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Monday 29 April 2013

दलाल

विहनि कथा- दलाल जिला मुख्यालयक बाहर एकटा घौनगर गाछक छाहरिमे दू टा अधवयसु बक-झक (गपक माध्यमसँ झगड़ा) कऽ रहल छल।एकटा दलाल छल आ दोसर आम आदमी ।आम आदमी चमकैत बाजल," हमरा अहाँ मुर्खाधिराज बूझि लेलौं की ?अपन ठेकान नै आ हमरा कानून पढ़बऽ आबि गेल । एते सूनि दलालो जोशमे आबिगेल आ काँख तऽर दाबल कागतक बण्डल पटकि आँखि तरेरैत बाजल," तँ की हम भिखमंगा बुझाइत छी ? अपन स्वार्थसँ अहाँ आयल छी ।ई हमर कर्मस्थल अछि तें नै तँ सब गरमी झाड़ि दितौं । आम आदमीकें गोस्सा चढ़ले रहै आब और बढ़ि गेलै ।थरथराइत देह आ तोतराइत आवाजमे फुँफकारलक,"सा. . ."गारिसँ शुशेभित करैत," कतबो सूट-बूट लगा ले रहबें तऽ दलाले ।जनता आ पदाधिकारी दुनूकें ठकै बला दलाल ।तोरा तँ जेलमे जाएबाक चाही । दलाल कने कननमुँह केने बाजल,"हँ, हम दलाल छी मुदाभीतर बैसल पदाधिकारीसँ नीक छी ओ तँ बिनु मेहनत केने टाका लऽ कऽ कुर्सी आ इज्जत बेच दै छै मुदा हम मेहनत केलाक बाद टाका लै छी आ किछु नै बेचै छी ।लोककें चोर-डकैत-घुसखोर नीक लागै छै मुदा कर्मठ-इमानदार नै ।" आम आदमी चुप भऽ गेल आ एकटापनसैया आ कागत दलालक हाथमे दऽ देलक । अमित मिश्र

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