कालक्रम मे प्लेटो आ अरस्तूक बाद ,मुदा प्राचीन यूनानी साहित्यिक चिंतक मे सबसँ प्रासंगिक लांजाइनस छथि ।ओ प्रजातीय मूल सँ यूनानी मुदा राष्ट्रीयताक हिसाबें रोमन छला ।विद्वान कहैत छथिन जे यदि प्लेटोक लेल साहित्य 'उत्तेजक' रहै ,अरस्तूक लेल 'विरेचक' रहै ,त' लांजाइनसक लेल 'उदात्त' रहै ।ई अवधारणा एत्ते क्रांतिकारी मानल गेलै जे विद्वान लोकनि एकरा शास्त्रवाद ,स्वच्छंदतावाद,आधुनिकतावाद ,यथार्थवाद आ आनोआन वाद सँ जोड़ैत रहलखिन ,आ एखनो व्यख्याक कतेको सूत्र सामने आबि रहल अछि ।
लोजाइनसक काल ईसाक पहिल सदी निर्धारित कएल गेल अछि ,किएक त' ओ ऑगस्टसक बादक कोनो कवि वा वक्ता के विषय मे कोनो चर्चा नइ केने छथि ।हुनकर यशक साक्षी एकमात्र ग्रंथ 'पेरिइप्सुस' अछि आ ऐ ग्रंथक पता पहिल बेर 16म सदी मे चलल ।संभवत: ऐ ग्रंथक रचना स्पार्टाकसक प्रसिद्ध दासविद्रोह (74:71ई0पू0) क' बाद भेलै ।ऐ ग्रंथ मे रोमक पतन पर विचार कएल गेल छैक आ समृद्ध स्वतंत्र नागरिक आ संपतिहीन दासक मध्य तनाव कें एकर कारण मानल गेल छैक ।लांजाइनस दासत्वक सभ प्रकार कें हीन आ निषिद्ध मानैत छथिन आ मातवरक पतनशीलता ,दंभ ,विलास आ आडंबर पर निधोख कलम चलबैत छथिन ।आ लांजाइनस ताल ठोकि कें कहैत छथिन कि ऑगस्टसक बाद 150 साल तक केओ कवि-वक्ता नइ भेल
'इप्सुस'क एकाधिक अर्थ साहित्यिक जगत में लोकप्रिय अछि :
1 वाणीक पराकाष्ठा (हाइट ऑफ इलोक्वेंस)
2 भाषाक लालित्य अथवा उत्तुंगता (लॉफ्टीनेस आ एलीगेंस ऑफ स्पीच)
3 उदात्त(सब्लाइम)
अंतिम अर्थ बेशी ग्राह्य भेलै ,यद्यपि लांजाइनस कें शास्त्रवाद सँ (अतीत-प्रेमक कारणे) ,स्वच्छंदतावाद सँ(प्राकृतिक आदर्शक कारणें) आ एतबे नइ नव-समीक्षा सॅ़ जोड़बाक प्रयास जारी अछि ।
लांजाइनस भाव आ कलाक विभाजक रेखा कें नइ मानैत शास्त्रवादी जड़ता मे महत्वपूर्ण हस्तक्षेप केलखिन ।डॉ0 रामविलास शर्मा कहैत छथिन जे जखन ओ भाषा पर विचार करैत अछि तखन भाव आ विचार ओकरा दृष्टि सँ पड़ाइत नइ अछि आ जखन भाव आ विचार पर विचार करैत अछि तखन भाषा पर सेहो धियान दैत अछि ।यैह कारण छैक कि उदात्त शैली शास्त्रवादी नइ छैक आ उदात्त भाव स्वच्छंदता वादी नइ ।
स्कॉट जेम्स हुनका स्वच्छंदतावादी आंदोलनक जन्म देबाक श्रेय दैतो ई कहैत छथिन कि सटीक आलोचनात्मक निर्णय क' साथेसाथ ओ स्वच्छंदतवादक कमी कें सेहो रेखांकित केला ।निर्मला जैन सेहो मानैत छथिन कि हुनका रोमांटिक या क्लासिकल मे बांटल नइ जा सकैत अछि आ ओ दूनू प्रवृत्तिक अतिक्रमण करैत एकटा अभिनव मार्गक निर्माण करैत छथिन आ ई ऐ दुआरे संभव भेलै कि लोंजाइनस दूनू प्रवृत्तिक सीमा आ शक्ति चिनहै मे समर्थ छलखिन ।
लांजाइनस प्लेटोवादी चिंतनक दैवी आ पुरातनगामी रूख कें बदलबाक प्रयास केलखिन ।हुनका लेल समसामयिक बोध आ प्रगति महत्वपूर्ण रहलै ।ब्रुक्स हुनका 'असाधारण भाषणवादी' मानैत छथिन ।ओइ समै मे अरस्तू सँ ल' के देमेत्रिअस तकक भाषणक यथेष्ट चर्चा भ' गेल छलै आ वाग्मिताक शैली आ व्याकरणक औजार संबंधी वर्गीकरणक अबूझ जाल फैलल छलै ।लांजाइनस ऐ तकनीकी विशेषज्ञताक हीन मानैत उदात्तक चिरस्थायी स्वरूपक विश्लेषण केलथि आ भाषाक वैशिष्ट्य आ चरमोत्कर्ष कें अपन विवेचन मे केंद्र मे राखलथि ।हुनकर ई विश्लेषण रीतिवाद-विरोधी साहित्यशास्त्रक प्रारंभ अछि......
