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Tuesday 10 July 2012

वर्षा ऋतु क' अद्भुत बिंब ।मौसमक सभ अंग-प्रत्‍यंगक चर्चा करैत एकटा अविस्‍मरणीय कविता ,जे बिल्‍कुल ह्रदय सँ बहरायल अछि आ कठिन सँ कठिन कसौटी पर उत्‍तम  कविता अछि । केवल बिजलौका आ बून्न्एि नए बगुला आ गरचून्नियो पर ध्‍यान ।ई चौमासा सरल भाषा मे एकटा अद्भुत काव्‍यदृश्‍यक निर्माण करैत अछि ,आ ककरो भ्रम नइ होए ऐ कविताक सफलता बून्‍नी आ चून्‍नीक तुक मे छैक ।ई सफलता चंदन जीक समग्र दृष्टिक अछि  ।ऐ कविताक तुलना मैथिली मे लिखल(बरखा पर) किछु प्रसिद्ध कविता सँ हेबाक चाही । चंदन झा जी कें बधाई ।

झमझम बरसै छै बून्नी
छै नाचि रहल गरचून्नी
सुनि के बेंगक टिटकारी
फँसलीह कबई कुमारी ।।

बगुला टकध्यान लगौने
बैसल छल आस लगौने
बुझू भेलै जबारी ओकरा
भरि पोख पेलकै टेंगरा ।।

कौआ केर भेटलैक चाली
बुझू जेना नूडल्स पाताली
घसि-घसि लोल पिजबैछै
खने खत्ता पानि उपछै छै ।।

जखने चमकल बिजलौका
साकांक्ष भेल घोंघही डोका
केयो जोड़ऽ लागल कुटमैती
केयो करय गेल पंचैती ।।

काँकोड़ बिल सँ बहरायल
ओ लगैछ कने अगुतायल
चाँगुर सँ महल बनेलक
रचि-रचि केहन सजेलक ।।

छै झूर-झमाने मूसरी
सोचै जे कोना के ससरी
घर-दुआरि ओकर दहेलै
बुझू अपटी खेत मे फँसलै ।।

केयो गाबि रहल चौमासा
ककरो लेल खेल तमाशा
हरखित छै खेत-पथार
जंगल,पहाड़ सभ धार ।।

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