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Wednesday 11 December 2013

हाकिम 2

अओ बाबू र्इ हाकिम तऽ विचित्रे बूझू ।एकर कमेबा-खेबाक अलगे पैटर्न ।आफिस करैत रहत ,करैत रहत ,एके बेर कुनो कर्मचारी कें बजाओत आ बस पांच रूपयाक चिनिया बदाम मँगा लेत ।तहिना एक दिन जिद कऽ देलकै कि केओ आदमी पचास रूपया दिय' हमरा दरभंगा जयबाक अछि ,आब लियऽ एते बड़का हाकिम आ पचास रूपया संग मे नइ होए ,मुदा की करबै ,हाकिम छियै ने ,हारि-हिया के दियऽ पड़लै ।


                                                              ऐ हाकिमक एकटा बदमाशी ई कि सौंझका समै मे टहलैत रहत बजार मे , की केओ कर्मचारी भेटि जाए आ फेर ओकरा पॉकेट सँ मार्केटिंग कराबी ,तें या त
ऽ कर्मचारी सब बजार सांझ के टहलनए छोडि़ देलकै या फेर ई पता क' लए कि हाकिम कतऽ छथिन एखन ।एकदिन परमेसर जी पकड़ेला आ जखन तक हुनकर जेबी खाली नइ भेलै हाकिम लग मे बैसेने रहलै । आ जखन हाकिम के बुझा गेलै कि आब परमेसरक बटुआ खाली भऽ गेलै तखन कहनै शुरू केलकै 'हमरा अपन नमहर भाय बूझू परमेसर जी ,यदि कुनो प्रकारक आवश्‍यकता बुजहब तखन निश्चित रूपेण यादि करब आ पैसो-कौड़ीक कुनो जरूरत होए तऽ संकोच नइ करब ।'


                                   धीरे-धीरे ई स्थिति बनलै कि लोक सब हाकिम ओत
ऽ जेनए छोडि़ देलकै आ यदि हाकिम बजेबो करै तऽ सब कुनो ने कुनो बहन्‍ना जरूर बनबै ,एक दिन धनंजय बाबू पकड़ा गेला आ हाकिम लटपटा के किछु कहलखिन धनंजय के गहुम बुझेलए आ जखन एक बोरा गहुम धनंजय भेजि देलखिन तखन हाकिम मुसकियाइत कहलखिन 'हम तऽ रोहू कहलौं आ अहां गहुम बुझि गेलियै ' आब धनंजय बाबू रोहूक व्‍यवस्‍था सेहो केलखिन ।ऐ स्थिति मे नाटकीय मोड़ तखन एलै ,जखन हाकिमक ट्रांसफर दोसर जिला मे भऽ गेलै ,ई समाचार सुनिते लोक सब अपन पैसा लेबाक लेल पहुंच' लागलै ,बात ई रहै कि हाकिम बहुत लोक सब सँ एडवांस मे पैसा लऽ नेने रहथिन आ काजक समै एखन भेले नइ रहै ।आ ककरा सँ कत्‍ते लेल गेल छलै ,ऐ मे कत्‍ते दलाल ,कत्‍ते मुखिया आ कत्‍ते स्‍टाफ सब नेने रहै एकर कुना कागजी हिसाब रहै नइ ।ट्रांसफर होइते तीन-चारि टा कर्मचारी ऑफिस एनए छोडि़ देलकै आ दलाल सब कतओ भागि गेलै ,आब की कएल जाए ,तखन धनंजय बाबू ई निर्णय देलखिन जे हाकिम अहां रातिए मे जिला छोडि़ दियऽ आ हाकिम कें ई निर्णय एते नीक लागलेन कि हाकिम अकेले समान बान्‍हनै शुरू कऽ देलखिन आ धनंजय बाबू ट्रक आनबा लेल विदा भऽ गेलखिन ।

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