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Thursday 19 December 2013

दीपाली 3

                     दीपालीक एगो मौसी रहथिन ,अपन नइ दियाद-फरीक वला ।जखन दीपाली सात-आठ सालक रहथिन तखने सँ हुनकर दशाधिक चित्र दिमाग मे आबैत रहैन ।सब चित्र मे मौसीक हँसैत-मुसकियाइत ....खूब गोर,नार समतोल बान्‍ह ।मद्धिम अवाज ,धीर-गंभीर चालि ,मुदा हाथ्‍ा मे चु़डी नइ ,माथ मे सिंदुर नइ ,साड़ी मे लहक-चहक नइ ,माथ मे बेशी तेल नइ ,मुंह मे पाउडर-स्‍नो नइ ।ऐ बातक पता बाद मे चललै कि मौसी बाल-विधवा छथिन ।आठम मे वियाह भेल छलै आ एगारहम मे दुरागमन ।दीपालीक बा एक दिन कानैत कहलखिन जे जखन वियाह भेल रहै तखन मौसा एगारह बरखक छलखिन आ मौसा-मौसा मे खूब लड़ाई होए ।लड़ाई होए कखनो कनिया-पूतरा खेल मे त कखनो खाए-पीयै क लेल आ कखनो विद्ध-बाध मे ।


                                    मौसी प्राय: खूब स्‍नेह सँ दीपाली सँ बतियाथिन आ अपन भतीजी कें नेमनचूस-बिस्‍कुट दैत काल दीपालियो के दैत छलखिन ।हुनकर भतीजी वन्‍दना आ दीपाली मे बात-बतौअल आ मुंहफुलौअल होए तखन मौसी बीच-बचाव करैत रहथिन ।ओइ समय मे दीपाली कें पता नइ रहेन कि मौसी बाल-विधवा छथिन ।दुरागमनक छह साल बाद मौसा आबैत रहथिन दरभंगा सँ ।तीला संकरांति सँ दू दिन पहिले या बाद यादि नइ ।कुहेसक दिन रहै ,लाठी भरिक अगिला-पछिला नइ देखाइ ।बागमती पर रोड वला पुल नइ रहै ,तें लोक सब नाव सँ पार होइत रहथिन ,मुदा कखनो-काल लोक रेलवे पुलक उपयोग सेहो करैत रहथिन आ ओइ दिन मौसा सेहो यैह गलती केलखिन ,आ जें कि पुल पर घुसलखिन ,ओमहर सँ रेल अएबाक अवाज सुनेलेन , मौसा जल्‍दी सँ पार करबाक प्रयास केलखिन ,दौड़बा मे दिक भेलेन त
साइकिल कें माथ पर उठा लेलखिन ,मुदा अंत मे साइकिल कें छोड़ पड़लेन ।मौसा साइकिल छोडि़ पुल कें टपबा लेल तेजी सँ भागलखिन ,एक क्षण लेल लागलेन कि पार भ छथिन मुदा...........

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