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Tuesday 15 March 2016

वाह रे झा जी(आफिस5)

आ जे काज मिश्रा जी नइ केलखिन से झा जी क' देलखिन ।वाह रे झाजी ,एकदम नगाड़ा बजा देलियइ आ सिंह कैम्‍प मे एकदम नैराश्‍यक स्थिति ।मिश्राजी जे बाजियो के नइ केलखिन ,से झाजी बिन बाजने सुतारि देलखिन ।एकरा कहै छै आदमी क' मतलब आदमी ,मुंहक मतलब मुंह ,हाथक मतलब हाथ आ जे कैह देलियौ से क' देलियौ ।ई भेलै ने ....आ ईहो देखियौ जे आदमी लोकल नइ ,पचास किलोमीटर दूर दरभंगा के आ मधुबनीक किला पर फहिरा देलकै धूजा ।आ पूरा दरभंगामंडली पुलकित ,पुलकित ब्राह्मण वर्ग आ आशान्वित कलक्‍टरी क' खबरी-छिनरी सब ।आ रंग-रंगक खिस्‍सा कि झाजी कैह देलखिन 'केवल अाहीं टा कमायब' कि 'केवल आहींटा क' घर-परिवार' कि 'केवल आहीं के गानै मे मून लागैत अछि ' आ पता नइ की झाजी कहलखिन आ की सिंहजी सुनलखिन ।पता नइ दूनू मे की बात भेलै ,ओना दूनू आदमी अपन-अपन कैम्‍प बनेबाक प्रयास जरूर केलखिन ,मुदा बहुत सफलता नइ भेलेन ।जे सीरियस आदमी सब रहथिन ,ऊ परिणामक साफ-साफ अनुमान केलखिन आ बहुत दूर नजरि फेकैत साफ-साफ देखलकिखन कि दूनू मे संघर्षक कुनो संभावना नइ आ स्‍पष्‍ट बूझल गेलै कि किमहरो गेनै मतलब अपन पहचान डूबेनए आ एहन स्थिति मे गुटनिरपेक्षता सदैव काम्‍य होइत छैक आ वाह रे कलक्‍टरीक बुधियार इंस्‍पेक्‍टर आ कर्मचारी वर्ग ओ किमहरो नइ गेलै ,ओ किछुओ नइ सुनलकै ,ओ किछु नइ निर्णय लेलकै ।ओ सुनितो आगू निकलि गेलै...........


                                                          आ बहुत जल्‍दी सिंह-झा संधिक अघोषित परिणामक लिस्‍ट बजार मे बिकाइत भेटलै ।तू ले कलुआही आ हम लइ छी जयनगर ,दूनू आदमी भरि मून चर ।अपन-अपन पेट आ अपन-अपन जीभक' रक्षा कर ।तू बाभन सब के पोट हम राजपूत के पोटैत छी ।बहुत जल्‍दी खुलबाक आवश्‍यकता नइ ,बहुत दोस्‍ती देखेबाक जरूरी नइ ,बहुत भेंट करबाक कोन प्रयोजन ।से अपना-अपना खुट्टा पर टीकल रह , अपना खुट्टा पर सँ खूब लथाडि़ मार ,खूब सिंह भांज ।एना के  सिंह भांज कि मालिको (हाकिम)तक डराइ ।आ यैह भेलै कि हाकिम तक डराइत रहलखिन कि यदि एकर सबक अधिकारक्षेत्र मे किछु परिवर्तन करबै त' कत्‍तओ सँ फोन आबि जायत ।

                                 आ अहां झाजी सँ भेंट करियौ ,त' ओ आनी-मूनी स्‍टायल मे भांजता 'सिंह जी देखेबो केला' ।
अहां कहबै 'नइ' तखन फेर हफियाइत पूछता 'ओमहर गेल नइ रहियइ' ।
अहां यदि फेर कैह देलियइ 'नइ' तखन ओ आश्‍वस्‍त होइत कहता 'हां ठीके अछि अप्‍पन काज सँ मतलब रखबाक चाही ।'
मतलब झाजीक साफ छैक 'अहां सब सिंहजी सँ नइ भेंट करियौ ,एकांत मे त' कखनो नइ ।आ नइ भेंट करबै त' बातचित नइ हैत ,बातचित नइ करबै तखन सेटिंग-गेटिंग नइ हैत आ ई सब झाजीक लेल खुशखबरी आ भेंट करबै त' झाजी क' एकटा स्‍टार कमि जेतै । भेंट करबै त' सिंह-झा -पालिटिक्‍स केर गोपनीयता संकट मे पड़तै ,ऐ राजनीति क' बौद्धिक पेटेंट खतम भ' जेतै ।' जेना सिंह जी तेहने झाजी जाति-जिला फैक्‍टरक प्रयोग करैत छथिन ,तें दूनू गोटेक बासन आ औजार अलग-अलग ।झाजी सेहो सिंहजी क' विरोध ऐ अंदाज मे करता कि समस्‍त ब्राह्मणक लेल सिंहजीक रहनै खतरनाक आ झाजी अपन किछु चलाकी ,किछु क्षुद्रता ,किछु बाताबाती कें एना प्रस्‍तुत करैत छथिन जेना ब्राह्मण जाति ,दरभंगा जिला ,बहेड़ी प्रखंड आ करेह नदीक उद्धार आब जल्दिए भ' जेतै ।बस अहां सब झाजी जिंदाबाद करैत रहियौ ।

