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Sunday 16 October 2011

चालीसक बात

तेरह साल पहिलेक बात छइ
 ओ सब
 ओ सब बात
 आब त हमहु चालीसक लगभगाएल छी
 तोहूं जरूर चौंतीस पैंतीसक भ गेल हेबें
 कहां पूछि सकलियओ तोरा सं कोनो बात
 आब त प्रश्‍नो सब बिसरि गेलहुं
 जे यादि केने छलियओ तोरा सं पूछए लेल
 हवा क साथ दइ वला केश हमर
 किछु उडि़ गेल
 किछु पाकिके डरा रहल अछि
 हंसीक साथ निकलइ वला धवल दांतक पांति
 किछु टुटि गेल
 किछु हिल रहल अछि
 तहिना गोरनार चमरो ई
 भेल कारी बदरंग
 तू केहन भ' गेलें
 कतओ देखबओ
 त कोना चिन्‍हबओ
 ई कहनए त बिसरिये गेलियओ
 हमरा दू टा बच्‍चो अछि
 तोरा कएक टा छओ
 आ तों कत' रहैत छें
 की तूहू हमरे जँका नौकरी करैत बनरा गेलें
 आबो सुनइ छें राति के रेडियो
 आ लिखइ छें पोस्‍टकार्ड
 की तोरो कोनो पता नइ छओ
 ई निरर्थक गद्य बस तोरे लेल
 तूही बूझबीही छंदक भयानक दुनिया मे
 तुकहीन पद मे छुपल
 एकटा नीरव एकांत अर्थ
(रवि भूषण पाठक)

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