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Tuesday 29 April 2014

(ररबोली)


 हयौ हाकिम वैह साहित्‍य जीयत रहतै ,जे स्‍वाभाविक खून,पानि आ हवा सँ बहरायल हो ,जइ साहित्‍य के नेनपन मे जनमघूटी ,जुआनी मे शिलाजीत आ बुरहारी मे च्‍यवनप्राश चाही ,ओ कहिया तक आ कोन बल पर ऐ नितपरिवर्तित दुनिया सँ कदमताल मिलाओत
(ररबोली)

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