कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्र निर्णय लेलखिन
बहुत भेलै देवभाषा ,आब केवल भाखा ,केवल भाखा
देवलोक मे नइ भेलै जय-जयकार ऐ बातक
पार्वतीनंदन मुसकिएलखिन मुदा
देवी भारती सेहो सकारैत देखलखिन धरती दिस
निर्णयक बाद तियागैैत राजपद ,राजभोग आ राजवस्त्र
चलि देलखिन गाम दिस एकटा विस्टी पहिन
आ देवदूत सभ लागि गेलाा युुक्ति मे
कि कोहुना तपस्याच्युत होथि मुनिवर
सभसँ पहिले रस्ता मे तीन सहस्र लहरचुट्टा
काटैत खून बहबैत ओध-बाध करैत
कि मुनिवर करौथ पुकार देवभाषा मे
एकक्षण रूकैत मुनिवर आगू बढ़ला
फेर तीन टा उल्लू
मुंह दूसैत हेमचंद्र कें
कि शायत ई भागतौ दिल्ली दरबार
भाखा बस एक्कर टीटकार
कनेक विचलित होइत
रूकलखिन नइ मुनिवर
आगू तीनटा कारकौआ
रे हेमचंद्र झरकौआ
ई कोन नाटक वौआ
केहन षड्यंत्रक पौआ
फेर तीन सहस्र डाइन-जोगिन
नाच-गान ,जोग-टोम
तीन बाभन तीन डोम
संसृति-संस्कृतिक
करिते होम
आबें रे जगदपापी
आबें शंकरक विलोम
रूकि गेलखिन हेमचंद्र
आब नेे संस्कृतक वैभव
ने भाखाक पराभव
आब किछु नै
तीन बरखक बाद
फेर वैह भाखा आ भाखा
बढि़ चलला हेमचंद्र
अपन गाम दिस
आब बस दस कोस
आगू संस्कृत पंडितक दरबार
बात-बात पर शास्त्रार्थ
आ विद्याक दोकानी कारोबार
त' कोन अपभ्रंश मे लिखथिन हेमचंद्र
जत्ते दिशा ओत्ते अपभ्रंश
ने कुनो आचार्य
ने कुनो व्याकरण
त' हेमचंद्र अकेले की सब क' लेथिन
आ देखै छियेन जे ओ की करै छथि
पंडित सभ आंखि मूनि यादि केलखिन
रट्टल नापल जोखल सूत्र सभ
आ पाणिनि कें भाला पर
भरत कें बरछा पर राखि
तीर पर वात्स्यायन कें बैसा
आनंदवर्द्धन कें धनुष मे समाहित करैत
प्रतीक्षा कर' लागलखिन
किछु बाजथि हेमचंद्र आब
बाजि कें त' देखथि
आ कल्पने मे चल' लागलै
काव्य आ तर्कक तीर
हेमचंद्र खूब सुस्ताक फेर एकटा निर्णय लेलखिन
ओना भाखा मे नइ लिखबाक शताधिक कारण छलै
आ सर्वोपरि कि लिखी त' केकरा लेल लिखी
आ भाखा कें छोड़ी त' कोन मूरखहबाक भरोसे
तें देवभाषा चलै त' चलैत रहै
मुदा भाखाक नाव जरूर चलै
जन-जन केर काठक सहारे
कविजनक लग्गा आ करूआरि सँ
आ भाखाक मूनेमून जयजयकार करैत
ध्यानस्थ भ' गेलखिन मुनिवर हेमचंद्र
बहुत भेलै देवभाषा ,आब केवल भाखा ,केवल भाखा
देवलोक मे नइ भेलै जय-जयकार ऐ बातक
पार्वतीनंदन मुसकिएलखिन मुदा
देवी भारती सेहो सकारैत देखलखिन धरती दिस
निर्णयक बाद तियागैैत राजपद ,राजभोग आ राजवस्त्र
चलि देलखिन गाम दिस एकटा विस्टी पहिन
आ देवदूत सभ लागि गेलाा युुक्ति मे
कि कोहुना तपस्याच्युत होथि मुनिवर
सभसँ पहिले रस्ता मे तीन सहस्र लहरचुट्टा
काटैत खून बहबैत ओध-बाध करैत
कि मुनिवर करौथ पुकार देवभाषा मे
एकक्षण रूकैत मुनिवर आगू बढ़ला
फेर तीन टा उल्लू
मुंह दूसैत हेमचंद्र कें
कि शायत ई भागतौ दिल्ली दरबार
भाखा बस एक्कर टीटकार
कनेक विचलित होइत
रूकलखिन नइ मुनिवर
आगू तीनटा कारकौआ
रे हेमचंद्र झरकौआ
ई कोन नाटक वौआ
केहन षड्यंत्रक पौआ
फेर तीन सहस्र डाइन-जोगिन
नाच-गान ,जोग-टोम
तीन बाभन तीन डोम
संसृति-संस्कृतिक
करिते होम
आबें रे जगदपापी
आबें शंकरक विलोम
रूकि गेलखिन हेमचंद्र
आब नेे संस्कृतक वैभव
ने भाखाक पराभव
आब किछु नै
तीन बरखक बाद
फेर वैह भाखा आ भाखा
बढि़ चलला हेमचंद्र
अपन गाम दिस
आब बस दस कोस
आगू संस्कृत पंडितक दरबार
बात-बात पर शास्त्रार्थ
आ विद्याक दोकानी कारोबार
त' कोन अपभ्रंश मे लिखथिन हेमचंद्र
जत्ते दिशा ओत्ते अपभ्रंश
ने कुनो आचार्य
ने कुनो व्याकरण
त' हेमचंद्र अकेले की सब क' लेथिन
आ देखै छियेन जे ओ की करै छथि
पंडित सभ आंखि मूनि यादि केलखिन
रट्टल नापल जोखल सूत्र सभ
आ पाणिनि कें भाला पर
भरत कें बरछा पर राखि
तीर पर वात्स्यायन कें बैसा
आनंदवर्द्धन कें धनुष मे समाहित करैत
प्रतीक्षा कर' लागलखिन
किछु बाजथि हेमचंद्र आब
बाजि कें त' देखथि
आ कल्पने मे चल' लागलै
काव्य आ तर्कक तीर
हेमचंद्र खूब सुस्ताक फेर एकटा निर्णय लेलखिन
ओना भाखा मे नइ लिखबाक शताधिक कारण छलै
आ सर्वोपरि कि लिखी त' केकरा लेल लिखी
आ भाखा कें छोड़ी त' कोन मूरखहबाक भरोसे
तें देवभाषा चलै त' चलैत रहै
मुदा भाखाक नाव जरूर चलै
जन-जन केर काठक सहारे
कविजनक लग्गा आ करूआरि सँ
आ भाखाक मूनेमून जयजयकार करैत
ध्यानस्थ भ' गेलखिन मुनिवर हेमचंद्र
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