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Saturday 14 April 2012

कांटी आ मरिया

कांटी आ मरिया जजिमान आ पुरहितक सम्‍बन्‍ध पता नइ कोदारि आ बेंटक संबंध छैक वा कांटी आ मरिया क’ । बुझाइत तऽ एहिना छइ जे एगो मरिया हेतै त’ दोसर के कांटी बनय्यै पड़तै ।आ एहनो कोनो जोगाड़ नइ बैसै छैक जे कांटियो रहि के मरिया क’ मारि नइ खाए पड़ै । आ मरिया रहि के केओ ऋषि मुनि बनल रहए ,से हमरा जनैत तऽ असंभवे बूझू .....ओना हम पुरहित रहियइ आ हमर भरि दिन जजिमनिके मे बीतए ......वियाहे-श्राद्ध नइ ,मारि-पीट , गारि-उपराग ,टोना-मानी सभक हिस्‍सा ।हअर जोतनइ ,चौकी केनए ,बाउग केनइ ,कमौनी ,पानि देनए ,खाद छिटनइ ,जजात के घोघेनए ,दाना पुष्‍ट भेनए ,कीड़ा लागनइ ,दवाइ के स्‍प्रे ,सूखनए ,काटनए ,दउनी वा झंटेनइ ,कखनो कखनो मशीन सँ दउनी..........अन-पानि सुखेनए आ कोठी अथवा बोरा मे राखनए .......ऐ सब प्रक्रिया मे हमर सक्रिय भागेदारी रहैत छलै आ हम दिने नइ गुनैत रहियइ ,कखनो कखनो सलाहक स्‍वरूप समाजिक आ वैज्ञानिक सेहो भ’ जाइत रहै ।हम कोनो मार्क्‍सवादी बात नइ करैत छी ,ने हम ई मानैत छी जे उत्‍पादन प्रक्रिया मे हमर समान भागेदारी रहै .......ने विश्‍वास क’ स्‍तर पर ने समाजक स्‍तर पर ।
अपन भूमिका के अवमूल्‍यन नइ करितौं ई कहबा मे हमरा कोनो लाज नइ कि मिलै वला प्रतिफल असंतोषजनक ,असमान आ अमानवीय छलै ।कोठी आ खरिहान के भरै मे सांस्‍कृतिक सहयोगी आ मिलै छलै आसेर ,सेर भर अगऊं ।एगो दूगो बाबू सब छलखिन जे साल मे एक –दू बेर पसेरी भरि दाना दैत छलखिन ।आ ई हमर खानदानी कर्त्‍तव्‍य छलै कि जजिमानक समृद्धि क’ प्रति विरक्तिक भाव बनेने रहियइ ।भगवती अन्‍नपूर्णाक पूजा मे कतओ कमी छलै आ अन्‍नपूर्णों खूब तमाशा देखबैत रहथिन ...........

आ जजिमानक पुरूखा सभक बरखी ,छाया ,एकोदिष्‍ट क’ तिथि हमरा मुंहजबानी यादि रहै ......यादि रहै यैह बात नइ ,यादि केनए परमावश्‍यक रहै ,महाकर्त्‍तव्‍य............शायदेसंयोग यदि कहियो बिसरि गेलियइ त’ ओइ दिन जजिमान महासामंत भऽ जाइत छ‍लखिन आ हम महादास......आ मृत्‍युदंड सँ कनिये छोट दंड रहै ई वाक्‍य ‘हमरा अहांक कट्टमकट्टी ।हम आब फलां प‍ंडी जी सँ पूजायब’ ।आ जइ दिन बाबू के ई बात पता लागेन ,हमर देह ,हाथ ,माथ पर हुनकर खड़ाम आ लाठीक चेन्‍ह अहां गिन नइ पेतियइ .........ओना माए गानैत छलखिन आ कखनो बाबू आ कखनो दुनियो के ......कानबो करथिन आ गारियो देथिन.........

