
काव्य हेतु वा काव्य प्रेरणा क लेल संस्कृत विद्वान प्राय: तीन तत्वक संयोग पर बल दैत छथिन्ह । प्रतिभा ,व्युत्पत्ति आ अभ्यास ।ऐ तीनू मे प्रतिभा सर्वोपरि छैक । 'ध्वन्यालोचन 'मे प्रतिभाक लेल एकटा अन्य शब्दक प्रयोग सेहो भेल छैक ।ई शब्द छैक 'शक्ति' ।आचार्य अभिनवगुप्त काव्य सृजन मे तीनू तत्वक तुलनात्मक विवेचन करैत प्रतिभा के निर्णायक मानैत छथिन्ह आ व्युत्पत्ति के प्रतिभे क एकटा रूप मानैत छथिन्ह ।हुनका विचारे प्रतिभे शक्ति थिक ।ऐ विचार के संस्कृत काव्यशास्त्र मे व्यापक समर्थन भेटल ।पंडितराज जगन्नाथ अन्य दूनू तत्व के चर्चा योग्य तक नइ मानैत छथिन्ह ।
'तस्यं च कारणं कविगता केवला प्रतिभा ' ऐ प्रकारे मात्र कविगत प्रतिभा एकमात्र काव्यक प्रधान हेतु छैक । प्रतिभा समस्त संस्कृत काव्य शास्त्र आ विशेषत: रसशास्त्रीगणक मध्य प्रधान हेतुक रूप मे स्वीकार्य अछि ,वामन तक प्रतिभे मे कवित्वक बीज देखैत छथिन्ह ।
'कवित्व बीजं प्रतिभानम् '
परवर्तीकाव्यशास्त्र मे 'प्रतिभा' के काव्यसृजनक आद्याशक्ति मानल गेलइ ,जकरा अभाव मे श्रेष्ठ सृजनक कल्पना संभव नइ ।एतबे नइ अभिनवगुप्त प्रतिभा क संग 'स्वतंत्र'शक्तिक उल्लेख 'घटकर्परकुलक विवृति' मे करैत छथिन्ह आ एकर साहित्यिक भूमिकाक विश्लेषण करैत मानैत छथिन्ह कि मात्र ऐ शक्तिक प्रतापे कालिदासकाव्य मे सर्जन सम्बन्धी नियमक अतिक्रमण सुभग भाव मे परिवर्तित होइत छैक । 'महार्थ मंजरी ' मे 'भाषा शक्ति'क महत्वक प्रतिष्ठा करैत महेश्वरानंद 'भाषा' के सृष्टिक पंचतत्वक प्रमुख तत्व मानैत एकरा 'प्रतिभा' ,स्वातंत्रय आ 'चित् शक्ति'क पर्याय मानैत छथिन्ह ।
'ध्वन्यालोचन' मे 'परा प्रतिभा'क नामे जइ 'चिन्मयी शक्ति'क विवेचन भेलइ ,ओ 'परमानंद रूप परा' आ 'काव्योत्सभूत प्रतिभा' क सामंजस्य छैक ।ई 'परा प्रतिभा ' विष्वक समस्त पदार्थक वैचित्र्य के अंतर्भुक्त करैत छैक आ ओकरा मे पश्यन्ती ,मध्यमा ,बैरवरी आदि वाक् शक्ति सेहो रहैत छैक ।हुनका विचारे प्रतिभे 'प्रातिभज्ञान' थिक ।ई अतीन्दिय थिक आ बुद्धिक सीमा सँ बाहर ,किएक त' बुद्धि मे एकटा जड़ता होइत छैक । ,जखन कि प्रतिभा आ 'ज्ञेय विषय ' मे अभेद छैक ।ई बुद्धि सँ भिन्न 'स्वयं चित्त' वा संविदक पर्याय थिक ।प्रतिभा संपन्न व्यक्ति 'विवेक'क द्वारा 'शद्ध विद्य 'क उच्चतम भूमिका पर पहुंच जाइत छैक । ध्वनिकार प्रतिभा के शिव पार्वतीक साक्षात रूप मानिके वंदना केने छथि । प्रातिभ शिवा मे एहन उन्मीलन शक्ति होइत छैक ,जाहि सँ क्षणे मे विश्व उन्मीलित भ' जाइत छैक ।
