मैथिली साहित्य आ मिथिलाक संस्कृति पर विमर्शक एकटा मंच ।प्राचीन गौरवशाली परंपराक पहचान आ नवीन प्रगतिशील मूल्यक निर्माण लेल एकटा लघु प्रयास ।
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Tuesday, 29 April 2014
(ररबोली)
हयौ हाकिम वैह साहित्य जीयत रहतै ,जे स्वाभाविक खून,पानि आ हवा सँ बहरायल हो ,जइ साहित्य के नेनपन मे जनमघूटी ,जुआनी मे शिलाजीत आ बुरहारी मे च्यवनप्राश चाही ,ओ कहिया तक आ कोन बल पर ऐ नितपरिवर्तित दुनिया सँ कदमताल मिलाओत (ररबोली)
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