एतबे नइ एकादशी ,त्रयोदशी ,चतुर्दशी ,पूर्णिमा अमावस्‍या सब........जेना सूर्य आ चन्‍द्रमा हमरे पूछि के डोलैत छथिन ।आ कोन एकादशी करियौ आ कोन छोडि़यौ ...ईहो बात विधिपूर्वक हेबाक चाही ।आ बात-बात पर महादेव पूजा ।पान सौ आ हजार त’ डेलीए पूजाथिन ,मुदा कहियो कहियो सवा लाख महादेव क’ बात सेहो होए ...आ ओइ दिन त’ एकटा उत्‍सवक वातावरण बनि जाए ,ओइ दिन बाबू महंत जँका करथिन ,किएक त’ हजार दूहजार सभक घर मे बनए आ बाबूए हुनका सभ के दक्षिणा बांटथिन ।आ बाबू ईमानदारी पूर्वक दक्षिणा बांटथिन तें हुनका कहियो पंडितक अकाल नइ पड़लेन ।हरदम टोल-पड़ोसक पंडित सभ आगू-पाछू करैत रहए ।आ ई कोनो महादेव पूजे तक सीमित होए ,एहनो बात नइ रहै ,कहियो श्राद्ध कहियो बरखी कहियो उपनेन-वियाह........एहिना चलैत रहए ।आ बाबू चाहथिन छल तखन सभ दिन पारसे आबैत रहतै छल ,मुदा बाबू पारस लेबाक विरोधी छलखिन ।जत्‍ते ब्राह्मण होए ,ओतबे क’ भाड़ा लियओ ,दुनिया क’ ठीकेदारी नइ......

वैदिक कर्म शुभक हो वा अशुभक ,जजिमान सभ एकटा खास नजरि सँ पुरहित कें देखैत छलखिन ।हुनका लेल आदर्श पुरहित ओ भेल जे मैल चिकाठि पहिरने हो ,चाहे धोती हो वा कुरता एक दरजन ठाम ओइ पर चिप्‍पी हो ।अहांक मोंछ-दारही बरहल हेबाक चाही ,अहां टुटलकी चप्‍पल या बिना चप्‍पले के यात्रा करैत हो ।यदि अहां साफ-सूतरा कपड़ा-लत्‍ता पहिरने छी आ पएर मे जुत्‍तो हो तखन त’ बूझू जे ने केवल अहांक धर्म भ्रष्‍ट अछि बल्कि जजिमनिका मे कनफुसकी क’ केंद्रविंदु सेहो अछि ।सब कहत ‘देखियौ ने कनेक जुत्‍ता देखियौ ,बाप के खड़ाम खटखटबैत जिनगी गुजरि गेलेन आ बेटा ......’ आ फेर तखन बहुत रास खिस्‍सा एहनो जइ मे हुनकर बाप आ बाबा हमरा बाबू आ बाबा के खाली पएर देखि द्रवित भ’ गेलखिन आ प्‍लास्टिक वला जुत्‍ता वा चप्‍पल वा खड़ाम दऽ देने हेथिन ।