आचार्य राजशेखर प्रतिभाक दू भेद करैत छथिन्ह 1कारयित्री
2 भावयित्री
पहिल सृजनक प्रतिभा थिक आ दोसर पाठक ,दर्शक ,रसज्ञ,सामाजिकक ,सह्रदयक प्रतिभा ,जाहि सँ ओ काव्यार्थ के ग्रहण करैत छैक ।
किछु विद्वान प्रज्ञाक माध्यमे प्रतिभा के देखैत छथिन्ह ।प्रतिभाक तीन टा रूप छैक 1स्मृति 2मति 3प्रज्ञा ।इएह तीनू परंपरा(अतीत) ,वर्तमान आ अनागत(भविष्य)के विषय मे संकेत दैत छैक ।विद्याधर चक्रवर्ती 'प्रज्ञा' के 'त्रैकालिकी' घोषित करैत छथिन्ह ।तीनू काल मे नूतनताक उन्मेष शालिनी प्रज्ञे प्रतिभा थिक ' ज्ञेया प्रज्ञा त्रैकालिकीमता ' ।
प्रतिभाक काज आ स्वरूप पर संस्कृत मे बहुत रास विचार विमर्श भेल छैक ।भट्टतौत महराज कहैत छथिन्ह 'प्रज्ञा नवनमोन्मेष शालिनी प्रतिभा मत:'(काव्य कौतुक)स्पष्ट छैक प्रतिभा नवनवोन्मेषक हेतु । दूनू एके ठाम रहैत छैक ।प्रतिभा अछि तखने नवनमोन्मेष संभव अन्यथा पुरनका रस्ता पर चलबाक आग्रह कवि के बान्हि सकैत छैक ।
तहिना अभिनवगुप्त प्रतिभा ओतइ देखैत छथिन्ह ,जत' अपूर्व वस्तुक निर्माणक क्षमता होए(प्रतिभा अपूर्व वस्तु निर्माणक्षमा प्रज्ञा)
एकठाम ओ प्रतिभाक दर्शन ओतए करैत छथिन्ह जत' नवका विषयक संभावना होए (प्रतिभान वर्णनीय वस्तुविषयनूतनोल्लेख शालित्वम ) ।'काव्यमीमांसा' मे राजशेखर प्रतिभा के चित्रणक उपकरण जुटबइ वला भावलीन करए वला आ सौंदर्यानुभूति प्रदान करए वला मानैत छथिन्ह ।
'
या शब्दग्राममर्थसार्थमलंकारतंत्रमुक्तिमार्गमत्यदपि तथा विधमधिह्रदयं सपति सां प्रतिभा ।'
संस्कृत काव्यशास्त्रक हिसाबें प्रतिभा 'अनंता' शक्ति थिकइ ,तें ई 'पार्वती शक्ति' छइ ।जगन्नाथ सेहो मार्नत छथिन्ह कि प्रतिभा काव्यघटनाक अनुकूल शब्दार्थ के प्रस्तुत करैत छथिन्ह ।( सा काव्य घटनानुकूल शब्दार्थोपस्थिति:)
कम या बेशी प्रतिभाक प्रधानता काव्यक लेल स्वीकार्य छैक ।प्रारम्भहि सँ ऐ विषय मे कोनो संदेह नइ रहल ।सर्वप्रथम भामह महराज स्वयं स्पष्ट कहि देला कि गुरू उपदेश सँ शास्त्रक अध्ययन त' मूर्खो क' सकैत छैक ,मुदा काव्यसृजन केओ प्रतिभावाने क' सकैत छैक ।इएह मत आगू रस संप्रदायक सर्वोच्चताक काल मे सेहो रहल ।
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