ओ अपना कें प्रेमी मानैत छथिन आ लोक हुनका चरित्रहीन कहैत छैन .....ई शुरू भेलै तखन जखन कि वौआ के मोंछक पम्हो नइ देने रहै आ चलैत रहलै तहिया तक जहिया तक कि बूरही मरि नइ गेलै.......बूरहा कें आंखि मे अखनो बूरही क' लेल ओतबे स्नेहक आगि आ ऐ आगि मे सब सांसारिक कष्ट के जरैत हम देखलियै......बूरहा अखनो ओ कष्ट सब के गानैत छैक ,मुदा गनबैत गनबैत कानै नइ छैक ,हँसैतो नइ छैक ,कथावाचकक निस्संगता ओढ़ने छैक ।
जीबल जिनगी कें ने ओ गीता सन पवित्र मानैत छैक ,ने कोनेा अपवित्र अध्याय ।ओ जीवनक प्रत्येक स्पर्श ,क्षण कें पवित्र-अपवित्रक घटिया वर्गीकरण सँ अलग मानैत छैक ।ओकरा सम्मान नइ चाही ,ओकरा सत्कार नइ चाही ।ओ व्यस्त नइ छैक ,मुदा खालियो नइ छैक , स्मृतिक पौती ओकरा संग मे छैक ,बेरि बेरि ओकरा खोलैत बंद करैत .....ओ मुसकाइत छैक आ ऐ मुसकानक तरंग वृत्ताकार पथ पर फैलैत छैक.......
जीबल जिनगी कें ने ओ गीता सन पवित्र मानैत छैक ,ने कोनेा अपवित्र अध्याय ।ओ जीवनक प्रत्येक स्पर्श ,क्षण कें पवित्र-अपवित्रक घटिया वर्गीकरण सँ अलग मानैत छैक ।ओकरा सम्मान नइ चाही ,ओकरा सत्कार नइ चाही ।ओ व्यस्त नइ छैक ,मुदा खालियो नइ छैक , स्मृतिक पौती ओकरा संग मे छैक ,बेरि बेरि ओकरा खोलैत बंद करैत .....ओ मुसकाइत छैक आ ऐ मुसकानक तरंग वृत्ताकार पथ पर फैलैत छैक.......
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