आ भाय लोकनि ध्‍यान देबै मैथिली मे एहन कहबी सबसँ बेशी छैक ,जइ मे अहांक तुलनात्‍मक महत्‍ता स्‍पष्‍ट होइत अछि मतलब नीचा दिस ,खराब दिस ,जेना कि ‘बापक नाम लत्‍ती फत्‍ती ,बेटाक नाम कदीमा ‘ ,’खाए लेल खेसारी आ .....पोछै लेल जिलेबी ‘ , ‘पूजी ....नइ चाभी क’ झब्‍बा ‘ , ‘नमहर नाग बैसल छथि आ ढ़ोरहाय मांगै पूजा ‘ आदि आदि ।आ ई सभ कहबी जत्‍ते लौकिक अनुभव सँ भरल होए अहांक अपमानित करबा लेल पर्याप्‍त रहै ।मुदा ई सुनला के बादो कोनो उत्‍तर नइ देबाक रहए ।एगो बात ईहो छलै जे जकरा कर्म करबाक रहै ,ओ चाहे किछो पहिरए ,खाए ,पीबए ,अहांक लेल खास ड्रेसकोड ।मतलब बाप मरै फलनमा के आ केश छिलाबैथ पंडित राम ।
सम्‍मान आ अपमानक एहन दुर्लभ संगति हमरा मूने कोनो सभ्‍यता ,कोनो समाज मे असंभव अछि ।आ मैथिल ब्राह्मणक चरम लक्ष्‍य सभ दिन चूड़े दही रहल ।हरिमोहन बाबूक दार्शनिक अंदाज जत्‍ते ‘खट्टर कका क’ तरंग’ मे चूड़ा दही चीनी मे विस्‍तार लैत अछि ,ओहियो सँ बेशी ।एकटा भोजन ......नइ भोजने मात्र नइ.....अलगे आकर्षण ......अलगे नशा ।एकटा सुस्‍ती ,संतोषक भाव ।त्रिगुण केवल सानै काल तक ,ओकरा बाद विषम भावक सह-अस्तित्‍व ।दांत चूड़ा पर प्रहार करैत आ जीभ आ कंठ दही के ससारैत आ चीनी मुंहक सभ अंग सँ मेलजोल बरहाबैत ।अंत मे विषमता समाप्‍त आ सभ तत्‍व अपन अपन वैशिष्‍ट्य के समाप्‍त करैत .......।आ चूड़ा दही एहन नै बुझियौ जे केवल खाइए वला मे सुस्‍ती बरहाबैत हो ,खुएनहार मे सेहो तेहने आलस्‍य बरहाबैत छैक । चूड़ा दही खुएबा मे अहांक करबा के की अछि ? चुड़ा कुटाएल बोरा मे राखल ,दही पौरल आ चीनी दोकान सँ खरीदल ,तखन त’ मात्र अंचारक सहारे सेहो अहांक ‘ए’ ग्रेड मिलि सकैत छैक .....हम धर्म ,पुण्‍य आ पितरक बात अखन नइ क’ रहल छी ।जे होए चूड़ा दहीक नशा एहन रहै जे इसकुलक समै मे इसकुल कालेजक समै मे कालेज छोड़लियइ ।ने घअर दुआरि ने खेती बाड़ी ।कोन कुटुम कोन कुटमैती ।ने समाजक नौत-निमंत्रण ने पावनि तिहारि ।बस अर्जुन जँका ...संभवत: ओ मांसाहारी रहै तें माछक आंखि मे तीर मारलकए आ हम सर्वाहारी मैथिल ....चूड़ा दही क’ गंध दिस आंखि मूनने बरहैत आ हमर प्रेम चातको सँ बेशी ,हम्‍मर धियान बगुलो सँ बेशी ,हमर क्रोध सिंहो सँ बेशी आ हमर भूख सांपो सँ बेशी आन्‍हर।मुदा रूकू महराज हम किछु बेशीए बाजि गेलौं हमर भूख चाहे जेहन होए दुर्वासा आ भृगुक क्रोध किताबे तक सीमित रहलै ,हम अपन जिनगी मे त’ नइ देखलियै जे केओ जजिमान अहांक उचितो क्रोध कें सकारने हएत ।भृगु अपन क्रोध कें ने छिपेलखिन ने सम्‍हारलखिन आ भगवान विष्‍णु के धएले लाति करेजा पर मारि देलखिन आ भगवानो केहन त’ पूछलखिन ‘हे ब्राह्मण श्रेष्‍ठ चोट त’ नइ लागल ।हम्‍मर करेज त’ पाथरक अछि ,मुदा अहांक पएर त’ कमलोऽ सँ बेशी कोमल ‘ ।ई प्रसंग ब्राह्मणवादक संरक्षणक एकटा नमूना अछि कि कोना वैचारिक स्‍तर पर यथास्थितिवादक समर्थन कएल गेलै । फेर लक्ष्‍मी क’ क्रोध आ पुन: भृगु कें क्रोधित भऽ कें भृगुसंहिता लिखनए आ लक्ष्‍मी के संबोधित ई गर्वोक्ति कि ‘जे ब्राह्मण ई पोथी परहत ,ओकरा लग तों दौड़ल जेबहीं ‘ ।

