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Monday 26 December 2011

निशांत झा क कविता


कथ्‍य आ भाषा मे एकटा ‘इंटेगरल ‘ संबंध होइत छैक ,आ मैथिली कविता मे ई इंटेगरिटी निशांत झा क कविता मे बहुत साफ मिलत ।हुनका जे कहबा के छनि ओ साफ साफ कहता ,ई सपाटबयानी हुनकर सृजनशीलता क प्रतीक ।उधार बिंब ,प्रतीक आ उधार अनुभव सँ लाख गुणा नीक ।आधुनिक कविता अत्‍यंत स्‍पष्‍टता सँ ‘आब्‍जेक्टिव कोरिलेटिव(इलियट) आ ‘स्‍ट्रक्‍चर’ एवं ‘टेक्‍सचर’ मे तनाव क बात(क्रो रैन्‍सम) करैत अछि ।आ मैथिली कविता के सेहो एकरा स्‍वीकार कर’ पड़तै आइ ने त’ काल्हि ।बल्कि यात्री ,राजकमलक कविता मे ई संगति अछियो ।आ हमरा सब लेल ई अत्‍यंत खुशी क बात कि निशांत सन नवका संगी सेहो अपन तरीका सँ अपन बात कहैत छथि । बधाई निशांत ।‘गौरवशाली प्राचीन ‘क लेल नइ ‘अनगढ़ नवीन ‘क लेल ।
कविता,
दांत में फंसल
अड्बंगा और क्लिष्ट शब्द के काफिया नय थिक
कविता,
जिंदगी के ख़राब अनुभव जे
कारी चट्टान
के निच्चा
पियर रेत स डिरिया रहल अछि , गर्म चिटठा जकां अछि
इ कविता के आकार
कोनो समाज के कच्छ स पैघ त नय
मगर ओय समाज के न्याय स पैघ अछि
जे अन्हरिया राइत में भुईक रहल कुकुर के वफादार होबक प्रमाण पत्र दैत अछि
की अछि कविता
मासिक धर्म स निवृत्त स्त्री के चेहरा के हर्ष
इ त देश के दुर्भाग्य अछि
कि इ देश के कवि
या त माशूक पर कविता लिख रहल अछि
या बसंत पर...
सरकारी और ईमानदार जमादार के आंइख
जे कोन पर पड़ल लाल पीक जकां ललचाबईत अछि
और हमर धर्म बरगद के छाहैर पर शिक्षा दैत अछि
" इ जे कोना पर लाल अछि है"
सूरज के अह्ने गुलाल अछि "
लिखनाइ एतेक ख़राब नय
की बुराई के स्थापना केल जाय
और हमर भरती ओतय निःशुल्क भ जाय
फेर आहांक लेल की पथ बांचत


2सोचलौ हम एक दिन संसार में सैर करू
अपन कल्पना के लहर पर धीरे - धीरे हेलअ लागु
तखने विचार आयल मोन में कल्पना स उपर उठू
अपने चलइते चलइते धरती पर पैर राखु

जखन धरलौ पग हम पृथ्वी पर
किछु अहसाश भेल अहन
ज़िंदगी के चाइर दिन
और , तयो जीवन कहेन ?

अतए नजइर उठेलौ त पेलौं
कृषक श्रम दान क रहल छल
कानी हाथ रुकइ नै छल
एहन मेहनत करैत छल .

आँइख धँसल छलय भीतर
भूखआयल पेट पिचइक रहल छल
पसीना के कंचन बूंद सँ
तन हुनक चमैक रहल छल .

देख क हुनक इ हालत
एक आघात भेल ऐना मोन पर
जीवन पाललक जग के जे
रक्त देखैत ओकर तन पर

किछु पग और चल्लौ आगा
एगो आलीशान भवन ठार छल
श्रमिक के शोषण कैर कैर क
अपना के गर्वित समइझ रहल छल .

कहलक गर्व स ओ ऐना
इ सब हमर कर्म के फल अछि
कयलक ज़िंदगी भइर श्रम ओ
लेकिन तयो निष्फल अछि .

तखन पुछ्लाऊ हम ओकरा स
सुन तोहर कर्म कहेन छऊ
हंइस क बजल ओ ऐना
सबता धन के आइड़ में छुपेल अछि .