                                                              झाजी अपना आप के बड़का विद्वान मानैत छथिन ।आ अपना सँ नमहर अपना भाय कें आ भाय सँ किछु बेशी अपना बाबा कें ।भाय एकटा विश्‍वविद्यालय मे प्रोफेसर छ‍थिन आ बाबा स्‍वतंत्रता सेनानी रहथिन ।बात कत्‍तौ सॅं उठलै ,आबि के गिरतै भैया पर ।वेद आ कुरानक लाईन सँ बात शुरू भेल होय ,मुदा खतम हेतै भैया झा पर ।आ ई खतम होय के पावर भैया झा के लिखल समान मे होय भाय नइ होय छोटका झा के ठोरठोरई मे जरूर छैक ।आ सिंह जी के कलुआही लूटबाक छेन ,से ओ बिना शर्त झाजीक बौद्धिकताक समर्थन करैत छथिन ।यदि केओ झाजीक बौद्धिकता पर निशान लगाओत त' सिंह जी ओकर भक्‍शी झोंकि देथिन ।सिंह जी चाहैत छथिन कि झाजी बौद्धिक बनबाक निशां मे मधुबनी छोडि़ के दरभंगा चलि जाए ,मुदा हाय रे सिंह जी झाजी एकदमे उनैस नइ छथिन ,हुनका कवि नइ बनबा के ,हुनका विद्वान नइ बनबा के ,हुनका अजर-अमर नइ बनबा के ,हुनका कालजयी नइ बनबा के ,आ यदि कालजयी के मतलब किछु होयत होए त' ऊ दू-चारि बिगहा अरजि के ,पटना-दरभंगा मे एक-दूटा घर बनाके हुुअ' चाहैत छ‍थिन ।कालजयी मतलब ई नइ कि अहां के एक-दूटा किताब छपि गेल आ दू-चारि टा लोक अहां पर लिख देलक ।कालजयी मतलब ई जे तीनमहला क' ऊपरका महल पर संगमरमर सँ लिखल फलां झा तीन-चारि पीरही तक जगजगार होयत रहै ।

                                                    आ ऐ ठाम सब अपना-अपना हिसाबें कालजयी भ' रहल अछि । सिंहजी क' दू टा प्‍लॉट पटना मे एकटा दरभंगा मे आ एकटा समस्‍तीपुर मे ।मधुबनी मे जइ मकान मे रहि रहल छथि से सारि क'नाम सँ ।दुनिया सारि आ सारिक प्‍लॉट ...दूनू के सिंहजीक मानैत अछि ,मुदा सिंहजी सन ईज्‍जतदार आदमी ....च्‍चचच..झाजी एकटा प्‍लॉट दरभंगा मे आ एकटा पटना मे आ जल्दिए सिंहजी कें पाछू क' देथिन ।नेबोलाल पटने मे नइ दिल्‍लीयो मे एकटा मकान खरीदने अछि ,आ ओकरा सन भाग्‍य आ बहीन त' भगवान सबके देथिन ।बहिनोय एक्‍साईज विभाग क' बड़का अधिकारी रहथिन आ जीता-जी पचास-साठि करोड़ कमा गेलखिन ।घर-परिवार,स'र-संबंधी ,सबहक नाम सँ बेेनामी संपत्ति ,आ भगवानक लीला ई कि एकदिन दूनू प्राणी मे झगड़ा भेलै आ दूनू प्राणी गोली सँ आत्‍महत्‍या क' लेलखिन ।आ सब स'र संबंधी चुप्‍पी मारि गेलै ,केओ नइ कहलकै कि फलां जी हमरा नामे ई खरीदने रहला ।आ रंजन जी जइ दूमहला कें अपन बाबूजी क' नाम सँ बताबै छथिन ,तइ पर रंजन जी कें होमलोन मिलल छैक ।आ ई सब खिस्‍सा गोपनीय छैक ,तावते तक जावत तक कि दोसर के पता नइ चलैत छैक ,आ फेर दोसर सँ तेसर आ तेसर सँ चारिम ।आ ई सब खिस्‍सा तावत तक गोपनीय रहतै ,जावत तक सिंह डरेतै झा से आ झा डरेतै नेबोलाल से ।आ यदि एक्‍को टा मटकूरी फूटलै ,तखन सब फूटतै ....

