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Sunday 4 August 2013

नव दुनियाँ बसाएब हम

बाल कविता-96 नव दुनियाँ बसाएब हम पाथरकेँ फोड़ि जेना झरना बहराइत अछि मेघकेँ तोड़ि जेना सूरज गरमाइत अछि धरतीकेँ फोड़ि जेना गाछ बहराइत अछि तहिना निर्भिक भऽ दुनियाँमे आएब हम अपन शक्तिसँ नव दुनियाँ बसाएब हम पहाड़केँ तोड़ि जेना सरिता बढ़ैत अछि गाछकेँ उखाड़ि जेना बसात बढ़ैत अछि अन्हारकेँ फाड़ि जेना इजोत हँसैत अछि तहिना डेग दैत दुनियाँमे आएब हम निज बूधि-लूरिसँ नव दुनियाँ बसाएब हम ओसक बून्न जेना सदिखन चमकैत अछि तुच्छ फऽर जेना मोन तृप्त करैत अछि उपवनक फूल जेना पल-पल हँसैत अछि तहिना निज गुणसँ दुनियाँकेँ हँसाएब हम अपन कलासँ नव दुनियाँ बसाएब हम लिखल आखरकेँ जेना मेटौना मेटबैत अछि ईश्वरक नेत जेना सबकेँ हरबैत अछि स्पर्श दऽ सबकेँ जेना ज्वाला जरबैत अछि सभक घमण्डकेँ तहिना जराएब हम दिअ आशीष नव दुनियाँ बसाएब हम अमित मिश्र

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