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Saturday 14 April 2012

सोयरी आ सपना

ओक्‍कर तोहर हम्‍मर सपना नाम:सूर्यकांत उमेर :बयालिस वर्ष रंग:गोर लंबाई:पांच फीट नओ इंच वामा आंखिक ऊपर मे आ दहिना बांहि पर चोटक निशान
समस्‍तीपुर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ,करियन शाखा क’ एकटा खाता नम्‍मर (हम नम्‍मर सार्वजनिक नइ क’ रहल छी)
पहिले पहिल मात्र यैह सूचना फैक्‍स क’ माध्‍यम सँ दिल्‍ली सँ राजीव झा जी भेजला ।राजीव झा दिल्‍ली पुलिस मे उपनिरीक्षक छथिन ,आ हुनका पता छलनि जे सूर्यकांत हमर पिसियौत भाय छथि ...........दिन छलै सोलह अगस्‍त दू हजार दस ।जखन हमरा बूझा गेल जे सूर्यकांते भाय ई डायरी लिखला तखन हम कहलियेन जे ई डायरी भेज दियअ । ई डायरी अजीब तरीका सँ लिखल गेल छैक ।जत्‍ते दिलचस्‍पी अपना प्रति ओतबे समाजक प्रति ।ओना डायरी क’ बहुत रास बात हमरा अनसोहांत लागल .........कखनो कखनो एत्‍ते कि सूर्यकांत अप्‍पन मर्यादा धोए देने हो..........मुदा ऐ विषय मे हम किछु नइ कहब किएक त’ गजेंद्र जी कहला कि डायरी के मूले रूप मे छापल जाय ,तें डायरी क’ कंटेंट पर हमरा किछु नइ कहबा के अछि .......ओहुना मरल आदमी के विषय मे की कहल जाए ?

हमरा तऽ ईहो नइ बूझबा मे आबि रहल अछि कि ऐ डायरी मे किछु साहित्यिक तत्‍व अछि वा नइ ? कखनो डायरी तथ्‍य आ समै कऽ संदर्भ स्‍वीकारैत छैक आ कखनो नइ ,कखनो –कखनो तऽ डायरी अप्‍पन रूप के छोड़ैत संस्‍मरण ,कथा ,कविता दिसि भागऽ चाहैत अछि ।कखनो –कखनो सपना कऽ रूपक मे समाहित हेबऽ लागैत अछि ।डायरी लिखलो छैक मिथिलाक्षर मे आ हमर मिथिलाक्षर रहबो करए कमजोरे ,तें एकटा ईहो मेहनत बढि़ गेल । मुदा गजेंद्र जी कऽ ई कहतब छनि जे एगो –दूगो पृष्‍ठ के नित्‍यप्रति सुलेखित करैत भेजैत रहू ।
डायरी कें प्रस्‍तुत करैत सभ सँ पहिले हम राजीव बाबू कें धन्‍यवाद दैत छिएन जे ओ अप्‍पन व्‍यस्‍त दैनंदिनी कऽ बीच सूर्यकांत कऽ डायरी मे दिलचस्‍पी देखेलैथ आ एहियो सँ आगू बढि़ हेरायल डायरी कें खोजि निकालला । ई डायरी सूर्यकांत भायकऽ मकान मालिक राखि लेलकइ आ कोनो साहित्यिक वस्‍तु बूझि बेचबा के फिराक मे रहए ।ऐ डायरी कऽ तथ्‍य के प्रस्‍तुत करैत हम सूर्यकांत भाय कऽ आत्‍मा सँ क्षमा मांगैत छी ,किएक तऽ डायरी मे कतेको एहन चीज छैक ,जइ सँ विवाद उत्‍पन्‍न्‍ा होयत आ मृतात्‍मा कऽ संबंध मे भ्रांति उत्‍पन्‍न भऽ सकैत छैक । मुदा ऐ धन्‍यवाद आ क्षमाप्रार्थना कऽ प्रासंगिकता तखने ,जखन डायरी मे कोनो सत्‍व हो ।डायरी मे कतहु कतहु शीर्षक छैक आ कतहु नइ ।सबसॅं नमहर शीर्षक छैक ‘ओक्‍कर हम्‍मर तोहर सपना ‘ ।आ डायरी कऽ पहिल पृष्‍ठ पर एकटा छोट शीर्षक रहै ‘सोयरी आ सपना ‘।ऐ खेप मे ‘सोयरी आ सपना’ प्रस्‍तुत अछि ।

