ऑफिस मे हमर सबसँ प्रिय (हुनकर प्रिय हम नइ)मित्र रंजन जी के लेल धूस एकटा टेक्निकल मुद्दा छलै । आ घूस पर बतिआइत हुनका हम देखि अभिभूत भ' जाइत रहियै ।इतिहास सँ ल' के ,अर्थशास्त्र सँ ल' केे ,समाजशास्त्र सँ ल' के आ भारतीय आयोजन तकक समस्त जानकारी के पता नइ कोन-कोन सूय्या -डोरा ल्' के ओ सी दैत छथिन ,से पूछू नइ ।आ मिथिला के कथित रूप सँ सबसँ विद्वान जगह आ सबसँ नमहर माथ वला जगह सँ होयबाक नाते ओ बतहुत्थनो कम नइ करैत छथिन ।घूस क निशान ओ ऋग्वेद आ इलियड मे ढ़ूरहैत उत्तर आधुनिक साहित्य तक आबि जेता ।चाणक्य ,अदम गोंडवी आ गुन्नार मिड्रल के उद्धृत करैत-करैत ओ एते भावुक भ' जेता कि अहां अपना-आपके घूस नइ लेबाक विभिन्न प्रसंग मे दोषी मान' लागबै ।
नहू-नहू बाजै वला रंजन जी खुरपी ,कोदारि ,हांसू सब राखै छथिन ।मात्र राखबे नइ करैत छथिन ,कत्त' कोन चीज चलाबी ,सेहो बखूबी जानैत छथिन ।केकरा लग जातिक संदर्भ ,केकरा लग क्षेत्रक ,कत्त' मिथिला वला संदर्भ राखी ,कत्त्' सेक्युलर बनी आ कत्त' राष्ट्रवादी ,एकर सर्वोत्तम प्रयोग देखबाक लेल अहां के दस-पनरह दिन रंजन जीक साथ रहबाक चाही ।आ कखन की बाजी आ कोन मौसम मे केकरा संग रही ,ई अहां हुनके सँ सीखि सकै छी ।ईनकम टैक्स भरबाक समै मिश्राक संग ,भोरे घूमबाक लेल झाजी ,माछ किनबाक लेल यादव जी ,गाम जेबाक लेल कर्णजी साथ आ कुनो तिकड़म होए त' सिंह जीक संग ।
रंजन जीक संग मे एक सँ एक मशीन ।अहां केखनो भावुक भ' जाएब ,कखनो क्रोध सँ लाल-पीयर आ केखनो रंजन जीक लालित्य सँ अभिभूत ।मुदा रंजन जी ओहने छथिन ,बस काज भेलाक बाद ओ अपन मौलिक अवस्था मे विदा भ' जेता । आ रंजन जी कें पता छैन कि अहां सँ कोन चीज कोना उगलबएल जाए ।ओ नब्ज छूता आ अहां अपन बोखार आ दस्तक पुराण एक्के सांस मे बहार क' देबै ......
(आफिस मे)
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