एकटा बात आर अहां अपन दैनंदिनी के चाहे जेना व्‍यवस्थित राखियौ ,एक चीज लेल हरदम तैयार रहियौ ।अहांक कखनो बुलाहट आबि सकैत अछि .......नइ नइ उपनेन वियाह त’ पहिले सँ निश्चित रहैत अछि ,मुदा सत्‍यनारायण कथा ,महादेव पूजा ,कोनो गुप्‍त उद्देश्‍यक लेल ब्राह्मण भोजन आ एहने सन बहुतो रास प्रसंग ,जइ ठाम अल्‍पसूचना पर अहांक उपस्थिति अनिवार्य आ कखनो कखनो लठैत वला भाषा ‘यादि राखब पंडित जी समै खराब छैक छओ सँ सात नइ हेबाक चाही ‘ ।आ ग्‍यारह टा ब्राह्मणक निमंत्रण छैक त’ ग्‍यारह टा हेबाक चाही ,औ जी साहेब आब गाम मे नइ छइ त’ नइ छइ ,हम कतऽ सँ लाबी ।सब गाम छोडि़ के दिल्‍ली,पंजाब रहै छैक ।बहुतो लोक गामो मे छैक त’ अपन अपन काज धंधा मे व्‍यस्‍त ।ओ चूड़ा दही खेबा लेल तीन घंटा बेरबाद नइ करता ।ओना त’ काज चलिए जाए मुदा कहियो काल एहन स्थिति उत्‍पन्‍न होए कि लागै आइ नऽ छऽ भइए के रहत ।कोनो कोनो जजिमान कें होए कि कम ब्राह्मण हम पारस जमा करबा लेल आनलौं ।कखनो कखनो त’ हद भऽ जाए जजिमान सब नाओ गिनाबऽ लागता ,फलां प‍ंडित त’ गामे मे रहैत छथिन ,आ चिल्‍लांक भतीजा सेहो ............. आ जजिमनिका क’ एकटा खास शिष्‍टाचार रहै ।प्रणाम त’ सब अहींके करैत छलथि ,मुदा अहां आर्शीवाद एकटा विशेष संबोधन के साथ दिअओ ।‘खुश रहियौ हाकिम’ ‘आनंद सँ रहियौ सरकार’ ‘जिमीन्‍दारक जय जय हो ‘ ‘राजा सदैव विजयी रहथि ‘ ।मतलब जजिमानक प्रणाम सूदि समेत लौटाबए क’ व्‍यवस्‍था रहै ।आ कोनो कोनो गुंडा टाईप के पंडित जी ऐ व्‍यवस्‍था के दोसर रूप दऽ दैत रहथिन जेना ओ जजिमान के देखिते चिचियाथिन ‘जय जय बम बम’ , ‘जय हो जय हो ‘ आ पता नइ ऐ मे ककर जय आ ककर बम बम रहै ।मुदा ई व्‍यवस्‍था विभिन्‍न रूपांतरणक साथ आगू चलैत छलै ।आ दूनू तत्‍व यैह चाहथिन जे हम कांटी नइ मरिये रही ,मुदा ई केवल सोचबाक बात नइ रहै ...........