सोचलौ हम धन कहेन अछि
जे सब किछु छुपा लैत अछि
पाप के पुण्य और
पुण्य के पाप बना देत अछि .

सोचइत सोचइत गाम क दिश बढ़ल कदम
कि लोग के कहेन अछि भरम
एक दिन अहिना फेर ओहे दिश पग बैढ़ चलल
जतय कृषक और भवन छल मिलल .

देखलौ ओतय हम -----
कृषक मग्न भ काज क रहल छल
पसीना के पोइछ वो हर जोइत रहल छल
दृष्टि गेल भवन पर त बुझ्लाऊ
कि मात्र एकटा खंडहर ओतय ठार छल .

ओ देख क हमरा
ओकर बात के बुझाय में आयल
कि कर्म के अनुसार
आय तू इ फल पेलें
हमरा मुँह स ओय समय
यइ शब्द निकइल गेल
नय ओझ्रयब इ भ्रम - जाल में
नय त इंसान त अतए छलल गेल .


3कांच के इ रंगीन टुकड़ी

इ कांच के रंगीन टुकड़ी
जखन देखैत छी एकरा कतौ पड़ल
मजबूर करैत अछि हमरा नय अछि इ सड़ल
और हम एकरा अपने संगे ल आबई छी दिल में
अपन साथ अपन आशियाना में
बहुत किछु कहैत अछि इ इशारा में

सोचैय्ते रहय छि हम
की जखन इ रहल हेती हिस्सा ककरो
लोग कहैयत हेती खिस्सा एकरे
इ तारीफ़ के काबिल छल तखन
एकरा कियो देखैतो ने अछि अखन
मगर लागैत अछि हमरा किएक अहेन

की अयमे नशा बचल अछि पाहिले जेहेन
बस जरुरत भैर अछि एकरा परख के
की बरक़रार अछि कशिश अखन
तुटले त अए बर्बाद नय अछि
एकर रंग ककरो मोहताज़ नय अछि
इ कहैत अछि अपने आप कहानी

की रहित छलैय दुनिया एकर दीवानी
एकर आस्तित्व मैं जे कमी अछि
वो हमर आशियाना के जमीं अछि
और हम पूरा करइत छी जोड़ैत छी
कतेक रंग के टुकड़ा के मिलाबैत छी
इ कांच के टुकड़ा के जकां

जिंदिगी के कहियो ने करब तबाह
की इ त जुइर जायत ककरो ने ककरो स
मगर जीवन जूडैत नय अछि आसानी स
जे बिखरित अछि टुइट क कहियो
त लाख कोशिश के बाद जुड़ाए नय
यह कहैत अछि इ टुकड़ा रंगीन अहाँ टूटू नय

तबाह केने जीवन जुर्म अछि संगीन
और यह रहित अछि कोशिश हमर
की कहियो बीखैर क ने टूटू कहियो
कोनो कांच के टुकड़ा या जिंदगी ककरो
कियेकी बिखरित किछु निक नय


4कम आमदनी में घर चलब के अभिनय
सुखेल रोटी खा क पेट भरअ के अभिनय ..

छोटकी कुटिया और टुटल खटिया ….
फाटल चाद्दैर में ठीठूइर क सुतय कइ अभिनय ..

अछि कतेक आम इ शक्श जिंदगी के फिल्म में …
कानू त लागे अभिनय .. हसू त लागे अभिनय ..

ऊपर स इ गरीबी रोज़ .. खलनायक बैन जाइत अछि ..
दुखी मोन भेलो पर .. ख़ुशी होयबाक अभिनय …

जिंदगी देखू चन्द मानव केर .. कतेक अछि सस्ता ..
मुर्दा जस्बात के संग .. जिबाक के अभिनय ..

आय चाहे जनाँ होय .. काइल जरूर निक होयत …
सहमल आशा लक .. पूरा करबाक के अभिनय ..

कम आमदनी में घर चलब के अभिनय
सुखेल रोटी खा क पेट भरअ के अभिनय ..



