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Tuesday 29 April 2014

नवकनियां अनचोके मे मसोमात भ' गेलै आ ई की कहि देलियै मसोमातो केओ दिन गुनाके होइ छैक ।आ कनियां एखन काननै की ढ़ंग सँ हँसनैओ नइ सीखने छलखिन ।काननै की सधारन बात छैक ,पहिले बूझियौ त' की भेल आ एखन दसो बरखक त' नइ रहै रूपाली ।ओकरा की पता छलै जे की भेलै आ की नइ भेलै ओ बस अवाके रहै ।दोसर के कानैत देखै त' कनेक कानै आ फेर चुप भ' जाए ।एत्‍ते लोक के आंगन मे देखि के कखनो घर जाए कखनो आंगन ।ईहो पता नइ रहै कि कानियै त'कत्‍ते जोर सँ कानियै ।तावते तीनू भाई दनादन पहुंचलै आ मैझला भाय डेनियाबैत कनियां के घर ल' आनलकै ।
'हगै ई काननै -पीटनै बंद कर ।आब भरि जिनगी कानैए के छओ ,पहिले ई बाज जे जमीनक कागज कत्‍त' छओ ।रूपाली अपन लोर पोछैत चाभीक गुच्‍छा फेक देलकै ।ओमहर मरैक हो-हल्‍ला आ मैझला जल्‍दी-जल्‍दी सब चाभी के टोहियेनए शुरू केलकै ।एगो चाभी लागलै आ मैझला खटाक सँ केवार खोललकै ,निचलका खाना मे कागज आ फाईल सब रहै ।एखन समै नइ छलै कि कागजक पोटरी सब मे खोजल जाए जमीनक कागज ।तें मैंझला सब कागज के एकटा झोरा मे राखैत आ झोरा के कसियाठि के पकड़ैत पछुलका घर बाटे साइकिल ल' पड़ा गेला ।
(रूपाली)

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