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Tuesday 9 May 2017

औझका डायरी

औझका डायरी
ऊ कुटुम बनै वला छथिन ,मुदा दूर सँ टेलीस्‍कोप सँ आ लगीच मे माइक्रोस्‍कोप सँ निहारै छथिन ,निहारै नइ निरीक्षण करै छथिन ।निरीक्षणक आधार-विन्‍दु प्रेम नइ ,स्‍नेह नइ ,बस एक-दोसर कें नीच्‍चा देखेनए ।हरेक हाव-भाव ,गतिविधि ,बात-चित अहंकार सँ भरल ,हम छी नमहर त’ हम छी नमहर ।विद्वता ,योग्‍यता ऐ ठाम ब्रेकर बनि के ठार छैक ।जे हाथ नमस्‍कार मे उठै लेल रहै ,से हाथ उठै छैक दाग देखाबै लेल ।ओ सब किछु जानै छथिन(अ सँ ज्ञ तक).....ओ सब किछु बूझहै छथिन ,ओ पूरा दुनिया देखने छथिन ,हुनका रंग-रंगक आदमी सँ परिचय छैन ,ऊ आदमी कें देखे क’ चीन्‍ह जाइ छथिन.....।यैह गर्वोक्ति ,यैह अंडरस्‍टेंडिंग हुनका सहज बनेबा सँ रोकै छैक ।ऊ बुझथिन ,जरूर बुझथिन ,ताबत बह’ दियौ ,एखन बागमती मे बहुत पानि छैक ......
10/05/2017

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