Followers

Sunday 4 May 2014

गजल- गाममे साँझ नै पड़ल

2.41
सुनहट फेर सगरो गाममे साँझ नै पड़ल
शाइत ताग नेहक टूटि कऽ स्वर्ग धरि चलल

मूरत माँटि सन बनि गेल माँउसक गरम तन
ने किछु फूटि रहल स्वर, ने स्वर सुनि रहल

चुप्पी लाधि बैसल अछि विपिनमे अवोध पशु
कोनो जालमे हिरणक सकल कुटुम अछि फसल

चमचम चीज जे बेसी पलटि दैछ किरणकेँ
कनिञे चमक कम राखू तँ जिनगी बनत सरल

ममता देब कतबो ढारि फइदा कहाँ "अमित"
डिबिया काल्हि ने परसू मिझा रहत, अछि बुझल

2221-2221-2212-12
अमित मिश्र

No comments:

Post a Comment