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Wednesday 28 March 2012

काकी आ भैया

जखन काकीक छोटका बेटा विनोद बाबा के डांटइ ,तखन काकी के बड हँसी लागेन ।डांटइ क मूल वाक्‍य रहइ 'बूढ़बा भोरे भोर राम राम गेनइ शुरू क' दैत छइ ,सूत नइ दैत अछि ,केवल गिलनइ जानैत अछि ,हरदम पादैत रहैत अछि ,घर मे नइ रह' देत ,आदि ,आदि ।'जखन विनोदक कनिया एलइ आ बी0ए0 क परीक्षा क' तैयारी शुरू केलकइ ,तखन यदि कहियो काकी भनसाघर भेजभिन त' विनोद लड़बा क' लेल तैयार भ' जाइ ।

'गे माए तू जे एकरा भनसिया बनबै छहीं ,से तोरा पता छओ
ई कोन घर से आइल छैक ,एकर बी0ए0 क परीक्षा छैक आ तू भात दालि के फेर मे पड़ल छही ,एखन तोहर उमेर कोनो बैसइ वला छओ' ,आदि ,आदि ।

आब काकी बूझइ छथिन्‍ह जे विनोदबा क बातचित ठीक नइ ।दुआरिये दुआरिए परचारैत काना फूसी करैत दिन बीत रहल छन्हि ,मुदा काल केकरा मुटठी मे एलइ ,जे अहांक मुट्ठी मे आएत ?

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