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Saturday 14 December 2013

दीपाली 1

दीपाली सजै-धजै मे बेशी समै नइ लगबै ,किएक त' भौजी बूझि जेथिन ने ।बस मुंह धोनए ,पोछनए ,कनेक टा टिकुली लगेनए ,ने ठोर लाल केनए ने आंखि कारी केनए ,भौजी बूझि जेथिन ने ।मुदा आइयो दीपाली बोरोलिन के नइ बिसरलै ,ठोर ,माथ ,हाथ ,कान सब पर लेप लेलकै ,फेर मिलबै काल मे भौजी यादि आबि गेलखिन ,मुसकियाइत दीपाली विदा भेली बजार दिस ।बजार सँ पहिले बस दू टा गाछी आ बागमती नदी ।आ आब पहिल गाछी पार भ' रहल छैक ,आम ,सीसो ,चह,बबूर ,करौना क' गाछ जेना चमकि उठलै ,फेर ई गाछ सब महक' लागलै ।जत्‍ते महक आम-सीसो मे ततबे दीपाली मे ।की दूनू मे बोरोलीनक महक छैक ? की दूनू मे आमक महक ,की दूनू मे दीपालीक महक ,की कुनो नबका गंध जनमलै हो देबा ?
आ आब त' दूनू गाछी पार भ' गेलै ,आब बागमती आबि गेलखिन ।दीपाली देख' लागलखिन बागमती कें ।के बेशी गोर ? केकरा मे बेशी चमक ,के बेशी देखनुक ? आइ सँ सात साल पहिले दीपाली कें उत्‍तर खोज' नइ पड़तै ,आइ दीपाली कें उत्‍तर मिलै छैक ,दीपाली लिय' नइ चाहैत छैक ।यद्यपि बागमतियो बुढ़ भेलखिन ,ईहो बन्‍हा गेलखिन ,हिनको कछार मे पानि नइ कादो आ बाउले भेटत ,एतौ कमल नइ जलकुंभिएक प्रताप ,तैयो बागमती बागमती छथिन आ दीपाली त' आब दीपाली भ' गेलै ।दीपाली कें साहस नइ छैक कि ओ आब बागमती दिस देखै ।ओ जल्‍दी-जल्‍दी पुल पार कर' चाहै छैक आ बागमती हहाइत छथिन ।नइ-नइ हँसै नइ छथिन दीपाली पर ,ओ अपनो पर नइ आ दीपाली बान्‍ह पर सँ उतरैत बजार मे प्रवेश करैत छैक ।एखनो दीपाली कें बजार पर भरोसा छैक ।दीपाली बूझैत छथिन जे हुनका सब सँ बेशी बूझनहार ,चाहनहार आ हित-चिंतक बजारे मे छैक ।
क्र्मश:

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