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Monday 9 April 2012

विहनि कथा---अमित मिश्र


विहनि कथा--चोरी

विद्याधर बाबू । साहित्यकार ।जीभ पर साक्षात सरस्वती कए बास । साहित्यक सब विधा पर एक समान पकड़ छलनि मुदा पाइ कए अभाव मे एको टा पोथी छपल नहि छलनि । एक दिन साँझ मे बजार दिश जाइ छलाह । पहुँच गेलाह पुस्तक महल । एकटा सुन्नर काँभर वला पोथी आकर्षित केलकनि तेँए किन लेलाह । घर पर आबि पढ़ै लए बैसलाह , जेना-जेना पन्ना उलटाबैत गेलाह तेना-तेना आँखिक गोलाइ पैघ होइत गेलै । काँभर कए पाछु लेखक कए नाउ पढ़लन्हि ,आँखि और पैघ भ' गेलै । सोच' लागलन्हि टका , मनुख-जानवर .गाड़ी-घोड़ा कए चोरी त' देखने छलौँ मुदा शब्दक चोरी पहिल बेर देखलौह । आन चिजक चोरी मे त' पता चलि जाइ छै मुदा मुँह सँ निकलैत बोल कए चोरी मे कनिको पता नहि चलै छै । धन्य छथि एहन चोर आ धन्य छेँन चोरी कए स्टाइल . . . । ।

अमित मिश्र

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विहनि कथा--सात समुद्र पार सँ

मनोहर बाबू इलाका कए नामी डाँक्टर छलाह । बजार मे तीन तल्ला घर मे अपने , कनियाँ दू टा बेटा संग माँ-बाबू सेहो रहै छलथिन । अथाह रूपैया तेंए कोनो चिजक कमी नहि ।अपनो नव जमाना कए आ कनियो कलजुगी ,अपना मोनक मालिक छलनि । हुनक कनियाँ शरबत जकाँ घोरि क ' इ बात पिया देलकनि जे माँ-बाबू बिमार रहै छथि ,तेंए बच्चा कए इनफेक्सन भ' सकै यै , दोसर देखभाल करबाक लेल फुरसतो नहि अछि तेंए दुनू गोटे कए वृद्धा-आश्रम द' आबियौ । मनोहर बाबू सब बात माँ-बाबू कए कहखिन । तै पर बाबू नोराएल नैन सँ कहलनि ,"अपन संस्कृति इ आदेश नहि दै छै , हम कते दिन जीबे करब ,तोहर मूँह देखैत मरब त' शांती भेटत , हमरा संगे रह' दए , "

मनोहर बाबू जबाब देलनि ," जहिना अंग्रेजी ,पहिराबा , खान-पान , रहन-सहनसंग बहुतो रास तकनीक दोसर संस्कृती सँ आबि अपन भ' गेल , तहिना वृद्धा आश्रम भेजबाक संस्कृती अपनाब' परत किएक त' इ सात समुद्र पार सँ एलै यै ,एकरा छोड़ल नहि जा सकै यै "

दुनू प्राणी बेटा कए मूँह ताकैत सोच' लागलाह जे केहन जमाना छै लोक कोना बदलि रहल छै अपन संस्कृति कए सात समुद्र पार सँ . . . । ।

अमित मिश्र


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विहनि कथा-नव अंशु

प्रभात बाबू माँजल संगीतकार-गायक आ शिवाजीनगर काँलेजक संगीत विभागक प्रधान प्रोफेसर छलखिन ।एक बेर पटना सँ प्रोग्राम क' ट्रेन सँ गाम आबैत छलाह ।भरि रातिक झमारल तेँए आँखि बंद केने सुतबाक अथक कोशिश केलनि मुदा हो-हल्ला सँ नीन कोसोँ दूर भागि गेल ।तखने एकटा नारी कंठ कोलाहल के चिरैत हुनक कान के स्पर्श केलकै ,आरोह-अवरोह के फूल सँ सजल सप्त-सुरी माला मे गजबे आकर्षण छलै । प्रभात बाबू आँखि खोलि चारू कात हियासलाह मुदा केउ देखाइ नै देलकै ,मुदा आभास भेलै जे ओ कोकिल-कंठ लग आबि रहल छै ।कने कालक बाद लागलेन जे ओ बगल मे आबि गेल छै ,आंखि खोललनि त' नीच्चा 10-12 वर्षक बच्ची झारू लेने फर्श साफ करैत आ लोक सब के एक टकिया दैत देखलनि ।प्रभात बाबू ओकरा लग बजा नाम-पता पुछलनि ,हुनका बूझहा गेलै जे ओहि अनाथ मे शारदा बसल छथिन ।ओकरा अपना संग चलबाक लेल आ नीक स्कुल मे नाम लिखा देबाक बात कहलनि , ओ तैयार भ' गेल ।अपना लग बैसा प्रभात बाबू गीत सुनैत रहलखिन ,ओकर हर-एक स्वर संग दुनूक दिल सँ निकलैत नव किरण आँखिक बाटे निकलि सगरो संसार के प्रकाशित क' रहल छल ।आशक नव अंशु पिछला जीवनक अन्हार के इजोर क' देने छल ।

अमित मिश्र

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