सोयरी आ सपना



ई कोनो अद्भुत सपना नह रहै ।सभ लोक अपन अपन बच्‍चा क' लेल एहिना सपना देखै छैक ,आ ई ओकर पहिलो सपना नइ छलै ।पहिलो नइ ,दोसरो नइ ,तेसर ........ ,मुदा आइ सँ तीस-चालीस साल पहिने तीन टा बच्‍चा बहुत सधारण बात छलै ,से दम्‍पति अपन सपना के देखबा ,सपना के अगोरबा ,पोसबा के सब उपक्रम करैत गेल ।सपना मे पानि देनइ ,सपना के हवा लगेनइ ,सपना मे सँ आकुट बाकुट कें साफ केनए ,सपना के चोर-शैतान सँ बचाबैत ,लोक-वेद के कहैत गुणैत ।सपना के हाथ-पैर ,मुंह-कान सब बनलए ।ऐ मे लगभग नओ महीना लागि गेलइ ।आ ई नओ महीना कोना बीतलइ दम्‍पति के पते नइ चललै ।

एक दिन मिथिला क एकटा गाम मे सपना के धरती पर उतारबाक व्‍यवस्‍था प्रारंभ भेल । तीन -चारि टा जनानी ,एकटा चमैन ,आगि-पानि ,तेल-मौध,साबुन-कपड़ा आ गीत-नाद । आ वौआ रे अलगे समै छलै ,ओइ समै मे ,बच्‍चा जनमै काल एकटा खास भूमिका लेल किछु जनाना कें बजाओल जाइत छलै ,ऐ मे सबसँ प्रशिक्षित जनाना ओइ वर्ग सँ होइत छलखिन जे मिथिले नइ समस्‍त भारतवर्षक जाति-विचार मे अछोप मानल जाइत छलै ,मतलब सबसँ महत्‍वपूर्ण काज आ काज केनिहार क दरजा अछोपक ।ई सब बात बाद मे ,पहिले सपना कऽ स्‍पर्श ,गंध सँ मोन के भिजा तऽ लेल जाए । आ सपना कें जमीन पर उतारबा क जिम्‍मेवारी ओइ वर्ग के हाथ मे जेकरा सपना देखबा कऽ मनाही हो । मुदा ‘लैंडिंग ऑफ ड्रीम्‍स’ कऽ मजबूत पायलट सभ अपन-अपन अनुभव कऽ बलें अभियान कें सफल दिशा दैत रंगबिरही बात ,कखनो टोल पड़ोस कखनो धर्म पुराण कखनो शरीर विज्ञान आ यौन विज्ञान सेहो ...... जनी-जातिक मजाक स्‍वप्‍नागमन मे निहित वेदना के कम करैत । आ सपना के छोट छोट हाथ छलै ,छोट छोट पएर ....आंखि कान सब छोट छोट ।आब सपना स्‍वयं अपना लेल सपना देख सकैत छलै ................



