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Friday, 14 June 2013

तू बान्‍ह' चाहै छहीं

तू बान्‍ह' चाहै छहीं मैथिली के बान्‍ह बना के
हम खोलि दै छियै फाटक जजाति दिस
तोरा देखाइत छओ मैथिली आंगनक इनार सन
हमरा देखाइत छैक गंगा-कोशीक विशाल जलराशि
मैथिली क' दुश्‍मन के
तोरा लेल मैथिली वर्णवृत्‍तक टाटक
तोरा लेल बस अमरत्‍वक महारस
हमरा लेल मैथिली जन-मन सँ जुड़बाक सूत्र
ब्रह्मांउक कोनो अक्षांश सँ गाम के यादि करबाक बहन्‍ना
मैथिली क' दुश्‍मन के ?
हम कि .........

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