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Monday 22 July 2013

आम 1

फागुने चैत सँ महकैत रहै
कखनो पल्‍लव सँ आ
कखनो मज्‍जर सँ
आ धैन भेल बैसाख
कि गाछी भरि गेल
छोट-बड़ रंगबिरही
गिरल तोड़ल टिकुला सँ
आबिते जेठ
सिनुरिया ,पीरबा
कनखी मार' लागल
आ कखनो सद्य: समक्षे गिर' लागल
कखनो जेठक गुम्‍मा,चुप्‍पा गरमी सँ
आ कखनो कठफोड़बाक बदमाशी सँ
कखनो इन्‍द्र-वरूण सेहो आबि के डोला देथिन
आ बूझू जे गाछी मे सूतनए कबाहैट भ' गेल
सांझ होइते गाछी झूम' लागै
अदृश्‍य प्रभाव सँ
आ नाचै भूत ,प्रेत ,चुड़ैल आ राकस सभ
कखनो नकूबा आ कखनो खटहबाक चालि
कखनो सम कखनो विषम ताल
कखनो एमहर धम्‍म कखनो ओमहर धम्‍म

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