5किएक आखिर किएक
किएक अते मजबूर होइत अछि माँ

भोर के पहिल इजोत में
आईयो तोरा ताकि छऊ माँ

ओ मह्कैत कली के
परागकण में तोरा खोजैत छऊ माँ

ओ फूल के खुशबू
में आईयो तोरा ताकि रहल छऊ माँ

अपन माँ के आँचल में
अपन ममता तकैत छैथ माँ

तरेगन के ओय रौशनी में
सिर्फ ओय एक सितारा के तकैत माँ

पतझड़ के सुखेल पात में
एगो हरियरी के ताकैत माँ

सबटा नन्ही मुस्कान में
तोहर वो मुस्कान ताकैत माँ

कलरव करैत पंची के
फरफराहट में तोरा ताकत छाथुन माँ

ओउंस के ओ बूद पर
एकता जुगनू के ताकैत माँ

अंधियारी ओ राइत में
ओय चान में तोरा तकैत छ्थुन माँ

निशांत झा

1 comment:

  1. श्रीमान् हम निशांत झाकेँ प्रतिभाशाली बुझैत छलिअन्हि। खास कए अहाँक प्रोत्साहन पाबि ओ आर निफिकिर भए गेल छलाह। मुदा की ई उचित छै जे दोसरकेँ रचना अपना नाम कए क कवि कहाबी। हम अपनेक वाल पर ई नै देबए चाहैत छलहु मुदा चूँकि अहाँ निशांत जीकेँ फैन छिअन्हि तँए हमरा मजबूरीमे ई देबए पड़ि रहल अछि.....



    Nishant Jha
    हर दिन तो नहीं बाग़ , बहारों का ठिकाना !
    गुलदान को कागज़ के गुलों से भी सजाना !

    मुश्किल है चिराग़ों की तरह खुद को जलाना !
    भटके हुए राही को डगर उसकी दिखाना !

    क्या खेल है फेहरिस्त गुनाहों की मिटाना ?
    जन्नत के तलबगार का गंगा में नहाना !

    तू खैर ! मुसाफिर की तरह आ ! मगर आना !
    इक शाम मेरे क्हानाह ऐ दिल में भी बिताना !

    इक मैं हूँ जो गाता हूँ वो ही राग पुराना ,
    इक उनका रिवाजों की तरह मुझ को भुलाना!

    दर्द आह ओ फुगाँ बन के हालाक तक भी न आया !
    क्या कीजे न आया जो हमें अश्क बहाना !

    अफ़सोस कह अब यह भी रिवायत नहीं होगी ,
    खुशियों में परोसी का परोसी को बुलाना !

    सुलझी है , न यह जीस्त की सुलझे गी पहेली !
    लोगों ने तमाम उम्र गवा दी तो यह जाना !

    बदला ही नहीं हाल ऐ ज़माना ओ जिगर , "निशांत "
    फिर कैसे नयी बात , नए शेर सुनाना ? — with Chitranshu Karna and 45 others.

    Like · · Share · 26 minutes ago ·
    Abhishek Singh Deepak, Shailesh Jha Bibas, Amit Mishra and 4 others like this.
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    Mala Choudhary woh woh !!!
    20 minutes ago · Like · 1

    Nishant Jha behad sukriyaah....Mala Choudhary jee
    17 minutes ago · Like

    Amit Mishra mast
    17 minutes ago · Like

    Nishant Jha bahoot bahoot dhanyvad Amit jee
    16 minutes ago · Like

    Ashish Anchinhar मुझे होता था कि निशांत जी बहुत ही प्रतिभाशाली है। बहुत ही अच्छी गजल लिखते हैं मगर आज ये राज खुला कि निशांत जी साहित्यिक चोर हैं। वैसे हमारे रविभूषण पाठक जी निशांत जीके बहुत बड़े फैन है। उपर जो गजल निशांत जी ने अपनी गजल कह कर दी है ( मकता मे निशांत) यह गजल धीरज आमेटा धीर का है। कविता कोष का लिंक दे रहा हूँ।http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B9%E0%A4%B0_%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A8_%E0%A4%A4%E0%A5%8B_%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%BC%2C_%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%A0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%21_%2F_%E0%A4%A7%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%9C_%E0%A4%86%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A4%BE_%E2%80%98%E0%A4%A7%E0%A5%80%E0%A4%B0%E2%80%99.

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