करियन आ तरौनी क' बीचक पचास किलोमीटर जमीन
करेह आ बागमतीक कछार मे बसल पचासो गाम आ टोल
बात जे नोट करै वला अछि से नोट करब दोस
जे यात्री कुटुम नइ रहथि हमर
आ ने हुनकर बेटा धिया पूता सँ कोनो दोस-महीमी हमर
मुदा जे बात बरछा सन धसै अछि हमर करेज मे ,सेहो सुनु
विद्यापतिक बाद के एहन मैथिल कवि जे कविता के कविता बुझलकै
आ के एहन कवि जे छंद आ पद्य सँ कविता कें अलग केलकै
वैह यात्री वैह यात्रिए ने
आ बात बस एतबे कि ओ जे केलकए से बात हम स्वीकारी
आ ऐ कृतघ्नता कें कोन कलाकारी कही
कि बहस सरेबाजार छइ कि यात्रीक काव्य मे
कत्ते श्रम कत्ते रंग कत्ते फूल आ कत्ते रस
आ तों जत्ते थेथरई सँ कहैत छहक यात्री के ?
करेह आ बागमतीक कछार मे बसल पचासो गाम आ टोल
बात जे नोट करै वला अछि से नोट करब दोस
जे यात्री कुटुम नइ रहथि हमर
आ ने हुनकर बेटा धिया पूता सँ कोनो दोस-महीमी हमर
मुदा जे बात बरछा सन धसै अछि हमर करेज मे ,सेहो सुनु
विद्यापतिक बाद के एहन मैथिल कवि जे कविता के कविता बुझलकै
आ के एहन कवि जे छंद आ पद्य सँ कविता कें अलग केलकै
वैह यात्री वैह यात्रिए ने
आ बात बस एतबे कि ओ जे केलकए से बात हम स्वीकारी
आ ऐ कृतघ्नता कें कोन कलाकारी कही
कि बहस सरेबाजार छइ कि यात्रीक काव्य मे
कत्ते श्रम कत्ते रंग कत्ते फूल आ कत्ते रस
आ तों जत्ते थेथरई सँ कहैत छहक यात्री के ?
ओतबे बल सँ हमर दिमाग नसियाइत भसियाइत छैक
कि यात्री कवि नइ द्रष्टा छलै
समाज साहित्य दिस उंगरी देखबैत.......
ऊ उंगरी तोरो दिस ओतबे ऊठल
जत्ते हमरा दिस
कि यात्री कवि नइ द्रष्टा छलै
समाज साहित्य दिस उंगरी देखबैत.......
ऊ उंगरी तोरो दिस ओतबे ऊठल
जत्ते हमरा दिस
No comments:
Post a Comment