संभवत: संस्कृतक बाद मैथिलीए एहन भाषा छैक , जइ मे ब्राह्मणे ब्राह्मण नइ छथिन ,बल्कि अपन फोंफ ,विष आ केंचुआक साथ मौजूद छथिन ,एहनो नइ जे अमृत नइ छैक ,मुदा जे छैक ,ओहिक लेल बहुत किछ ऐ वर्गक उपस्थिति जिम्मेवार छैक ।आ ब्राह्मणक मौजूदगी सँ साहित्यक विषय ,विधा ,शब्दावली मे ओत्ते परिवर्तन नइ भेलै जत्ते कि हेबाक चाही ।
आब प्रश्न ई छैक जे मिथिला मे ऐ प्रकारक सांस्कृतिक वर्चस्व को बनल रहलै । सभ गोटे जानैत छथिन जे मिथिलाक अधिकांश दरभंगा महराजक अधीन रहल आ ऐ ठाम ओइ तरहक सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन नइ भेलै ,जेना देशक शेष भाग मे ....आ स्वतंत्रताक बादो एहन तरहक राजनीतिक आ सांस्कृतिक वातावरण बनलै ,जइ ठाम गंभीर परिवर्तनक संभावना कम रहलै ।1990 क' दशक मे राजनीतिक परिवर्तन त' भेलै ,मुदा ओकर सांस्कृतिक प्रभाव अत्यंत कमजोर रहलै आ सबसँ दुर्भाग्यपूर्ण बात ई भेलै कि मैथिली कें ब्राह्मणक भाषा घोषित क' देल गेलै आ ऐ वादक प्रभावकारी प्रतिवाद करबाक लेल मैथिल समाज समर्थ नइ छलै ।
ब्राह्मणक वर्चस्व साहित्ये मे नइ अन्य संस्थान मे सेहो रहल ।प्रोफेसरीक नोकरी सँ ल' के साहित्य अकादमीक सम्मान तक ब्राह्मण कीड़ी जँका पसरल रहला आ यदि छोट मोट अवाज उठलै तखन ओइ पर विचार करबाक बदले ई कहल गेल कि जे लिखतै सैह ने जीततै आ मैथिली के बहवर्गी समाजक भाषा बनेबाक न्यूनतम जिम्मेवारी सँ सेहो परहेजक नीति निरंतर बनल रहल ।
स्थिति मे एखनो बहुत सुधार नइ अछि ।एकटा सुभाष यादव एकटा तारानंद वियोगी आ एकटा जगदीश मंडलक उपस्थिति एहने अछि जेना मैथिल समाज मे अमीरी क वर्णन करैत यात्री एकर तुलना कुष्ठ सँ करैत छथिन ,मतलब पूरा देह कारी आ कतौ कतौ ऊज्जर ।
अब्राह्मणक स्वीकार्यता मैथिली मे बढि़ रहल छैक मुदा एकर गति मंद छैक आ अब्राह्मणक स्वीकार्यताक मतलब ब्राह्मणक विरोध नइ हेबाक चाही ।किछु गोटे अब्राह्मण कें प्रति सहिष्धु छथिन मुदा अब्राह्मण मूल्यक प्रति नइ ।आ ई संभव नइ छैक कि लोक रहथि आ अपन स्वाभाविक मूल्यक बिना रहथि या थोपल मूल्यक साथ रहथि ।त' समै आबि गेल अछि कि मैथिली कें अब्राह्मण व्यक्ति आ हुनकर मूल्य ,संदर्भ आ जिनगी क' लेल खोलल जाए ...पूरा हार्दिकता सँ ,हँसैत ,मुसकियाबैत ,दूनू हाथ छाती मे लगबैक लेल बरहल ..........
आब प्रश्न ई छैक जे मिथिला मे ऐ प्रकारक सांस्कृतिक वर्चस्व को बनल रहलै । सभ गोटे जानैत छथिन जे मिथिलाक अधिकांश दरभंगा महराजक अधीन रहल आ ऐ ठाम ओइ तरहक सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन नइ भेलै ,जेना देशक शेष भाग मे ....आ स्वतंत्रताक बादो एहन तरहक राजनीतिक आ सांस्कृतिक वातावरण बनलै ,जइ ठाम गंभीर परिवर्तनक संभावना कम रहलै ।1990 क' दशक मे राजनीतिक परिवर्तन त' भेलै ,मुदा ओकर सांस्कृतिक प्रभाव अत्यंत कमजोर रहलै आ सबसँ दुर्भाग्यपूर्ण बात ई भेलै कि मैथिली कें ब्राह्मणक भाषा घोषित क' देल गेलै आ ऐ वादक प्रभावकारी प्रतिवाद करबाक लेल मैथिल समाज समर्थ नइ छलै ।
ब्राह्मणक वर्चस्व साहित्ये मे नइ अन्य संस्थान मे सेहो रहल ।प्रोफेसरीक नोकरी सँ ल' के साहित्य अकादमीक सम्मान तक ब्राह्मण कीड़ी जँका पसरल रहला आ यदि छोट मोट अवाज उठलै तखन ओइ पर विचार करबाक बदले ई कहल गेल कि जे लिखतै सैह ने जीततै आ मैथिली के बहवर्गी समाजक भाषा बनेबाक न्यूनतम जिम्मेवारी सँ सेहो परहेजक नीति निरंतर बनल रहल ।
स्थिति मे एखनो बहुत सुधार नइ अछि ।एकटा सुभाष यादव एकटा तारानंद वियोगी आ एकटा जगदीश मंडलक उपस्थिति एहने अछि जेना मैथिल समाज मे अमीरी क वर्णन करैत यात्री एकर तुलना कुष्ठ सँ करैत छथिन ,मतलब पूरा देह कारी आ कतौ कतौ ऊज्जर ।
अब्राह्मणक स्वीकार्यता मैथिली मे बढि़ रहल छैक मुदा एकर गति मंद छैक आ अब्राह्मणक स्वीकार्यताक मतलब ब्राह्मणक विरोध नइ हेबाक चाही ।किछु गोटे अब्राह्मण कें प्रति सहिष्धु छथिन मुदा अब्राह्मण मूल्यक प्रति नइ ।आ ई संभव नइ छैक कि लोक रहथि आ अपन स्वाभाविक मूल्यक बिना रहथि या थोपल मूल्यक साथ रहथि ।त' समै आबि गेल अछि कि मैथिली कें अब्राह्मण व्यक्ति आ हुनकर मूल्य ,संदर्भ आ जिनगी क' लेल खोलल जाए ...पूरा हार्दिकता सँ ,हँसैत ,मुसकियाबैत ,दूनू हाथ छाती मे लगबैक लेल बरहल ..........
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