रंजन जी क' सबसँ नजदीकी मित्र सिंह जी छथिन ।दू-चारि बेरक शीतयुद्ध छोडि़ दियौ ,दू-चारि प्रकरणक प्रतियोगिता कें बिसरि जाइयौ ,तीन-चारि टा हारजीतक संदर्भ पर धियान नइ दियौ ,तखन ई बात पूरा जिलाके पता छैक कि रंजन जी क' सबसँ प्रिय के आ सिंह जी क' सबसँ प्रिय के ।ई बात केकरो पता नइ छैक कि बेशी जरूरत केकरा छैक दोसर के ,ईहो पता नइ कि के केकरा सँ बेशी फैदा उठबैत छथिन ।ईहो पता नइ कि ऐ दोस्ती के बनेने रहबाक लेल के बेशी प्रयासरत छैक ,आ केएक सीमाक' बाद ऐ चीज कें इग्नोर करैत छैक ।मिला-जुला कें एकरा सामाजिक सहजीविता(सोशल सिम्बायोसिस) कहल जाए ,जीव विज्ञानक छात्र होयबा कें कारण हमरा दिमाग मे लाईकेन आबि रहल छैक ,पूर्णत: शैवाल आ कवक केर घालमेल ।केओ देह देने छैक त' केओ अपन हरियरी ।तहिना ऐ ठाम सेहो एकटाक दिमाग छैक आ दोसरक लंठई आ ऐ कंबिनेशनक परिणाम पूरा जिला भोगैत छैक ।
सिंहजीक लंठई छोट दिमाग मे नइ घूसि सकैत अछि ,किएक त' सिंह जी ओकील सँ ,किसान सँ आ परिवादक सँ ऐ हिसाब सँ मिलैत छथिन जे केकरो पता नइ चलत कि ऐ लंठक दिमाग मे की चलि रहल छैक ।परहल-लिखल संग परहल जँका आ मोटपसम लोक संग मोटपसम बात ।वाह रे सिंह जी ।बात लिय' त' विद्यापति सँ ल' के ज्ञानेंद्रपति तकक हिंदी कविताक मानचित्र सामने राखि देता ।इतिहासक बात करब त' ईसवी ,उद्धरण ,पृष्ठ संख्या आ स्टैंजाक बामा कात की दहिना कात सब बात कहि देता ।सौ -दूसौ टकाक कुनो बात होइ तखन अपन पर्स खोलि कें अहांके द' देता ।केकरो ओइ ठाम श्राद्ध होए ,बेटीक बियाह होए त' आदमी अप्पन गाड़ी क' के पहुंच जाए ,मुदा जेखन नमहर डीलिंगक कुनो बात होए तखन अपन पिताजीक पैरवी सेहो नइ सुनत ।एतबे नइ नियम-कानूनक अपन व्याख्या करैत ओ चाहता कि फाईलक क्रिया-कर्म भ' जाए ।
आ एहन विवादास्पद काज सब करबाक लेल बड़का करेजा केवल सिंहे जी मे भेटत ।आ सिंहजी क' करेजा मे कतेको आदमीक धमनी आ शिरा जुड़ल छैक ।डी0एम0 आफिसक चपरासी ,बाबू ,अधिवक्ता संघक अध्यक्ष् -मंत्री,अखबारक संवाददाता-उपसंपादक आदि,आदि ।ऐ सब गोटे कें पता छैन कि सिंह जी की करैत छथिन ,मुदा की कहबै कहियो ने कहियो ई सब सिंह जी सँ उपकृत भेल छथिन ।आ विभागीय अधिकारीक बाते छोड़ू ,सबक फिज मे सिंहजीक रसगुल्ला ,एतबे नइ फ्रिज तक सिंह जी क' खरीदल ।केकरो रेलवे क' टिकस ,केकरो इसकुलक फी ,केकरो डाक्टरीक पर्चा .....सब सिंहजी क' जेबी मे ।एतबे नइ ऊपरका नेता-अधिकारी तक पैरवी करबाक हो ,ट्रांसफर करेबा आ रोकेबाक हो ,सबक हिसाब सिंह जीक संग ।
विभागीय अधिकारीक पहिल चाय आ अंतिम चाय सिंहजी क' संग ।बाकी टाइम मे सिंह जी की करथिन ,एकरा सँ केकरो लेबा-देबाक नइ ।अहां सिंह जी कें अपना कुरसी पर नइ देखि सकैत छियै ।मोटा-मोटी जातिवाद सँ दूर ,मुदा एहनो नइ कि जातिवादक उपयोग नइ करी ।अप्पन जातिक अफसर मिलि जाइ त' दूहाथ जाति-जाति सेहो खेल ली ।आ अप्पन कुरसी के बचेबाक हो ,केकरो सँ किछु छिनबा क होए त' 'जाति-जाति' किएक ने खेली । आ सिंह जीक बियाह सेहो एहिए जिला मे भेल छलै ,से किसान आ ओकील कें ई बात बताबै मे सिंह जी कंजूसी नइ करथिन आ ओकील साहेब सब आ किसान भाय सब ऐ संकेत के बूझैत सिंह जी कें निराश नइ करैत छथिन ।अहां सिंह जी कें जातिवादी कैह सकैत छियेन ,मुदा हुनकर द्वार पर आंहू केर स्वागत अछि ।अहां क' लेल जाति जाति हैत ,हुनका लेल जजाति छैक ,जेकरा मे जत्ते खाद-पानि देबै ,ओत्ते बम्फार फसल हैत ।मात्र खादे-पानि नइ ,सही समै पर कमौनी सेहो जरूरी ।कमौनीक सबसँ नीक समै भोर आ सांझ ।किछु बाजियौ आ किछु बजबाक मौका दियौ ,केखनो चाय-मिठायक संग केखनो खालियो हाथ.........
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