मुदा सपना के नून नइ चटाएल गेलै , ई दम्‍पति कनि अलग रहै यैह बात नइ ,बच्‍चा ‘बच्‍चा’ रहै ,बच्‍ची नइ ।आ सपना एखन सीधा-सीधी बाट चलैत रहै ,भूख ,प्‍यास ,गरम-ठंड केवल सपना मे आबै ,आ ईहो कोनो सपना देखए के उमेर छलै...............जे बाप माए क’ सपना सएह बच्‍चा क’ । आ छोट-छोट सपना के पूरा करए लेल माए-बाप रहबे करथिन ,से अपन सुविधा के समेटैत वौआ कऽ आवश्‍यकता पर केंद्रित भऽ गेलै घर ।
एखन तक सपना मे सपना कऽ मथफुटौएल नइ भेलै । से किएक? त’ एखन छोटका सपना के हाथ पएर नइ भेल छलै ,ओकर आंखि नइ फुटलै छल एखन ,तें ओकरा देखाओल गेलै जे वौआ रे सपना एहिना देखबा कऽ चाही आ सपना मे मात्र यैह सब देखबा के चाही ।से तीन –चारि साल तक ककरो ई बात दिमागो मे नइ एलै जे ऐ परिवारक प्रत्‍येक सदस्‍य के कोन मात्रा मे सपना देखबा कऽ चाही ।एखन तक खाए-पीबए ,पहिरनइ-ओढ़नए ,गीत-गानक सीमित बाईस्‍कोप छलै ..... आ ओइ समै मे गाम मे बाईस्‍कोप देखबै वला आबैत छलै आ ओकर चकरका पेटी मे आठ-दस टा खिड़की रहैत छलै आ घूमैत फोटो कऽ साथ गीत सेहो सुनाइत छलै ।फोटो आ गीत मे सामंजस्‍य हेबाक चाही से वौआ के ओइ समै मे नइ बुझेलए । आ वौआ नइ चिन्‍हैत छलै तें एके सिनेमा मे मरलका पृथ्‍वी राजकपूर सँ लऽ के सरलका गोविन्‍द प्रधान तक के फोटो अजीबे आकर्षक लागै ।फोटो कऽ मुद्रा ,जइ मे मारनए-पीटनए ,हँसेनए ,दौड़ेनए तऽ रहबे करए छौड़ा-छौड़ी एक दोसर के पकड़ने सेहो रहै ।आ वौआ कें ओइ समै मे ई बूझऽ आबि गेल छलै जे वौआ अलग होइ छइ आ बुच्‍ची अलग ..............
आ वौआ कऽ जखन नाम लिखेलइ तऽ वौआ एगो झोरा आ एगो बोरा नेने ईसकुल पहुंचि गेलइ । ईसकुलो मे वौआ अप्‍पन बोरा कें छौड़ा सभक बोरा मे सटा के राखए ।ईसकुल कऽ वातावरण वौआ के बेसी नइ नीक लागलै ।ऐ ठाम मरसैब सब हिंदी बाजैत छलखिन आ हाथ मे मोटका सटक्‍की राखैत छलखिन । वौआ के तऽ ईहो पता नइ रहै जे हिंदी कोनो भाषा होइत छैक ,हां ओ सब जे बाजैत छलखिन से गाम मे केओ नइ बाजैत रहै ...........मुदा नइ ऊ जे नीरस भैया आबै छथिन कहियो कहियो गाम ,आ ऊ जे कुमल भैया छथिन्‍ा ,ऊ दूनू गोटे गामो मे हिंदी बजैत छथिन ,तऽ की हिंदी बहरिया भाषा भेलै ,गाम परक नइ रोड परक ,ईसकुलक भाषा ।मुदा ओइ बात सभक लेल ओइ समै कोनो अवकाश नइ छलै ,ई कोनो सपना नइ छलै ,तें झोरा ईसकुल तक राखि बहुतो बच्‍चा मंदिर दिसि निकलि जाइ आ वौओ सएह करए ।मंदिर पर ,पोखरि दिसि ,गाछी मे ओ सभ समान मिलैत छलै ,जेकरा सपना मे देखल आ सोचल जा सकैत छैक । कनैलक फूल ,कक्‍का कऽ ललका लताम ,हुनकर बँसबीट्टी ,उत्‍तरबाय टोलक ईमली आ पवितरा आ डोमा कऽ तार आ तरकुल मे बहुत नशा छलै ।आ ईसकुलक सर्वमान्‍य मुद्रा पिनसिल छलै ,मतलब पिनसिलक कनी टा टुकड़ा मे तार कऽ कनी गो हिस्‍सा मिलबा कऽ गारंटी छलै । ओइ समै मे वौआ के बूझल नइ छलै जे पवितरा दुसाध छैक आ पवितरा के छुइ देला सँ हड्डी तक छुआ जाइत छैक ! ओइ समै ईहो नइ बूझल छलै जे डोमा डोम जाति कऽ बच्‍चा नइ कुम्‍हार छैक आ डोमा नाम राखि एगो जोगटोम कएल गेल रहै ,आ ईसकुल मे डोमा कऽ माए –बाप कें ई साबित करबए मे दम लगब’ पड़लै जे डोमा कऽ असली नाम सुकुमार छैक ।



