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Saturday, 30 June 2012

मैथिली भाषा साहित्‍य :बीसम शताब्‍दी (प्रेम शंकर सिंह )



ऐ कॉलमक अंतर्गत विचार करबाक लेल पहिल किताब अछि प्रेमशंकर सिंह लिखित 'मैथिली भाषा साहित्‍य :बीसम शताब्‍दी ' ।ई पोथी विदेह पोथीक डाउनलोड सार्इट पर सेहो उपलब्‍ध अछि ।

विवेचनक अंतर्गत लेखकक उद्देश्‍य आ प्राप्ति प्रमुख अछि ।की उद्देश्‍य अछि आ कोन मात्रा मे एकर प्राप्ति भेल ।लेखकक वैचारिक आधार की अछि ,आलोचना वा इतिहासक कोन धारा के ओ स्‍पर्श करैत अछि वा कोनो नया धाराक विकासक मार्ग प्रशस्‍त करैत अछि ।संस्‍कृत आलोचना ,यूरोपीय आलोचना ,समकालीन भारतीय आलोचना क' कोन खण्‍ड लेखक कें प्रभावित करैत अछि ,अर्थात लेखकक प्रभावक श्रोत की अछि ।

संस्‍कृत काव्‍यानुशीलनक अलंकार ,रस ,ध्‍वनि,औचित्‍य वा यूरोपीय आलोचना सँ प्रभावित ऐतिहासिक आलोचना ,प्रभाववादी आलोचना ,समाजशास्‍त्रीय आलोचना वा उत्‍तर आधुनिक आलोचना कें ई कत्‍तहु छूबैत छैक ।ईहो संभव छैक कि ई बिम्‍ब वा काव्‍यभाषा के आलोचना के आधार बनबैत अछि ।

नवीन समीक्षा ई कहैत छैक जे कविक जीवन सँ कविता कें नइ जोड़ल जाए आ उत्‍तम साहित्‍य क' प्रतिमान ई मानल गेलै कि कवि आ कविता क' बीच कत्‍ते दूरी छैक ।विखंडनवादी तोडि़ तोडि़ के खोजि रहल छैक आ एकटा ध्‍वनि ईहो छैक कि जे नइ छैक ओकरा खोजैत खोजैत जे छैक तकरा खोजल जाए ।

 ई जरूरी नइ कि लेखक उपरोक्‍त प्रभाव कें कोनो विशेष अनुपात मे ग्रहण करबे करै ,मुदा यदि ओ पारंपरिक आलोचना कें नकारि रहल छैक तखन ओकरा नकारबाक वैचारिक आधार स्‍पष्‍ट कर' पड़तै ।स्‍वीकार आ नकारक दू-चारि टा भोथ आ तेज शब्‍द आलोचना नइ छैक ।ई अत्‍यंत कठिन मार्ग थिकै ,अपन प्रिय क' लेल नीक-नीक आ दोसरक लेल अधलाह- अधलाह ,ई कोनो आलोचना नइ भेलै ।तें जत्‍ते ई प्रेमशंकर जी क' परीक्षा ततबे हमरो सभक ।अहां सभ भाए लोकनि सँ आग्रह कि ऐ यात्रा कें सार्थक बनेबा मे सहयोग कएल जाए ।

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