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Monday 15 August 2016

प्रियदर्शिनी जी

प्रियदर्शिनी जी ,'नवकविता' मे नव भेनए आ कविता सेहो भेनए अभीष्‍ठ ।अहां कविता मे सब तरहक सदिच्‍छा आ शुभकामना व्‍यक्‍त करबाक लेल स्‍वतंत्र छी ,मुदा शब्‍द आ शब्‍दक्रम अहांक हेबाक चाही ।ऐ तरहक अतिलोकप्रिय शब्‍दावलीक सहयोग सँ ई मौलिकता नइ आबैत छैक-
बदलि सकैत छी नभ आओर धरा कें, विश्वक मानचित्र मे
हम छी त' युग अछि आओर इतिहास जग मे
हम करैत छी आह्वान सभ सं कल्पनाक संग मे
विश्वक एक कोटि एक जाति एक रूप मे
ई मंगलकामना इतिहास आ कविता मे अहां अपन शब्‍दक्रमक संग व्‍यक्‍त क' सकैत छियैक ,कोनो आन व्‍यक्तिक शब्‍द क्रम सँ नइ ,समाज मे छिडि़याएल ,बहारल विभिन्‍न विचार मात्र कें झारू सँ समेटला सँ नइ ।
तहिना अहांक नव व्‍यक्तित्‍वक परिचय अहांक व्‍यक्‍त बिंब आ प्रतीके सँ होयत ।बिंब आ प्रतीक जत्‍ते टटका ,सूक्ष्‍म आ विषय सँ संबंधित हेतै ,तत्‍ते कविता कविता जँका हेतै ---
जानकी, मंदोदरी आ उर्मिलाक त्याग सन
माँ, बेटी, बहिन, पत्नी आ प्रेमिकाक स्वाभाव सन
जानकी ,मंदोदरी इतिहासक बहुप्रयुक्‍त पात्र ,प्रतीक ।ऐ प्रतीक कें मांजिए के , प्रतीक क' संग प्रयोग क' के अहां अपना सकैत छियैक ,अन्‍यथा ई सामान्‍य प्रभाव उत्‍पन्‍न करत नइ कि वयंजनात्‍मक ।
फेसबुक पर दू सौ लाईक मिललाक बाद ई बात ,सुझाव नीक नइ लागैत छैक ,मुदा आर नीक कविताक संभावनाक लेल शुभकामनाक संग

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