पहिले विद्वान लोकनि उदात्तक संबंध मात्र साहित्ये सँ जोड़लथि ,मुदा बाद मे स्पष्ट भेल कि उदात्तक परिधि मे गद्य-पद्य, ,इतिहास-दर्शन-धर्मपुराण-भाषण सब सँ अछि आ उदाहरणक लेल लांजाइनस होमर,प्लेटो ,देमोस्थेनीज सन विविध व्यक्तित्व कें आवाहन करैत छथिन । हुनका मे साहित्यक सभ विधा आ कलाक विभिन्न रूप आ आनोआन अनुशासन कें समन्वित करबाक सामर्थ्य अछि ।
महान शैली के महान आत्मा आ गंभीर विचारक प्रतिध्वनि मानला सँ उदात्तक परिधि-विस्तार होइत अछि आ ई कला आ अभिव्यक्ति सँ बाहर निकलि मनोविज्ञान आ समाजशास्त्र सँ जुड़ैत अछि ।हुनका विचारें शैलीक महानता विचारक गरिमा पर निर्भर अछि आ विचारक गरिमा आचरणक महानता सँ आबैत अछि ।
निर्मला जैन मानैत छथिन कि उदात्तक लेल न विषयक सीमा छैक ने विधाक ,ने भावक सीमा ने स्थितिक ।जेना भाषण ,कविता ,दर्शन ,संगीत ,मूर्तिशिल्प कतौ उदात्त भ' सकैत छैक तहिना विराट आकार ,प्रबल वेग ,युद्ध वर्णन ,प्रेमगीत ,गगन-भेदी स्वर आ पताली मौन ,उल्लास ,वेदना कोनो दृश्य आ भाव मे उदात्त भ' सकैत छैक ।एकदम स्पष्ट छैक कि उदात्तक कोनो सीमा नइ ,एकर संबंधा आत्मा ,स्वभाव आ आंतरिकता सँ अछि ,मात्र कौशल ,भाषा आ कला सँ नइ ।
साभार डा0 अजय तिवारी (एकटा आलेख सँ काटल-खोटल अनुवाद)
लोजाइनसक काल ईसाक पहिल सदी निर्धारित कएल गेल अछि ,किएक त' ओ ऑगस्टसक बादक कोनो कवि वा वक्ता के विषय मे कोनो चर्चा नइ केने छथि ।हुनकर यशक साक्षी एकमात्र ग्रंथ 'पेरिइप्सुस' अछि आ ऐ ग्रंथक पता पहिल बेर 16म सदी मे चलल ।संभवत: ऐ ग्रंथक रचना स्पार्टाकसक प्रसिद्ध दासविद्रोह (74:71ई0पू0) क' बाद भेलै ।ऐ ग्रंथ मे रोमक पतन पर विचार कएल गेल छैक आ समृद्ध स्वतंत्र नागरिक आ संपतिहीन दासक मध्य तनाव कें एकर कारण मानल गेल छैक ।लांजाइनस दासत्वक सभ प्रकार कें हीन आ निषिद्ध मानैत छथिन आ मातवरक पतनशीलता ,दंभ ,विलास आ आडंबर पर निधोख कलम चलबैत छथिन ।आ लांजाइनस ताल ठोकि कें कहैत छथिन कि ऑगस्टसक बाद 150 साल तक केओ कवि-वक्ता नइ भेल
'इप्सुस'क एकाधिक अर्थ साहित्यिक जगत में लोकप्रिय अछि :
1 वाणीक पराकाष्ठा (हाइट ऑफ इलोक्वेंस)
2 भाषाक लालित्य अथवा उत्तुंगता (लॉफ्टीनेस आ एलीगेंस ऑफ स्पीच)
3 उदात्त(सब्लाइम)
अंतिम अर्थ बेशी ग्राह्य भेलै ,यद्यपि लांजाइनस कें शास्त्रवाद सँ (अतीत-प्रेमक कारणे) ,स्वच्छंदतावाद सँ(प्राकृतिक आदर्शक कारणें) आ एतबे नइ नव-समीक्षा सॅ़ जोड़बाक प्रयास जारी अछि ।
