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Thursday, 20 October 2011

हम पुरहितिया


इजोत सँ अन्‍हारक अनंत यात्रा
हँ हँ पूर्णिमा से अमावस्‍या बूझू
पतरा देखैत दिन गुनैत
पतिया कटैत
सब शुभाशुभ जेना हमरे पाछॉ लागल अछि
ठीके चिन्‍हलउॅ
हम छी मिथिलाक पुरहितिया बाभन ।
सुरजो सँ पहिले शहरियो सँ पहिले
जोतुआ बड़द बहलमानो सँ पहिले
मियॉं जीक मुरगाके बॉगो सँ पहिले
सबसँ पहिले उठिके
पूज' चाहैत छी
अपन कम
दोसर के भगवान के बेशी
पाप पुण्‍य व्रत विधि
सब दोसरे लेल
मिलबो करैछ दोसरे कें
आ हम नित्‍य नित्‍य  घुमि रहल छी
कखनो पैदल कखनो साइकिल
हमरो दुनिया खूब जमल अछि
जजिमनिका क ऐ तीन गाम सँ
प्रति सॉझ हम आबइ छी
पाव भरि गहूम आसेर मकइ
किलो धान क पोटरी ल' के
संगहिसंग एक मटकूरी दही लेने
पंडिताइन खोलइ छथिन
ई पोटरी
जेना रानी खोलइ
पड़ोसी रानीक भेजल उपहार ।
वा कुबेरक कनिया जेना देखथि 
घरवला क कृतकृत्‍य ।
आ कहियो राति बारहो एक
जिन्‍न सबसँ बतियाइत 
ब्रह्मराक्षस कें चून तमाकूल दैत 
चुड़ैल सबके धकियाबैत 
पछुआबैत ब्रह्मडाकिनी के 
सरियाबैत अपन मटकूरी ।
आ वौआ बड कठिन छइ 
जजिमानी बचेनइ 
कम देबहो तैयो 
रूसनइ मना छइ 
बेशी देबहो तैयो 
प्रशंसा नइ सुनबहक 
गमि लेबहक तों सब 
सब बडा बढि़या 
खूब नीक 
चलि रहल छइ 
भगवानक माया छइ ।
रवि भूषण पाठक

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