Followers

Wednesday 4 April 2012

दू गुरू

हम प्राय: गीदड़क गति देखए छियइ
ओकर डर के नइ
आ कुकुरक स्‍नेह साहस
ओकर डोलैत पूछरी नइ
गाय क सीधापन
अहांके प्रिय
थन आ दूधक धार
आश्‍वस्‍त करैत
हम हरदम देखैत छियइ लेरूक मुंह
कविता मे विष आ शत्रुक खोजबा लेल
प्राय: अहां सांप लग जाइ छी
अप्‍पन पोटरी किएक ने ढ़ूरहए छी
अहांक उत्‍प्रेक्षा भिन्‍न
उपमा रूपक भिन्‍न अछि
किएक त हम दू गुरूक चेला छी

No comments:

Post a Comment