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Thursday 8 December 2011

मनोज भाय के चिट्ठी

की भाय आबो राजदूत उड़बै छियइ सौ पर
की भाय आबो हंसइ छियइ ओहिना हहा के
की भाय आबो देखइ छियइ रौद बरखा के ओहिना प्रेम सँ
की भाय आबो कचकूह आम देखि पानि आबैत अछि मुंह मे
अपन गाछी आ दोसरक आम एखनो नीक लागैत अछि
की भाय जालंधरो करियने जँका छैक
कोना साधए छियइ उदयनाचार्य आ जालंधरनाथ के एक साथ
नव्‍यन्‍याय आ नाथपंथक सूत्र कत' मिलैत अछि
या हमरे जँका उलझैत देरी छोडि़छाडि़ निवृत्‍त भ' जाइ छी
सही कहलहुँ भाइ
विदेहो त' हमरे छथि
आ हम पूरा दुनिया मे पसरलाक बादो ओतबे लोकल छी
सक्‍कत माटि खींचैत अछि हमरा
आ दरिद्रछिम्‍मरि रहितहुं ओतबे सामंतवादी छी
संग मे अछिए की ,जे दुनिया छीनत
तैयो पकड़ने छी अपन दूबि के बकुट्टा मे
छोड़ू ई सब
 की  ओतहु एहिना गामघर गीतनाद धूपदीप
यादि आबै छी हम ,गाम आ समाजक लोक
बड़ी ,‍सिंगराही ,नबकी  नौला पोखरि
बडि़याही ,बलहा घाट
ककरहा ,ठकुरनीया ,महिसर बाध
कखनो सुनइ छी प्राती ,नचारी ,समदओन
चाखै छी नबका चूड़ा पर छलियैल पूष मासक टटका दही
हंसए क बात पर हंसइ छी
आ कानइ क मौका पर
गिरैत अछि नोर
या आहूं के मारि देलक समय
जेना हमरा मारलक सम्‍हरल डांग सँ

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