दीपाली पाएर बारने बजार दिस विदा भेली ,मुदा बहुतो लोक बहुत तरहक अनुमान लगेलकै ।किछु स्त्रीगण सोचलखिन 'कुनो काज हेतै '। किछु गोटे ईहो कहलखिन 'छौड़ीक देह मे आगि लागल छैक '। दू-चारि टा छौड़ा मूनेमून कहलकै जे यदि कहियो दीपाली मौका पर केकरो संग पकड़ा जेतै रे तखन ओकर काज बनि जेतै छल ।पकड़बाक योजना सेहो बनलै आ मूनेमून विभिन्न प्रकार सँ सफलताक आनन्द सेहो लेल गेलै ,एतबे नइ किछु गोटे क लेल ई ब्राह्मण जाति पर बड़का आघात छलै ,अपना-अपना हिसाबें एकरा 'कलियुगक अंत' सेहो कहल गेलै ।
आ बजारक लेल दीपाली रसगुल्ला रहै ,मालदह आम आ ओकरा ऐ व्यंजना पर आनन्दक अनुभूति होए ।लटखेना वला ,चूड़ी वला ,पेड़ा वला ,साड़ी वला सब तरहक दुकानदारक लेल दीपाली एहन लभ्य वस्तु रहै ,जेकर कामना केनए आ ग्रहण केनए संभव रहै ।एहनो नइ जे ओ बजारू समान रहै कि दिय' आ लिय' मुदा एहनो नइ रहै कि ई संबंध कुनो समाजिक आ भावनात्मक आधार पर ठार होए ।आइ दीपाली केकरो रहै ,काल्हि केकरो ।आ दीपाली के आब के रोकै वला रहै? बाबू मरिए गेलखिन ,भाए गुजरात मे रहैत छथिन ,बचलै माए त' माए आब केकरो किछु नइ कहैत छथिन ,हां दूनू भौजी सब कहियो-कहियो मारि-पीट जरूर करैत रहै ।एहनो नइ कि भौजीक दिस सँ कुनो अंकुश होए ,मुदा कहियो-कहियो उपराग आ अपमानक डोज सम्हारि मे नइ रहै ,बस दूनू भौजी मिलि कें बान्हि कें बेलना ,छोलनी ,लाति,मुक्का ,हथपंखा आ रंग-रंगक गारि ।दुनियाक सब बेलनाकार चीज कें गुप्तांग मे घुसेबाक चेतावनी ,बल्कि कखनो-कखनो घुसएबाक प्रयासो ,मुदा भौजियो जानैत रहथिन आ दीपालियो जानैत रहै जे बस दू-तीन दिन मे सब ठीक भ' जेतै ।
आ भौजी नइ जानैत छथिन कि दीपालीक वर सात साल सँ सासुर नइ आबैत छथिन आ भौजी नइ जानैत छथिन कि दीपालीक ई छबीसम थिकै कि दीपालीक सारी-नूआ ,सिन्नुर-टिकुली कोना चलैत छैक कि दीपाली आब एकटा सात सालक नेनाक माए छैक ,दूनू माए-बेटाक खरचा-बरचा कोना चलै छैक कि दीपाली कोन फैक्ट्री मे काज करैत छैक कि हरदम रंग-रंगक छीट,बनारसी,रूबिया पहिरै छैक दीपाली आ दूनू भौजियो त' हरदम सेटिंग मे सेटिंग लगबैत रहैत छथिन कि एकर रंग हल्का अछि आ एकर गहिर आ ऐ पर ई सेट करत आ ऐ पर 'ई'........ तैयो ई दुनिया-समाज रहै ,तैयो लाज-धाज रहै ,देवता-पितर रहथिन आ जाति त' रहबे करै
आ बजारक लेल दीपाली रसगुल्ला रहै ,मालदह आम आ ओकरा ऐ व्यंजना पर आनन्दक अनुभूति होए ।लटखेना वला ,चूड़ी वला ,पेड़ा वला ,साड़ी वला सब तरहक दुकानदारक लेल दीपाली एहन लभ्य वस्तु रहै ,जेकर कामना केनए आ ग्रहण केनए संभव रहै ।एहनो नइ जे ओ बजारू समान रहै कि दिय' आ लिय' मुदा एहनो नइ रहै कि ई संबंध कुनो समाजिक आ भावनात्मक आधार पर ठार होए ।आइ दीपाली केकरो रहै ,काल्हि केकरो ।आ दीपाली के आब के रोकै वला रहै? बाबू मरिए गेलखिन ,भाए गुजरात मे रहैत छथिन ,बचलै माए त' माए आब केकरो किछु नइ कहैत छथिन ,हां दूनू भौजी सब कहियो-कहियो मारि-पीट जरूर करैत रहै ।एहनो नइ कि भौजीक दिस सँ कुनो अंकुश होए ,मुदा कहियो-कहियो उपराग आ अपमानक डोज सम्हारि मे नइ रहै ,बस दूनू भौजी मिलि कें बान्हि कें बेलना ,छोलनी ,लाति,मुक्का ,हथपंखा आ रंग-रंगक गारि ।दुनियाक सब बेलनाकार चीज कें गुप्तांग मे घुसेबाक चेतावनी ,बल्कि कखनो-कखनो घुसएबाक प्रयासो ,मुदा भौजियो जानैत रहथिन आ दीपालियो जानैत रहै जे बस दू-तीन दिन मे सब ठीक भ' जेतै ।
आ भौजी नइ जानैत छथिन कि दीपालीक वर सात साल सँ सासुर नइ आबैत छथिन आ भौजी नइ जानैत छथिन कि दीपालीक ई छबीसम थिकै कि दीपालीक सारी-नूआ ,सिन्नुर-टिकुली कोना चलैत छैक कि दीपाली आब एकटा सात सालक नेनाक माए छैक ,दूनू माए-बेटाक खरचा-बरचा कोना चलै छैक कि दीपाली कोन फैक्ट्री मे काज करैत छैक कि हरदम रंग-रंगक छीट,बनारसी,रूबिया पहिरै छैक दीपाली आ दूनू भौजियो त' हरदम सेटिंग मे सेटिंग लगबैत रहैत छथिन कि एकर रंग हल्का अछि आ एकर गहिर आ ऐ पर ई सेट करत आ ऐ पर 'ई'........ तैयो ई दुनिया-समाज रहै ,तैयो लाज-धाज रहै ,देवता-पितर रहथिन आ जाति त' रहबे करै
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