अलंकार के आत्मा ।हुनकर विचार मे अलंकारविहीन पदावली साहित्य नइ भ' सकैत अछि ।
''शरीरंतावदिष्ठार्थ व्यवच्छिन्ना पदावली ''(काव्यादर्श) । इष्टार्थयुक्त पदावलीक एकटा अर्थ ई जे पद मे 'योग्यता' ,'आकांक्षा' आदि होयबाक चाही ।दंडी महाराजक मंतव्य ऐ ठाम ई अछि कि इष्ठार्थत्व क सौजन्ये सँ काव्यत्व क जन्म होइत छैक ।यद्यपि हुनक रसचेतना भावात्मक कम आ अलंकार केंद्रित बेशी अछि आ हुनका लेल समस्त अलंकारक उद्देश्य रससृष्टि मात्र छैक ।
हिनकर चिंतन मे 'इष्टार्थ'क स्पष्ट व्याख्या नइ छैक ,तैयो ई मानल जाइत अछि जे ऐ पदक संदर्भ भामहकालीन काव्यचिंतन सँ छैक ।भामहक लेल शब्दालंकार आ अर्थालंकार दूनू इष्ट छलइ ,मुदा दण्डी क लेल शब्द,अर्थ,रस सौंदर्य सँ युक्ते पदावली काव्य थिक ।दण्डी क सीमा ई अछि जे ओ ' 'इष्टार्थ'क चर्चा मात्र अर्थालंकारक लेल करैत छथिन्ह ।
दण्डी क सीमा स्पष्ट अछि ओ शब्दार्थ के काव्यक शरीर मानैत छथिन्ह आ अलंकार के आत्मा ।हुनकर विचार मे अलंकारविहीन पदावली साहित्य नइ भ' सकैत अछि ।