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Wednesday 28 March 2012

होली आ गारि

होली जत्‍ते प्राचीन पर्व अछि ,तइ सँ कम प्राचीन 'गारि' नइ ,ओना दूनू दुइए अक्षरक मुदा अतीव आकर्षण सँ युक्‍त ।हिरणकश्‍यप बला कथा त' अत्‍यंत प्राचीन अछिए ,मुदा प्राचीन साहित्‍य मे गारि सेहो अपन बहुरंगी उपस्थिति क' साथ अछि ।ऋग्‍वैदिक साहित्‍य मे होली नइ अछि ,मुदा गारि अछि ।देवता लोकनि पृथक संस्‍कार सँ युक्‍त व्‍यक्ति के 'असुर' कहने छथिन्‍ह ।ओना ओइ ठाम असुर शब्‍द पूरा पूरा गारि नइ बनल छलइ ।ओइ समयक गारि शहरी सभ्‍यता आ कृषिक समाजक विशेषता मे रहए ।वैदिक लोकनि साहित्‍यक तमाम विशेषता के धारण करितहु तत्‍कालीन विकसित सभ्‍यता कें स्‍वीकार नइ क' सकलनि आ हड़प्‍पा वासीक घर ,किला आ नहर के वितृष्‍णा सँ देखलाह ।मतलब गारि सेहो विकसित होइत छैक ।ओइ समयक अतिथि लोकनि के आदर पूर्वक गौमांस देल जाइत छल ,मुदा आइ यदि ककरो देल जाए त' हुनकर धर्मभ्रष्‍ट हेतेन आ संबंधक समाप्ति अलगे ।वैदिक काल मे विंध्‍याचल सँ दक्षिण रहए वला लोक विशेष सम्‍मानक अधिकारी नइ छलाह ,मतलब ई जे तथाकथित सभ्‍यता गांगेय प्रदेश मात्रे मे मानल जाइत छलै ,आ आन लोक सब असभ्‍य मानल जाइत छलाह ।

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