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Wednesday 29 August 2012

गजल- भास्कर झा


हक्कर कानि, हारल मानि, जिनगी नहिं जीयल करु
कष्टक बेलामें दम घोंटि निराशक भांग़ नहिं पीयल करु।

कोनो जिद्द ठानि,नियतिके मानि, अपन पग-डेग बढाबी
चुभे कोनो कांट, भले देह टांट, फ़ाटल नहिं सीयल करु।

राखू एकटा लक्ष्य, मन निरपेक्ष, सुख-दुख अबिते रहतै
जीवन एकटा जंग, भले अंग-भंग,थाकल नहिं जीयल करु।

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