मुदा वौआ रे हम्‍मर स्थिति किछु अलग रहै ,आइ तक घर मे हमरा केओ नइ सुनलकै हमरा जन्‍मक कहानी ।ने माए ने बाबू ने भाय-बहिन सब ।हम विशुद्ध पुरहिति‍या घर मे जनम लेलियइ ।घरक पूरा अर्थव्‍यवस्‍था बाबू के द्वारा सांझ मे आबइ वला सीदहा पर निर्भर रहै ,तें घरक पूरा राजनीति जजिमनिका पर केंद्रित छलै ।भोर मे बाबू नहा-सोना पूजा कऽ लेला के बाद सीधे भागथिन गयघट्टा ।आ ई गायघाट गाम हुनकर समस्‍त योग्‍यता आ विद्वता कऽ मंच छलै ।ऐ ठाम हुनका लेल कोनो कंपटिशन तऽ नइ रहै ,तें साबित करबा आ नइ करबा सन किछु नइ रहै मुदा ई जे निर्दन्‍द्व संभावना छलै से कतेको संभावना कें नून चटा के मारि देलकए ।एकर धरती एको डेग नइ छलै ने अकाश एको हाथ के तें वामन कें वामने रहि मरबा के छलै ,ऐ ठाम विष्‍णु मात्र सत्‍यनारयण कथे मे रहथिन ,हुनकर दस टा पचास टा रूप कहियो सपना मे आयल ,विराट रूपक बाते छोड़ू । ऐ ठामक विष्‍णु लक्ष्‍मी सहित आबैत रहथिन आ कहियो चौबन्‍नी ,कहियो अठन्‍नी ,कहियो सवा रूपैया आ कहियो ‘बाद मे दऽ देब’ कऽ पुनरूक्ति सुनाबैत गौलोक चलि जाइत छलखिन ........................

क्रमश:

1 comment:

  1. श्रीमान् हम निशांत झाकेँ प्रतिभाशाली बुझैत छलिअन्हि। खास कए अहाँक प्रोत्साहन पाबि ओ आर निफिकिर भए गेल छलाह। मुदा की ई उचित छै जे दोसरकेँ रचना अपना नाम कए क कवि कहाबी। हम अपनेक वाल पर ई नै देबए चाहैत छलहु मुदा चूँकि अहाँ निशांत जीकेँ फैन छिअन्हि तँए हमरा मजबूरीमे ई देबए पड़ि रहल अछि.....



    Nishant Jha
    हर दिन तो नहीं बाग़ , बहारों का ठिकाना !
    गुलदान को कागज़ के गुलों से भी सजाना !

    मुश्किल है चिराग़ों की तरह खुद को जलाना !
    भटके हुए राही को डगर उसकी दिखाना !

    क्या खेल है फेहरिस्त गुनाहों की मिटाना ?
    जन्नत के तलबगार का गंगा में नहाना !

    तू खैर ! मुसाफिर की तरह आ ! मगर आना !
    इक शाम मेरे क्हानाह ऐ दिल में भी बिताना !

    इक मैं हूँ जो गाता हूँ वो ही राग पुराना ,
    इक उनका रिवाजों की तरह मुझ को भुलाना!

    दर्द आह ओ फुगाँ बन के हालाक तक भी न आया !
    क्या कीजे न आया जो हमें अश्क बहाना !

    अफ़सोस कह अब यह भी रिवायत नहीं होगी ,
    खुशियों में परोसी का परोसी को बुलाना !

    सुलझी है , न यह जीस्त की सुलझे गी पहेली !
    लोगों ने तमाम उम्र गवा दी तो यह जाना !

    बदला ही नहीं हाल ऐ ज़माना ओ जिगर , "निशांत "
    फिर कैसे नयी बात , नए शेर सुनाना ? — with Chitranshu Karna and 45 others.

    Like · · Share · 26 minutes ago ·
    Abhishek Singh Deepak, Shailesh Jha Bibas, Amit Mishra and 4 others like this.
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    Mala Choudhary woh woh !!!
    20 minutes ago · Like · 1

    Nishant Jha behad sukriyaah....Mala Choudhary jee
    17 minutes ago · Like

    Amit Mishra mast
    17 minutes ago · Like

    Nishant Jha bahoot bahoot dhanyvad Amit jee
    16 minutes ago · Like

    Ashish Anchinhar मुझे होता था कि निशांत जी बहुत ही प्रतिभाशाली है। बहुत ही अच्छी गजल लिखते हैं मगर आज ये राज खुला कि निशांत जी साहित्यिक चोर हैं। वैसे हमारे रविभूषण पाठक जी निशांत जीके बहुत बड़े फैन है। उपर जो गजल निशांत जी ने अपनी गजल कह कर दी है ( मकता मे निशांत) यह गजल धीरज आमेटा धीर का है। कविता कोष का लिंक दे रहा हूँ।http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B9%E0%A4%B0_%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A8_%E0%A4%A4%E0%A5%8B_%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%BC%2C_%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%A0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%21_%2F_%E0%A4%A7%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%9C_%E0%A4%86%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A4%BE_%E2%80%98%E0%A4%A7%E0%A5%80%E0%A4%B0%E2%80%99.

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