आब कनेक पुरहितक दृष्टिकोण ।तमाम नीचता कें छुपबैत अपन क्षुद्रता कें गौरवान्वित करैत पुरहित चाहैत छलखिन जे संसारक तमाम सिंहासन हुनके लेल रहै ।कखनो सर्दी-बुखार ,कखनो जाड़क मारि आ कखनो अलसियाइत पं‍डी जी बिन नहेने ,तेल चानन लगा झुठौंआ फूसौंआ के कंपकंपाइत रहथिन कि हुनकर ख्‍याति एहन पंडित क’ रूप मे होए जे अपन तपस्‍या सँ हवा-बसात के जीति नेने होए ।आ अपन अल्‍प संस्‍कृत ज्ञान कें कखनो लय ,कखनो रटंतु विद्या सँ सुरक्षित करैत ऐ ठामक सब पंडित ई साबित करैत र‍हथिन जे उदयनाचार्यक सब पोथी हुनका पास ।किछु लोकनि ऐ भ्रम के सेहो पोसैत छलखिन कि संभवत: लोक विश्‍वास केने जा रहल अछि कि वास्‍तव मे उदयनाचार्यक असली वारिस यैह छथि ........
ई पंडित जी छलखिन ,एहन तारनहार जे मंत्रच्‍युत ,विचारविहीन आ तर्कशीलता सँ योजन भरि दूर ।अपन जन्‍मक बल पर ,तीन-पांचक बल पर ,गाल बजेबाक कौशल आ ठोप-ठंकारक बलें ।मंत्र कतबो मूल्‍यवान हो ,दू-चारि टा शब्‍द अपने गीलने ,दू-चारि टा कुल खानदानक नाम पर आ दू-चारिटा संभावित दक्षिणाक विचारमग्‍नता सँ भ्रष्‍ट होइत.......धियान आबिते फेर सँ हाथ-आंखि हिलबैत भगवान के ठकैत आ जजिमान के भरोस दीबैत कि ‘हमरा सन शुद्ध पूजा केओ ने करा सकैत अछि ‘ । मुदा पुरहित आ जजिमान मे एकटा लिखित समझौता रहै ।भोजन कतबो विशिष्‍ट आ वैविध्‍य सँ भरल होए जजिमान कहथिन ‘जे नून चूड़ा छैक ,आबियौ आ ग्रहण करियौ ।‘ आ भोजन कतबो सरल-गेन्‍हायल होय पंडित जी कहथिन ‘ऐ सँ बढि़ के बाते होइत छैक ।‘ मुदा कखनो कखनो विजय बाबू सन मर्दराज सेहो छला जे ऐ लीक के अपन स्‍वभावे तोड़बाक प्रयास करैत छला ।ओ साफ कहथिन’पंडी जी चिंता नइ करियौ ,आराम सँ खाएल जाओ ।पर्याप्‍त दही छैक ,नून चुड़ा वला कोनो बात नइ’ ,तैयो विजय बाबूक ई यथार्थवादी रूख कोनो स्‍थायी प्रवृत्तिक रूप धारण नइ केलकै ।आ ई द्विपक्षीय समझौता संभवत: जजिमानी व्‍यवस्‍थाक सर्वोच्‍च तत्‍व रहै ।
यद्यपि पंडित लोकनि जखन एक-दोसरा सँ बात करथि त’ ओ प्राय: दक्षिणा संबंधी होए ।जजिमानक खिधांश ,जजिमनिकाक भोजनक निंदा ,नून ,मिरचाय तेज हेबाक चरचा ,दूध ,दही कम हेबाक बात हरदम सजनिये ,हरदम घिउड़े ,कखनो के सब दिन राम तोरय..........छि: छि: सोहारी मे घृतक नामोनिशान नइ ,आ खीर मे पानि एकदिस आ दूध एक दिस आ चाउर भोकारि पारि के कानैत ।बेलना टूटबाक बात आ मकई क’ रोटी ब्राह्मण के दैत जजिमान सब ।घोर कलियुग ,एहन एहन जजिमान के कत’ सँ पुण्‍य हेतै ।संकल्‍प आ दक्षिणा मे एकटका दूटका देबा ,कखनो ऊधारिये रहि जेबाक चिंता ।अपन कुटिल पांडित्‍य आ दुनिया दारी सँ लोक कें ठकबा सम्‍बन्‍धी विस्‍तृत विमर्श आ दोसर के फटकारि देबा आ चमत्‍कृत करबाक कतेको कथा ।गलत-सलत मंत्र परहेबाक प्रसंग बत्‍तीसी के खोलि के हँसबा के अवसर दैत आ अपने मूने त्रुटिरहित चलाकी .......
दोसर दिस जजिमानो सब अपन हकिमई ,जमिंदारी आ लंठई क’ चर्चा क’ संग ।विविध प्रसंग जइ मे पुरहितक गलती कें ओ पकडि़ नेने हो ,एहनो प्रकरण जइ मे पुरहित सब कें अपन दानशीलता सँ ओ मोहि नेने होथि ।कखनो कखनो त’ एहन बात कि पहिले त’ बिन जजिमनिका पेट कि पांजरो नइ भरैत रहेन ,मुदा आब कने मजगूत भ’ गेला ।आ ऐ पेट-पांजर क’ चर्चा प्राय: होइत छलै । जजिमान-पुरहितक ई कांटी-मरिया निरंतर ठोकाइत रहला के बादो हमरा ई कहबा मे कोनो हर्ज नइ कि जजिमनका मे कतेको आदमी एहनो छथिन ,जे ऐ जजिमान-पुरहितक संबंध सँ आगू छथिन ,आ ओ हमरा लेल कोनो बाप-पित्‍ती सँ कम नइ ।चाहे जानकी बाबू होथिन वा मकसूदन बाबू ,इंजीनियर साहेबक परिवार हो वा बैद्यनाथपुर मे शशि के आंगन मे ओ वृद्ध मसोमात ।ई सब लोक हमरा लेल हमरा खानदानक लेल पारिजात बनि के रहला आ हमर सब कष्‍ट हिनका लोकनि के छाया मे हेरायत चलि गेल ।नित्‍यप्रति क’ भेंट आ हिनकर सभक दुलार कहियो वास्‍तविकता सँ परिचय नइ होम’ देलक ,नइ त’ पुरहितक जिनगी कोनो माली ,कोनो धानुक ,कोनो धोबी सँ कोन प्रकारे बेशी छैक ।ओहो सब अपन हिस्‍सा लैत छैक आ हमहूं ।यदि फल महत्‍वपूर्ण छैक त’ एना सोचनए बहुत बेजाए त’ नहिये............................... (क्रमश: )
विदेह मे क्रमश: प्रकाशित

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