                                    आब त' नबका-नबका अधिकारी सब सेहो आबि रहल अछि जिला मे ।अइ मे एकटा सिंहजी क' परिचित छथिन ,ईहो सिंह ,हिनका जूनियर सिंहजी कहल जाए ।जेना सिंह जे बाजै मे भटभटिया ,तहिना जूनियर एकदम चुप्‍पा ।पहिले सब के बूझेलै जे जूनियर मितभाषी ,संकोची छैक ,बाद मे पता चललै कि जूनियर मुंह मे पान,तमाकू आ सुपारी ठूसने रहै छैक ,मुह मे ,गाल मे ,ठोर मे  ।बेशीकाल ईशारे से काज चलेला ,बेशी जरूरी होए वा नमहर एमाउंट होए । बेशी काल मुंह खोलै छथिन -तीस ,चालीस या थर्टी , फोर्टी कहबा क' लेल ।आ कखनो कखनो खोलै छथिन नमहरका मुंह -पचास ,प चा स ।जल्दिए जिला बूझि गेलै कि जूनियर किछु मायने मे सीनियरो क' कक्‍का ।जूनियर रहै सिंहजी क' परिचित ,तें भैया...भैया....कहिते रहै हरदम आ टेक्‍नीक मे सेहो भैया के नकल करैत ,मुदा ऐ अधपक्‍कू नकल पर हँसबा के नइ शांति सँ बूझबाक जरूरी छैक ।


                                                                 जूनियर क' साथे एकटा आर चुप्‍पा आयल छैक ,एकर चुप्‍पी कनेक अभौतिक कनेक भौतिक छैक ।लेबा के, खूब लेबा के ,अहगर लेबाके ,बेर-बेर लेबाके ईच्‍छा एकरा मोन मे जागै छैक ,मुदा हाय रे ध्‍वनि तंत्र ,हाय रे बाजै वला सिस्‍टम सब ।मोन मे रहै छैक किछुआर ,निकलै छैक किछु आर ।मोन मे आबै छैक जल्‍दी लाऊ आ मुंह से निकलै छैक राखू ने बादे मे देब ।आ कखनो काल त' ईहो नइ निकलै छैक ।एकर ऊलझन सबसँ क्‍लासिक ।पइसा के सबसे बेशी जरूरी ,मुदा भ्रष्‍टाचारविरोधी आंदोलन दिस उन्‍मुखता ।अपनो हाल-चाल उजरल-उपटल ,मुदा दोशर कें फैदा पहुंचेबाक नीयत ,गरीब कें कष्‍ट नइ देबाक आदर्श ।वौआ दूनू चीज कोना साथ-साथ ल' के चलबहीं ।धनी-मनी सब देतौ नइ किछु आ गरीबहा के संग मे छइ नइ किछु ,त' बाज ने कोना काज चलतै ।जे देनिहार छैक ऊ नेता-मंत्री सब सँ फोन करा के काज करा लेतौ आ जे नइ देनिहार छैक से भुक्‍खल जिन्‍न जँका आफिसक बाउंडरी मे हँफिया रहल छैक ।ऊ बस हाथ-पैर जोड़तौ ,ऊ बस आर्शीवाद देतौ ,आ ऊ आर्शीवादो नइ देतौ ।आर्शीवाद देबाक प्रक्रिया मे एकटा हूनर छैक आ ई एत्‍ते गरीब ,एत्‍ते हियाक हारल छैक जे आर्शीवादो देबाक हूब एकरा देह मे नइ छैक ।आब बाज ने की करबीहीं ।
नया किछु नइ होय वला ,या त' बनही सिंहजी ,झाजी ,मिश्रा जी या फेर नेबोलाल ।सफलताक यैह सब किछु मॉडल छैक ।

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