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Wednesday 27 June 2012

आलोचनाक ''अ'' -1


मिथिलाक धरती दार्शनिकता क' लेल बेस ख्‍यात । ई धरती तर्क-वितर्कक उच्‍च कोटिक परंपरा सँ जुड़ल रहल अछि ।भारतवर्षक ई खण्‍ड दुनिया जहान कें भावुकता सँ नइ स्‍वीकारलक वा नकारलक ,ऐ ठाम तर्कक बेश महत्‍ता ।दुर्भाग्‍य सँ ई तार्किकता साहित्‍य मे अनुपस्थित रहल तें विद्यापतिक समानांतर कोनो आलोचक मैथिली साहित्‍य मे अनुपस्थित अछि ।मैथिली साहित्‍यक ई एकांगिता अखनो बनल अछि आ प्रचूर मात्रा मे साहित्‍य सृजनक बावजूद आलोचना साहित्‍यक गुणवत्‍ता संदिग्‍ध अछि ।मैथिली साहित्‍य (आलोचना समेत) आनो-आन भाषा सँ प्रेरणा ग्रहण क' रहल अछि ,संगे संग आलोचनाक विभिन्‍न मानदंड सेहो अधहा-छिदहा आबि रहल अछि ,मुदा एकटा संपूर्ण दृश्‍यक अभाव अछि ,एहन दृश्‍य जे अपन अंगांगक संग ,विभिन्‍न जीवन पद्धति क' संग ,लोकतांत्रिकता आ बहुलवादी समाजक मानसिक आकांक्षा क' पूरा करैत आलोचना क' मूलभूत आवश्‍यकता कें पूरा करैत हो । प्रतिपदा ऐ परिदृश्‍य मे पूर्ण विनम्रता क' संग हस्‍तक्षेप कर' चाहैत अछि ।ई एकटा एहन मंच होयत ,जे अहां सभक अधिकतम सहमति सँ अधिकतम रचनात्‍मकता दिस प्रस्‍थान करत ।

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