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Friday 14 June 2013

हे सुन्‍दरी

हे सुन्‍दरी सुनु कनि
अहांक ई विशाल केशराशि कत्‍ते शैम्‍पू खाइत अछि
अहा ! नइ बूझलियै ई गद्य
ई केशक सदाबहार जंगल कत्‍ते तेल पीबैत अछि
डेली कि हफ्ता मे
कत्‍ते बेर जुट्टी
कत्‍ते बेर कंगही
कत्‍ते बेर खोपा
ऐ जटाजूट मे मनुक्‍खे करत रहबाक अभिलाषा
वा आनोआन जीव-अजीव
आ कत्‍ते बेर ढ़ील-लिखक लेल मृत्‍युक फरमान
कत्‍ते बेर मुंह ,नाक ,आंखि झंपा जाइछ अन्‍हार मे
कत्‍ते बेर झूलैत झालैत लट
मारैत गाल पर सटक्‍की
आ कखनो के बहैत दहो-बहो नोर
हे पार्वती अहां शंकर त’ नइ ??

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