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Sunday 8 April 2012

राम लोचन ठाकुर क' दूटा कविता



कलकत्‍ता सँ वरिष्‍ठ कवि श्री रामलोचन ठाकुर दिल्‍ली पहुंचला आ दिल्‍ली सँ हुनकर दूटा कविता उडि़याइत -उडि़याइत वाया प्रयाग काशी हमरा लग पहुंचल । दूनू कविता अपन दृष्टि संपन्‍नता आ आधुनिक चेतनाक संग बेजोड़ अछि आ मूल रूप मे अहां सभक समक्ष ...

कविता आ कविता आ कविता

बन्‍धु !
एना होइत छैक
एना होइत छैक कहियो काल
भदवारिक सतहिया
माघक शीतलहरी
कोनो नव बात नहि
जखन दिन पर दिन सूर्यक अस्तित्‍व
रहैछ अगोचर
तें मानि लेब सूर्यक अवलुप्तिकरण
आलोक पर अन्‍धकारक वर्चस्‍व
कत' क' बुद्धिमानी थिक
सामयिक सत्‍य होइतहुं
शाश्‍वत नहि होइछ अन्‍धकार
आ आगू
जखन पूंजीवादी विस्‍तार लिप्सा क'
जारज संतान वैश्‍वीकरण
वृहत विश्‍व कें बाजार बना देबाक लेल
अछि उद्धत अपस्‍यांत
आवश्‍यके नहि अनिवार्य भ' जाइछ
प्रतिकार शब्‍द-साधक लेल
विचारब-बतिआएब कविताक माहे
भ' जाइछ अनिवार्य शब्‍द-संस्‍कृतिक रक्षार्थ
जे सभसँ पहिने होइछ आक्रान्‍त
बाजार संस्‍कृति द्वारा
बाजार-संस्‍कृति
भांट आ भरूआक बल पर
लतरैत-चतरैत विकृत आ विकार युक्‍त
बाजार-संस्‍कृति
आदमी सँ आदमीयत
शब्‍द सँ संवेदना धरि कें
वस्‍तु मे बदलि देबाक लेल रचि रहल षड्यंत्र
शब्‍दक अपहरण
शब्‍दार्थक संग बलात्‍कार
तखन एकमात्र कविताए रहैछ ठाढ़
अपन सम्‍पूर्ण ऊर्आ ओ आक्रामकता संग
बनल अभेद्य ढ़ाल
एकमात्र कविता
एकमात्र कविता
हँ बन्‍धु
हम कविताक बात करैत छी
शब्‍द-समाहारक नहि
शब्‍द -जादूगर द्वारा सृजित-संयोजित इन्‍द्रजाल

साहित्‍यक अन्‍यान्‍य विधाओ
अनुगमन करैछ कविताक
मुदा आगू त' कविते रहैछ
उएह करैछ नेतृत्‍व
मुक्तिक नाम पर
पददलित होइत कोनो देश कोनो जाति
जनतंत्रक नाम पर दलाल-तंत्र प्रतिष्‍ठाक प्रयास
सुरक्षाक मुखौटा तर लुंठित होइत सम्‍पत्ति -सम्‍मान
सभ्‍यताक धरोहर
संस्‍कृतिक पुरहर
काबुल सँ करबला धरि रक्‍तरंजित
जाति-सम्‍प्रदाय-पूंजीवादक त्रिशूल ताण्‍डव नृत्‍य
तखन कविता आ एक मात्र कविताए
उठओने मशाल
विध्‍वंसक विरूद्ध सृष्टिक
दानवताक विरूद्ध मानवताक
शोषणक विरूद्ध मुक्तिक
आशा-विश्‍वासक प्रतीक बनि
अपन सम्‍पूर्ण अर्थवत्‍ता
उपयोगिता-उपादेयताक संग
जातियता मध्‍य अन्‍तर्राजातियताक
व्‍यष्टि मध्‍य समष्टिगत चिन्‍तन चेतनाक संग
दीपित रहैछ कविता
हमर कविता
अहांक कविता
आशाक कविता
भाषाक कविता
कविता..
आ कविता......
आ कविता........!

2 एक फांक अन्‍हार:एक फांक इजोत

सांझ पडि़ते
अन्‍हारक गर्त मे
हेरा जाइछ गाम
एकटा आशंका
एकटा आतंक
पसरि जाइछ
सभ ठाम
गाम ....
जतए भारतक आत्‍मा रहैछ !
सांझ पडि़ते
शहर बनि जाइछ
लिलोत्‍तमा
नित नूतन आभूषण
नव-नव साज
रंग-बिरंगक आलोकक संसार
एकटा आकांक्षा
एकटा उन्‍माद
शहर....
जतए भारतक भाग्‍य-विधाता रहैछ !

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