लांजाइनस भाव आ कलाक विभाजक रेखा कें नइ मानैत शास्त्रवादी जड़ता मे महत्वपूर्ण हस्तक्षेप केलखिन ।डॉ0 रामविलास शर्मा कहैत छथिन जे जखन ओ भाषा पर विचार करैत अछि तखन भाव आ विचार ओकरा दृष्टि सँ पड़ाइत नइ अछि आ जखन भाव आ विचार पर विचार करैत अछि तखन भाषा पर सेहो धियान दैत अछि ।यैह कारण छैक कि उदात्त शैली शास्त्रवादी नइ छैक आ उदात्त भाव स्वच्छंदता वादी नइ ।
स्कॉट जेम्स हुनका स्वच्छंदतावादी आंदोलनक जन्म देबाक श्रेय दैतो ई कहैत छथिन कि सटीक आलोचनात्मक निर्णय क' साथेसाथ ओ स्वच्छंदतवादक कमी कें सेहो रेखांकित केला ।निर्मला जैन सेहो मानैत छथिन कि हुनका रोमांटिक या क्लासिकल मे बांटल नइ जा सकैत अछि आ ओ दूनू प्रवृत्तिक अतिक्रमण करैत एकटा अभिनव मार्गक निर्माण करैत छथिन आ ई ऐ दुआरे संभव भेलै कि लोंजाइनस दूनू प्रवृत्तिक सीमा आ शक्ति चिनहै मे समर्थ छलखिन ।
लांजाइनस प्लेटोवादी चिंतनक दैवी आ पुरातनगामी रूख कें बदलबाक प्रयास केलखिन ।हुनका लेल समसामयिक बोध आ प्रगति महत्वपूर्ण रहलै ।ब्रुक्स हुनका 'असाधारण भाषणवादी' मानैत छथिन ।ओइ समै मे अरस्तू सँ ल' के देमेत्रिअस तकक भाषणक यथेष्ट चर्चा भ' गेल छलै आ वाग्मिताक शैली आ व्याकरणक औजार संबंधी वर्गीकरणक अबूझ जाल फैलल छलै ।लांजाइनस ऐ तकनीकी विशेषज्ञताक हीन मानैत उदात्तक चिरस्थायी स्वरूपक विश्लेषण केलथि आ भाषाक वैशिष्ट्य आ चरमोत्कर्ष कें अपन विवेचन मे केंद्र मे राखलथि ।हुनकर ई विश्लेषण रीतिवाद-विरोधी साहित्यशास्त्रक प्रारंभ अछि......
पहिले विद्वान लोकनि उदात्तक संबंध मात्र साहित्ये सँ जोड़लथि ,मुदा बाद मे स्पष्ट भेल कि उदात्तक परिधि मे गद्य-पद्य, ,इतिहास-दर्शन-धर्मपुराण-भाषण सब सँ अछि आ उदाहरणक लेल लांजाइनस होमर,प्लेटो ,देमोस्थेनीज सन विविध व्यक्तित्व कें आवाहन करैत छथिन । हुनका मे साहित्यक सभ विधा आ कलाक विभिन्न रूप आ आनोआन अनुशासन कें समन्वित करबाक सामर्थ्य अछि ।
महान शैली के महान आत्मा आ गंभीर विचारक प्रतिध्वनि मानला सँ उदात्तक परिधि-विस्तार होइत अछि आ ई कला आ अभिव्यक्ति सँ बाहर निकलि मनोविज्ञान आ समाजशास्त्र सँ जुड़ैत अछि ।हुनका विचारें शैलीक महानता विचारक गरिमा पर निर्भर अछि आ विचारक गरिमा आचरणक महानता सँ आबैत अछि ।
निर्मला जैन मानैत छथिन कि उदात्तक लेल न विषयक सीमा छैक ने विधाक ,ने भावक सीमा ने स्थितिक ।जेना भाषण ,कविता ,दर्शन ,संगीत ,मूर्तिशिल्प कतौ उदात्त भ' सकैत छैक तहिना विराट आकार ,प्रबल वेग ,युद्ध वर्णन ,प्रेमगीत ,गगन-भेदी स्वर आ पताली मौन ,उल्लास ,वेदना कोनो दृश्य आ भाव मे उदात्त भ' सकैत छैक ।एकदम स्पष्ट छैक कि उदात्तक कोनो सीमा नइ ,एकर संबंधा आत्मा ,स्वभाव आ आंतरिकता सँ अछि ,मात्र कौशल ,भाषा आ कला सँ नइ ।
साभार डा0 अजय तिवारी (एकटा आलेख सँ काटल-खोटल अनुवाद)
No comments:
Post a Comment