चारि भाई छलौं ,तीन गोटे बाहर चलि गेला कमाई-खटाई लेल ।ई कमाई-खटाई
शब्द हमर नइ हुनके छी ।कमाके टाल केने छथि ,मुदा ओतबे विनम्र ।विनम्रता क'
पाछू चलाकी ई कि केओ मांगि न दए ।हरदम लोने क' चर्चा करता ,हरदम बीमारिए
क' ,हरदम घाटा क' चर्चा करता ।अपने नइ कनियां आ छोट-छोट बच्चा सब सेहो
एकदम रटल-रटाएल पटकथा आ संवाद तक रहता ।
आब आबी असली चर्चा पर ।तीनू गोटे चलि गेला गाम छोडि़ कें ,कहि के ई गेला कि अहां के करोड़ रूपया क' संपति आ ईज्जत-प्रतिष्ठा देने जाइत छी ।आ बाबू ,ई करोड़ टका एहन खतरनाक भेल कि पूछू नइ ।तीन-तीन ,चारि-चारि पुश्तक पुरान कुटुम सब आबि जेता आ बिना हफ्ता बितेने हटता नइ ।जत्ते कुटमैती क' जंजाल ,बहिने नइ दीदी आ पितामहक बहिन सब जंजाल हमरे पर ।नानी गांव आ हमर बापक नानी गांव आ बापे नइ पितामहक ननियौत सब सेहो फरिछौट करबा लेल हमरे ओहि ठाम एता ।आब बूझू जे गाम मे रहनै मोश्किल ।
आब आबी असली चर्चा पर ।तीनू गोटे चलि गेला गाम छोडि़ कें ,कहि के ई गेला कि अहां के करोड़ रूपया क' संपति आ ईज्जत-प्रतिष्ठा देने जाइत छी ।आ बाबू ,ई करोड़ टका एहन खतरनाक भेल कि पूछू नइ ।तीन-तीन ,चारि-चारि पुश्तक पुरान कुटुम सब आबि जेता आ बिना हफ्ता बितेने हटता नइ ।जत्ते कुटमैती क' जंजाल ,बहिने नइ दीदी आ पितामहक बहिन सब जंजाल हमरे पर ।नानी गांव आ हमर बापक नानी गांव आ बापे नइ पितामहक ननियौत सब सेहो फरिछौट करबा लेल हमरे ओहि ठाम एता ।आब बूझू जे गाम मे रहनै मोश्किल ।
छठि मे आ होली मे भाय सब सेहो पिकनिक मनेबा लेल
पहुंचता ,हुनकर स्वागत मे कुनो कमी नइ रहि जाय ई हमर जीवनक सर्वश्रेष्ठ
कर्तव्य आ कुनो गुंजाइश रहि जाय त' मृत्युदंड तक कमि जेतै हमरा लेल
।तहिना भाउज आ भावहु सब ,टीकमगढ़क रानी हुनका लग मे उन्नीस भ' जेती
।भतीजा-भतीजी सब सेहो बेस ठुनकौआ ,सब सख गामे ल' के एता ।
कहबा लेल ई कि हम धूरी छी ।हमरे पर सबक नाचनए ।हमहीं सबक केंद्र ,समस्त परिधि ,विस्तारक मूल विंदू हमही ।वाह रे वाह ,ई साहित्यिक भाषा वौआ दोसर कें कहियहीं ,बहुत रास थोपड़ी आ वाह-वाह मिलतौ ।सब सहबाक लेल हमहीं ,सब भोगबा क' लेल हमहीं ,तों सब बस भोजक निमंत्रित आ हम हरदि-हींग सँ ल' के पात-पानि तक सबक ठीकेदार ।एतबे नइ तोरा सब कें गेलाक बाद पात फेकबाक जिम्मेवारी सेहो हमरे ।आ यदि नइ फेक सकब त' ओइ विषेन गंध सँ के बचायत हमरा ।
कहबा लेल ई कि हम धूरी छी ।हमरे पर सबक नाचनए ।हमहीं सबक केंद्र ,समस्त परिधि ,विस्तारक मूल विंदू हमही ।वाह रे वाह ,ई साहित्यिक भाषा वौआ दोसर कें कहियहीं ,बहुत रास थोपड़ी आ वाह-वाह मिलतौ ।सब सहबाक लेल हमहीं ,सब भोगबा क' लेल हमहीं ,तों सब बस भोजक निमंत्रित आ हम हरदि-हींग सँ ल' के पात-पानि तक सबक ठीकेदार ।एतबे नइ तोरा सब कें गेलाक बाद पात फेकबाक जिम्मेवारी सेहो हमरे ।आ यदि नइ फेक सकब त' ओइ विषेन गंध सँ के बचायत हमरा ।
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