मैथिली साहित्य आ मिथिलाक संस्कृति पर विमर्शक एकटा मंच ।प्राचीन गौरवशाली परंपराक पहचान आ नवीन प्रगतिशील मूल्यक निर्माण लेल एकटा लघु प्रयास ।
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Saturday, 24 August 2013
वचन
137. वचन
सभक मोन डेराएल रहैत छलै ।लोक घरसँ बहराइत नै छल ।लोक बेसी बाजितो-भुकितो नै छल ।बसातमे मात्र एक टा स्वर गुंजैत छलै, लाल सलाम... ।ओकर कार्यकर्ताक सामने जे आबै से मारल जाइ वा लूटि लेल जाइ ।एक दिन एकटा लड़की ओकरा सभक हाथ लागि गेलै ।लड़की खूब सुन्दर छलै ।कार्यकर्ता सब लड़कीकेँ सरदारक लेल बचा कऽ लऽ गेलै ।सरदारक क्रूर मुँह देख लड़की डरे काँपऽ लागल ।सरदारकेँ अपना लऽग आबैत देख ओ चिकरऽ लागल, कानऽ लागल, मुदा... सरदार ओकरा छूबो नै केलकै ।केलव अपन देह परहक चादर लड़कीकेँ ओढ़ा देलकै आ अपन आदमीपर तमसाए लागलै ।ई सब देख लड़कीकेँ कने हिम्मत एलै ।ओ सरदारसँ पुछलक "अहाँक दल तँ ककरो नै छोड़ैत अछि तखन अहाँ हमरा किए छोड़ि देलौं ?"
सरदार शान्त होइत कहलकै "अहाँ हमर बहिन तुल्य छी ।हम अपन बहिनक रक्षाक वचन खेने छी तेँ अहाँक छोड़ि देलौं ।हमर दलमे किछु असमाजिक तत्व घूसि कऽ एकर नाम खराब करैत अछि ।हम अपने कटि जाएब मुदा ककरो माए-बहिनक इज्जत नै लुटाए देबै ।"
लड़की मोने-मोन सोचि रहल छल 'एहने सोच बला सगरो समाज भऽ जैतै तँ कने नीक होइतै !'
अमित मिश्र
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